जैन धर्म का इतिहास | Jainism History PDF In Hindi

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जैन धर्म का इतिहास बताइए – History of Jainism PDF Free Download

जैन धर्म

जैन धर्म एक विशुद्ध महान आध्यात्मिक धर्म है। इस शाश्वत आत्मधर्म का संबंध किसी जाति विशेष से कभी नहीं रहा।

सभी जाति के मानवों ने इस जैन धर्म का पालन कर आत्म-कल्याण और विश्वशांति का लक्ष्य पूर्ण किया है। वैसे भी कोई धर्म यदि किसी जाति विशेष से संबद्ध होकर रहे तो वह ज़्यादा समय तक टिक नहीं सकता।

जैन धर्म अनादि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक प्रवर्तित रहेगा। यह ज़रूर है कि समय के उतार-चढ़ाव के कारण जैन धर्म भी प्रभावित होता रहा है; किंतु ऐसा भी काल रहा जब जैन धर्म का डंका बजा करता था।

कैसा भी समय रहा हो, कैसी भी परिस्थितियाँ रही हों किंतु जैन धर्म की तथा जैनाचार्यों की यह विशेषता रही है कि उन्होंने कभी भी अपने मूल सिद्धांतों तथा शुद्धाचरण के साथ समझौता नहीं किया।

जैन शब्द का अर्थ (Meaning of Jain)

जैन शब्द का मूल उद्गम ‘जिन’ शब्द है। ‘जिन’ शब्द ‘जिं-जये’ धातु से निष्पन्न है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- जीतने वाला ।

‘जिन’ को परिभाषित करते हुए लिखा गया – रागद्वेषादिदोषान् कर्मशत्रुंजयतीति जिन: तस्यानुयायिनो जैन:- राग-द्वेषादि दोषों और ज्ञानावरणीय आदि जो जीतता है, वह ‘जिन’ कहलाता है और ‘जिन’ भगवान द्वारा प्रतिपादित धर्म के मार्ग पर चलने वाला उनका अनुयायी जैन कहलाता है।

जैन धर्म के प्रवर्तक (Founder of Jain Religion) कर्म-शत्रुओं को

जैन धर्म के प्रवर्तक ‘जिन’ होते हैं। ‘जिन’ शब्द के भी अनेक अर्थ हैं, यथा-अतीन्द्रिय ज्ञानी, राग-द्वेष विजेता आदि। जैन धर्म के अनुसार धर्म-प्रवर्तक की योग्यता के लिए दो कसौटियाँ हैं- वीतरागता और केवलज्ञान। जो वीतराग है, वह केवलज्ञानी हो, यह आवश्यक नहीं है, किन् होगा ही।

सभी केवलज्ञानी धर्म के प्रवर्तक नहीं होते, जो केवलज्ञानी तीर्थकर होते हैं, वे ही धर्म के प्रवर्तक होते हैं। Harsity केवलज्ञानी है, वह वीतराग

जैन धर्म विश्व के प्राचीनतम धर्मों में से एक है। चिन्तकों के मतानुसार सृष्टिक्रम की दृष्टि से इस धर्म को ‘अ “माना जा सकता है, किन्तु व्यवहार में युग परिवर्तन के साथ-साथ उसके प्रवर्तक भी बदलते रहते हैं।

वर्तमान कालचक्र के अनुसार जैन धर्म के प्रवर्तकों की सूची में पहला नाम है- तीर्थंकर ऋषभ का और चौबीसवां नाम है- तीर्थंकर महावीर का।

तीर्थकर वह कहलाता है, जो धर्मतीर्थ का प्रवर्तन करता है। इस परिभाषा के अनुसार प्रत्येक तीर्थकर धर्म का प्रवर्तक है। कोई भी तीर्थंकर किसी दूसरे तीर्थकर का शिष्य या उत्तराधिकारी नहीं होता है। वह स्वयं धर्म का आदिकर या प्रवर्तक होता

