कंकाल मालिनी तंत्र – Kankal Malini Tantra Book Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
बादावसौ जायते च शब्दब्रह्म सनातनः । वसुजिह्वा कालराच्या रूढाकिन्यलंकृता। विषवीजं श्रुतिमुखं प्र.बं हालाहल प्रिये ॥ॐ॥ १८|।
में तीन वर्णों द्वारा गठित है। बसुजिङ्वा अ कार, कालरात्रि उ कार तथा स्वरूपी अनुस्वार से प्रकार गठित है।
हे प्रिये ! गह शम्द्रह्म पबीजमंत्र जगत् प्रपंच के लिये विपस्वरूप है। अर्थात् मायाप्रपंच को नष्ट करनेवाला और श्रुति का मुख है ॥ १८॥
चण्डीशः क्षतजारूडो धूम्रभरय्यलंड कुतः नादविन्दु समायुक्तं सक्ष्मीबीजं प्रकीर्तितम् ॥श्री॥१६॥ अद धीं मन्ना वर्णन सुनो । ५ा
प्रकार, क्षतज अर्थात् ‘र’ कार पर आस्वा घूमभैरवी, ई रार द्वारा अरगुत तथा नादविन्दु रो संयुक्त यह मन्त्र देवी का रीण स्वक्ष्य है। ऐसा नाविक विज्ञान करते है ।। १९।॥।
क्रोयीशं थतजारूढं धूत्रभेरव्यलङ्कृतम्। नादविस्दुयुतं देवो नामबीजं प्रको्तितम् ।॥श्री। २० ॥
क्रोधोश अर्यात् क कार, शन्ज अर्थात् र कार पर लुटा पश्टर्भरवी ई- कार द्वारा शोभिता तथा नार्दाबिन्दु समायुता हूं । इसको कालिका गीज (नामवीज) को कहते हैं ॥२०॥
क्रोचीचो व वभृद् वनिभुग् पूर मेरवोनाइबिन्दुभिः । त्रिमतिमम्मय ामबोज अंलोष्यमोहनम् ॥क्लीं २१।।
क्रोधित अय स ककार, बलभट् अ्थात् कार से बुभ. पूम्रेरवी ईकार द्वारा शोभिता होपर मति ही उती है (नयत् क ई) य्ह नार्दडिन्द- मुक्त होकर पी पी कासान द्वारा लोक्य को मोहित करने में समर्थ है ।। २ १म
क्षत जस्थो व्योमवक्यो घूम्र्भरव्यलंड्कृत: । नावकिदुसुशोभा द्वं मायावज्जञाटयं स्मृतग् ॥ही॥ २१॥
योग वक्र मर्यात पर नया तिज अर्थात् र कार, यह दो वर्ण जब पुनर्भरवी रूपी कार द्वारा ना होवार, नायविन्दू से युक ह जाते हैं, जब व्योमास्प ह कार तथा विदारी अर्थात कार, इन दो वर्गों को प्भरवो के साथ मुक्त करके नाविन्द के साथ मना करना चाहिये।
यह मन्त्र में परिणत हो जाता है। पीरो द्वारा बन्ना देवी !इस मंत्र को क्रोधबीन कहते है।
लेखक | एस.एन.खंडेलवाल-S.N.Khandelval |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 102 |
Pdf साइज़ | 18.8 MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
कंकाल मालिनी तंत्र – Kankal Malini Tantra Book/Pustak Pdf Free Download