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जल प्रदूषण – Jal PraDushan PDF Free Download
जल प्रदूषण
विश्व में जल प्रदूषण से पर्यावरण, मानवीय एंव पशुओं के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है। आधुनिक प्रदूषण विकास का एक परिणाम है। हमारी प्रारंभिक सभ्यताएँ न सिर्फ नदी के किनारे विकसित हुई बल्कि उसी तरह फली फूली।
पहले जल संसाधन सम्मिलित रूप से भूमिजल बहुत साफ तथा दूषित नहीं था। किन्तु आज की सभ्यता में यह प्रवृति उल्टी है तेजी से औद्योगिक विकास के कारण तथा बढ़ती हुई जनसंख्या से जल संसाधन प्रदूषित तथा संक्रमित हो रहे हैं।
क्योंकि इनमें गंदा पानी बहकर जाने वाले कृषि रसायन तथा औद्योगिक अनुपचारित धाराओं का प्रवाह होता है। स्थिति यहाँ तक खराब हो गई है कि 70% नदियां तथा जल धाराएं जो कि सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में प्रदूषित है।
सामान्य रूप से विश्व में तथा विशिष्ट रूप से भारत में जनसंख्या वृद्धि से न ही सिर्फ पानी का अभाव बल्कि इसकी गुणवत्ता की भी समस्या होगी।
बहुत से विकासशील देशों में जल संसाधन का घरेलू कृषि तथा औद्योगिक कार्यों में उपयोग होता है। विकासशील देशों में बहुत कम मात्रा में मानवीय अपशिष्ट पदार्थों का उपचार / शोधन होता है। भारत में दो तिहाई सतही जल के स्रोत मानवीय स्वास्थ्य के हिसाब से खतरनाक माने जाते हैं।
सतही जल प्रदूषण की अवस्था में प्रदूषण करने वाले कारक धारा, नदी तथा झील में प्रवेश करते हैं। एक ऐसी अवस्था आती है जब पानी या तो प्रयोग के योग्य नही रह जाता या स्वास्थ्य की दृष्टि से खतरनाक होता है।
5.3.1 सतही जल प्रदूषण के प्रकार
साधारणतः सतही जल प्रदूषण को निम्न तरीकों से विभाजित करते हैं।
बिन्दु स्रोतों से प्रदूषण
साधारणतः घरेलू तथा औद्योगिक क्षेत्रों से निकलने वाले कचरे को जल धाराओं तथा जल क्षेत्रों में मिलने से होता है। इसको प्रभावी रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।
बिना बिन्दु स्रोतों से प्रदूषण
बिना बिन्दु अथवा बिखरे हुये स्रोतों से प्रदूषण सामान्यतया एक स्रोत से आरम्भ नहीं होता है। यह विसृत प्रदूषण के कारण होता है। यह बड़े भू-भाग से छोटी मात्रा में प्रदूषण करने वाले कारकों को इकट्ठा होने से होता है।
कृषि प्रक्षेत्रों से प्रदूषित पानी, निर्माणाधीन जगहों, बेकार पड़ी खदानों, प्रदूषित नदियाँ तथा झीले इस तरह के प्रदूषण का उदाहरण हैं। इस तरह के प्रदूषण का नियंत्रण करना काफी जटिल होता है।
5.3.2 सतही जल प्रदूषण के स्रोत
अभी तक हमने जल प्रदूषण से होने वाले प्रभावों, जल प्रदूषण के प्रकारों तथा सतही एव भूमिजल प्रदूषण के सम्बन्धों के बारे में चर्चा की। अब आप जल प्रदूषण के स्रोतों का अध्ययन करेगें। पानी सामान्यतः प्राकृतिक तथा कृत्रिम स्रोतों से प्रदूषित होता है। जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत निम्न हैं:
प्राकृतिक स्रोत
जल प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत निम्न हैं।
(i) कणों का ढेर (छोटे कण, बालू तथा खनिज कण) जल स्रोतों में यह सामान्यतः प्राकृतिक रूप से होता है जिसके परिणाम स्वरूप जल क्षेत्रों जैसे नदी, तालाब, झील, बाँध की जल संग्रहण क्षमता घटती है तथा प्रदूषण भी होता है।
अव्यवस्थित रूप से जंगलों का काटना इस समस्या में सहयोग प्रदान करता है क्योंकि इससे मृदा की ऊपरी परत ढीली हो जाती है तथा बाढ की संभावना बढ़ जाती है। बाढ़ का पानी भी मृदा कणों को बहाकर अपने साथ ले आता है और जल स्रोतों में जमा करता है। इन जल स्रोतों की समय-समय पर सफाई जरूरी होती है जो कि एक खर्चीला एंव समय चाहने वाला कार्य है।
(i) फ्लोराइड की मात्रा: भूमिजल में फ्लोराइड आयन की ज्यादा सान्द्रता स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। फ्लोराइड की सान्द्रता 7 पीपीएम (मिलीग्राम/ली.) से ज्यादा होने पर बीमारी से हड्डी, जोड़ों तथा दातों पर प्रभाव पड़ता है। देश के 12 प्रदेशों (प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान, तामिलनाडु उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा) के भूमिजल में फ्लोराइड की सान्द्रता ज्यादा है जिससे दाँत व हड्डी में फ्लोराइड का प्रतिशत ज्यादा है।
(I) आर्सेनिक की मात्रा पानी में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा होने से आसिंगोकोसिस होता है।
5.4 भूमिजल प्रदूषण
प्राकृतिक स्रोतों, गन्दगी से पीछा छुड़ाने की गतिविधियाँ, रिसाव, कृषि प्रबंधन कार्य जैसे उर्वरक का उपयोग, कीट नाशी रसायन से भूमिजल प्रदूषित होता है।
भूमिजल में विलेय नमक, खनिज तत्व जैसे क्लोराइड, नाइट्रेट, फ्लोराइड, लौह तथा सल्फेट होते हैं। इन सब की मात्रा एक स्तर से ज्यादा होने पर रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर गम्भीर खतरा पैदा करती है।
एक्यूफर से मिला होने के कारण भूमिजल बहुत दूर तक जा सकता है। इससे अशुद्धियां स्रोत से बहुत दूर होने पर भी पहचानी जा सकती हैं। यह फैलाव के परिणाम स्वरूप होता है। जबकि निलंबित अशुद्धियां तथा जीवाणु अशुद्धियां मृदा के कारण मृदा में ही रह जाती हैं।
भूमिजल तथा सतहीजल का पारस्परिक प्रभाव जटिल है। भूमिजल तथा सतडीजल के प्रदूषण में अन्तर कर पाना बहुत कठिन है।
सतहीजल क्षेत्रों से प्रदूषण साफ भूमिजल में चला जाता है। रसायन मुख्यतः उर्वरक तथा कीटनाशी जमीन की सतह पर दिये जाते हैं किन्तु विशालन के द्वारा ये भूमिजल में जा मिलते हैं और प्रदूषण करते हैं। अतः भूमिजल का प्रदूषण मृदा गुणों, जलचक्र तथा प्रदूषण कारकों की प्रकृति के पारस्परिक सहयोग से होता है।
Language | Hindi |
No. of Pages | 12 |
PDF Size | 0.05 MB |
Category | Education |
Source/Credits | egyankosh.ac.in/bitstream |
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