कामायनी जयशंकर प्रसाद | Kamayani PDF In Hindi

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कामायनी – Kamayani PDF Free Download

कामायनी

आय्यं-साहित्य में मानवों के आदिपुरुष मनु का इतिहास वेदों से लेकर पुराण और इतिहासों में बिखरा हुआ मिलता है। श्रद्धा और मनु के सहयोग से मानवता के विकास की कथा को, रूपक के आवरण में,

चाहे पिछले काल में मान लेने का वैसा ही प्रयत्न हुआ हो जैसा कि सभी वैदिक इतिहासों के साथ निरुक्त के द्वारा किया गया, किन्तु मन्वन्तर के अर्थात् मानवता के नवयुग के प्रवर्तक के रूप में मनु की कथा आर्यों की अनुश्रुति में दृढ़ता से मानी गई है ।

इसलिए वैवस्वत मनु को ऐतिहासिक पुरुष ही मानना उचित है। प्रायः लोग गाथा और इतिहास में मिथ्या और सत्य का व्यवधान मानते हैं। किन्तु सत्य मिथ्या से अधिक विचित्र होता है ।

आदिम-युग के मनुष्यों के प्रत्येक दल ने ज्ञानोन्मेष के अरुणोदय में जो भावपूर्ण इतिवृत्त संगृहीत किये थे, उन्हें आज गाथा या पौराणिक उपाख्यान कह कर अलग कर दिया जाता है

क्योंकि उन चरित्रों के साथ भावनाओं का भी बीच-बीच में सम्बन्ध लगा हुआ सा दीखता है। घटनाएँ कहीं-कहीं अतिरंजित सी भी जान पड़ती है। तथ्य-संग्रहकारिणी तर्कबुद्धि को ऐसी घटनाओं में रूपक का आरोप कर लेने की सुविधा हो जाती है।

किन्तु उनमें भी कुछ सत्यांश घटना से सम्बद्ध है ऐसा तो मानना ही पड़ेगा। आज के मनुष्य के समीप तो उसकी वर्तमान संस्कृति का क्रमपूर्ण इतिहास ही होता है; परन्तु उसके इतिहास की सीमा जहाँ से प्रारम्भ होती है,

ठीक उसी के पहिले सामूहिक चेतना की दृढ और गहरे रंगों की रेखाओं से, बीती हुई और भी पहले की बातों का उल्लेख स्मृति- पट पर अमिट रहता है; परन्तु कुछ अतिरंजित-सा । वे घटनाएँ आज विचित्रता से पूर्ण जान पड़ती हैं ।

यदि श्रद्धा और मनु अर्थात् मनन के सहयोग से मानवता का विकास रूपक है, तो भी बड़ा ही भावमय और श्लाध्य है । यह मनुष्यता का मनोवैज्ञानिक इतिहास बनने में समर्थ हो सकता है। आज हम सत्य का अर्थ घटना कर लेते हैं।

उषा सुनढहले तीर बरसती

जय – ल्च्मी – सी उदित हुई ; उधर पराजित काल – रात्रि भी

जल में अंतर्निद्वि हुईं ।

वह विवरय मुख त्रसस्‍्त ग्रक्ृति का

आज लगा इसने फिर से; वर्षा बीती, हुआ सृष्टि में

शरद विकास नये सिर से।

नव कोमल आलोक बिखरता

हिम संसति पर भर अचुराग ; सित सरोज पर क्रोड़ा करता

जेसे मधुमय पिंगय पराय ।

घीरे घीरेी हिमर – आचछादन

हटने लगा घरातल से; अजगयीं वनस्पतियाँ. अलसाई

मु घोती शीतल जल से।

नेत्र निमीलन करती मानो प्रकति अबुद्ध लगी होने $

जलधि लहरियों की ऑगड़ाई बार बार जाती सोने।

पिंध॒ तेज पर परा वध्‌श्रब

तनिक पंकुचित वेठी – सी ; प्रलय निशा की हलचल स्मृति में

मान किये -सी ऐंठी-सी।

देखा मन्‌ ने वह अछि रं॑जित विजन विश्व का नव एकांत / जेते कोलाहल सोया हो हिम शीतल जड़ता – सा श्रांत |

इंद्रनीलअ मणि महा चषक था सोम रहित उल्टा लटका; आज पवन मृदु साँप ले रहा भर जसे बीत गया खटका।

वह क्रिट था. हेम घोलता

नया रंग भरने को आज ; कोन ! हुआ यह प्रश्न अचानक

और कुृतृहल का था राज ।

लेखक जयशंकर प्रसाद – jayshankar prasad
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 308
Pdf साइज़ 8 MB
Category Religious

कामायनी – Kamayani jayshankar prasad Book/Pustak Pdf Free Download

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