‘कल्याण विशेषांक’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Shakti Ank Gita Press’ using the download button.
कल्याण शक्ति अंक भाद्रपदके अंकसहित – Kalyan Shakti Ank Book PDF Free Download
कल्याण शक्ति अंक भाद्रपदके अंकसहित
मन्त्रशास्त्र के शानके लिये छत्तीस शैव-शाक्ततत्त्वोंका समझना भी आवश्यक है। उदाहरणतः यह कहा जाता है कि शक्तितत्व के अन्दर शक्ति है, सदाख्यतत्यके अन्दर नाद है, ईश्वरतत्त्व के अन्दर बिन्दु है ।
तब प्रश्न यह होता है कि ये तत्त्व क्या हैं जिनका उल्लेख शैय एवं शाक्त दोनों प्रकारके तन्त्रोंमें मिलता है ? तत्त्वोंको पूरी तरहसे समझे बिना मन्त्रशास्त्र ज्ञानमें प्रगति नहीं हो सकती ।
शैवशाक्तशास्त्र में शक्तिके रूपमें प्रमा ( ज्ञान ) को विमर्श शब्दसे अभिहित किया गया है। प्रमाके दो अंश हैं अहमंश और इदमंश, जिनमें पहला आत्माका ग्राहक अंश है और दूसरा ग्राह्म।
क्योंकि यह बात ध्यानमें रहे कि एक आत्मा ही मायारूप उपाधिके कारण द्रष्टारूप अपनी ही दृष्टिमें अपनेसे भिन्न-अनात्म अथवा दृश्यरूपमें भासता है।
मूलमें प्रमेय वस्तु प्रमातासे भिन्न नहीं है, यद्यपि इस बातका अनुभव तबतक नहीं होता जबतक प्रमाता और प्रमेयकी भेदप्रतीतिका कारणभूत मायारूप बन्धन शिथिल नहीं हो जाता । प्रमा अथवा प्रतीतिका महमंश यह है
जिसमें आत्मा दूसरेकी तरफ न देखता हुआ अपने ही प्रकाशमें स्थित रहता है (अनन्योन्मुखोऽहं प्रत्ययः) । इसी प्रकार दूसरेकी ओर देखनेवाला बिमर्श ‘इदं प्रत्यय’ कहलाता है (यस्त्वन्योन्मुखः स इदमिति प्रत्ययः ) परन्तु यह ‘दूसरा’ मी आत्मा ही है,
क्योंकि वास्तवर्मे एक आत्माके अतिरिक्त दूसरी कोई वस्तु है ही नहीं । हाँ, इसकी प्रतीति अवश्य ही भेदरूपसे होती है।
परमावस्था में आत्माका यह इदंरूप उसके अहमशके साथ घुला मिला सम्पृक्त होकर रहता है । शुद्ध अवस्था में, जो परमावस्था और मायाके बीचकी अवस्था है,
इस ‘दूसरे’ की आत्माके अंशरूपमें ही प्रतीति होती है। शुद्ध अबस्थामें, जिसमें मायाका आधिपत्य होता है, प्रमेय वस्तु परिच्छिन्न आत्मासे भिन्न प्रतीत होती है ।
प्रतीति अथवा ज्ञानकी भी दो कोटियाँ हूँ– (१) पूर्ण (सकल) विश्वका सकल ज्ञान, और (२) त्रिविध जगत्का परिच्छिन्न ज्ञान | इन दो कोटियोंके बीच शानकी माध्यमिक अवस्याएँ भी हैं,
जिनके द्वारा एक शुद्ध चैतन्य अथवा आत्मा जड प्रकृतिमें आबद्ध होता है । हरमीज ( Hermes) नामक पाश्चात्य विद्वान्का एक आमाणक प्रसिद्ध है :- ‘As above, so below.’ अर्थात् जो ऊपर है वही नीचे भी है ।
इसी प्रकार विश्वसारतन्त्रमें भी लिखा है—’जो यहाँ है सो वहाँ भी है, जो यहाँ नहीं है यह कहीं नहीं है’ (यदिहास्ति तदन्यत्र यन्नेहास्ति न तत् क्वचित् ) |
शैषसिद्धान्त भी यही कहता है— ‘बाहर जो कुछ दीखता है वह इसीलिये दीखता है कि भीतर भी वही है।’
लेखक | Gita Press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 852 |
Pdf साइज़ | 65.4 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
Related PDF
कठोपनिषद सानुवाद शंकरभाष्य सहित PDF
कल्याण शक्ति अंक – Kalyan Shakti Ank Book PDF Free Download