झांसी की रानी लक्ष्मीबाई | Jhansi Ki Rani Laxmibai PDF

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई – Jhansi Ki Rani Laxmibai Book PDF Free Download

रानी लक्ष्मीबाई का जीवन चरित्र

पत्नी में सदैव बड़ा प्रेम रहता था संसारमें प्रेमसे बढ़कर और कोई पवित्र वस्तु नहीं है; यदि वह प्रेम सच्चा और शुद्ध हृदयसे किया गया हो। यदि दो मनुष्य प्रेम वृद्ध होकर किसी दुस्तरसे दुस्तर कार्यको करना चाहें तो वह सरलता-पूर्वक किया जा सकता है।

किसी कविने ठीक कहा है कि ‘अगर दो दिल मिल कर चाहें तो पहाड़ भी तोड़ सकते हैं’। फिर यदि पति और पत्नीमें परस्पर सच्चा प्रेम हो तो यह बतानेकी आवश्यकता नहीं जान पड़ती कि संसार-यात्रा किस प्रकार उत्तम रीतिसे निर्वाह हो सकती है। ऐसा ही सच्चा प्रेम मोरोपंत और उनकी पत्नी में था ।

इस पतित्रता स्त्रीका वर्णन करते-करते हमें नीचे लिखी हुई पक्तिशोॉका स्मरण होता है:-“पत्यनुकूला चतुरा प्रियंबदा या सुरूपसंपूर्णा सहज स्नेह- रसाला कुलवनिवा केन तुल्या स्यात् ॥ ऐसे शुद्ध और पवित्र प्रेम बीजके फल भला क्यों कर मीठे और उत्तम न होंगे ?

कार्तिक बदी १४ संवत् १८९१ (ता. १६ नवंबर सन् १८३५ ई०) को मोरोपंत के घरमें कन्याका जन्म हुआ। संतानकी उत्पत्तिका जो आनंद मनुष्यको होता है वह संसारमें सब लोगोंको विदित ही है; इसी प्राकृत रीत्यनुसार मोरोपंतको भी आनंद हुआ । उनके सब मित्र, स्नेही, बंधुओंने भी इस आनंदमें उनको बधाई दी।

सब लोगोंने मिलकर आशीर्वाद दिया कि ‘ईश्वर आपकी इस संतानको चिरायु करे और भविष्यत्में यह बड़े यश और पराक्रमको प्राप्त करे।

यद्यपि यह आशीर्वाद केवल वर्तमान समयके विचारों पर दृष्टि देकर साधारण रीतिसे दिया गया था, तथापि यही वाक्य समय पाकर सार्थक हुमा।

काशी जीके विख्यात ज्योतिषियोंने जात कादिका विचार कर यह भविष्य कथन किया था कि “यह बालिका राजलक्ष्मीसे अलंकृत होकर अत्यंत शौर्यशालिनी स्त्री किसीको खममे भी यह अनुमान न था कि यह मालिक इस प्रशार शूरवीर होगी और अपने पराक्रमी कामोसे जगद्विजयो अॅगरेजोकी भी चकित कर देगी !

लेखक बलवंत पारसनिस-Balawant Parasnis
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 258
Pdf साइज़36.9 MB
Categoryआत्मकथा(Biography)

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