कानूरु हेग्गडिति – Kanuru Heggadithi Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
जब दोनों शाम को साथ-साथ ताड़ी पी रहे थे तब “गौड़गी मैं असूया से नहीं कह रहा हूं। आपके कहने के अनुसार वह वैरा है न, बेलर का मेरा !
उसको मैंने धान नहीं दिया तो हुवाय गौड़जी ने बहुत कुछ कह दिया न! मेरा इसमें क्या दोष था, अब बाप ही कहिए।
आपके बारे में मनमाने कहना ! आपके घर का खाना खाकर बड़ा हुआ पुण्ण का भी आपके बारे में बहुत कुछ कह देना! हां, देखिये ! मुझे वह पाप क्यों ?
मैं असूया से नहीं कह रहा हूं। जो हो, जवान वेटों को उनका विवाह किये बिना घर में रख लेना अच्छा नहीं है
है न ! अगर मैं झूठ बोलता हूं तो जीभ कट जाय मेरी आज ही !” इत्यादि दक्षिण कन्नड़ जिले के सेरगारजी बच्चों की भांति सराग कहकर अपनी बात पूर्ण करने वाले ही ये गौड़ जी ने जो मुंह में आया कह ही दिया, सेरेगारजी की सूचना को हजारों गुना बड़ा मानकर, “आपको नया सुनाने की जरूरत नहीं है।
मैं खुद ही सब जान गया हूं। उसको, उसकी मां को घर से निकाले विना चैन नहीं। खेत में उतरने के पहले ही घर का हिस्सा करके उनको अलग रख देता हूं।
नहीं तो ‘बड़ी बहन की आदत घर के सभी लोगों को पड़े’, कहावत है न, उसकी तरह सभी बिगड़ जायं तो आगे क्या हाल है ?
वह तो जमीन झाड़ती-सी सफेद धोती पहनकर मंजिल पर बैठ जाता है, घर के काम-काज की ओर तनिक भी नहीं ताकता। उसकी वजह से हमारा रामू भी बिगड़ जायगा!”हमारे देवता, हमारे भूत के प्रति उसको घृणा ।
उसके घर आते ही भूतराय मुझे दीख पड़ा! कल-परसों उसकी मनौती पूरा करके, उनका हिस्सा उनको देकर भेज देता हूं। कहीं भी मर जाय ! फिर””पुट्टण्ण को भी निकाल दूंगा।
वह मुफ्तखोर आसामी! खाने के लिए जाकर बस गया है घर में । तीनों वक्त बंदूक लेकर फिरता है ! चुगली खाता है ! खूब मेहनत करे और खाय ! तब मालूम हो जायगा !”
लेखक | K V Puttappa |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 520 |
Pdf साइज़ | 21 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
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