जैन धर्म छठवीं शताब्दी में उदित हुए उन 62 नवीन धार्मिक संप्रदायों में से एक था परंतु अंत में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म ही प्रसिद्ध हुए। छठी शताब्दी ई०पू० में भारत में उदित हुए प्रमुख धार्मिक संप्रदाय निम्न थे

  1. जैन धर्म (वर्धमान महावीर (वास्तविक संस्थापक)]
  2. बौद्ध धर्म (गौतम बुद्ध)
  3. आजीवक सम्प्रदाय (मक्खति गोशाल)
  4. अनिक्षयवाद (संजय वेट्टलिपुत्र)
  5. भौतिकवाद (पकुध कच्चायन)
  6. पच्छवाद (आचार्य अजाति केशकम्बलीन)
  7. घोर अक्रियावादी (पूरन कश्यप)
  8. सनक संप्रदाय (द्वैताद्वैत) (निम्बार्क)
  9. रुद्र संप्रदाय (शुद्धाद्वैत) (विष्णुस्वामी वल्लभाचार्य)
  10. ब्रह्म संप्रदाय (द्वेत) (आनंद तीर्थ)
  11. वैष्णव सम्प्रदाय (विशिष्टाद्वैत) (रामानुज)
  12. रामभक्त सम्प्रदाय (रामानंद)
  13. परमार्थ सम्प्रदाय (रामदास)
  14. श्री वैष्णव सम्प्रदाय (रामानुज)
  15. बरकरी संप्रदाय (नामदेव)

वर्धमान महावीर एक संक्षिप्त परिचय:

• जन्म-कुंडग्राम (वैशाली)

• जन्म का वर्ष – 540 ई०पू०

• पिता- सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रिय कुल )

• माता त्रिशला (लिच्छवी शासक चेटक की बहन)

• पत्नी यशोदा,

• पुत्री अनोज्जा प्रियदर्शिनी भाई नंदिवर्धन,

.गृहत्याग – 30 वर्ष की आयु में ( भाई की अनुमति से)

• तपकाल- 12 वर्ष

.तपस्थल–जम्बीग्राम (ऋजुपालिका नदी के किनारे) में एक साल वृक्ष

• कैवल्य ज्ञान की प्राप्त 42 वर्ष की अवस्था में

• निर्वाण 468 ई०पू० में 72 वर्ष की आयु में पावा में

.धर्मोपदेश देने की अवधि 12 वर्ष

जैन धर्म की स्थापना

• जैन धर्म के संस्थापक इसके प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे।

• जैन परंपरा में धर्मगुरुओं को तीर्थंकर कहा गया है तथा इनकी संख्या 24 बताई गई है।

• जैन शब्द जिन से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ होता है इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला।

• ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महावीर को जिन की उपाधि मिली एवं इसी से जैन धर्म नाम पड़ा एवं महावीर इस धर्म के वास्तविक संस्थापक कहलाये।

• जैन धर्म को संगठित करने का श्रेय वर्धमान महावीर को जाता है। परंतु, जैन धर्म महावीर से पुराना है एवं उनसे पहले इस धर्म में 23 तीर्थकर हो चुके थे। महावीर इस धर्म के 24वें तीर्थंकर थे।

• इस धर्म के 23वें तीर्थंकर पाश्र्वनाथ एवं 24वें तीर्थंकर महावीर को छोड़कर शेष तीर्थंकरों के विषय में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। यजुर्वेद के अनुसार ऋषभदेव का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ। जैनियों के 23वें तीर्थकर पाश्र्वनाथ का जन्म काशी में 850 ई०पू० में हुआ था।

• पाश्र्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के इक्ष्वाकू वंशीय राजा थे। पाश्र्वनाथ ने 30 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया।

• पाश्र्वनाथ ने सम्मेत पर्वत (पारसनाथ पहाड़ी) पर समाधिस्थ होकर 84 दिनों तक घोर तपस्या की तथा केवल्य (ज्ञान) प्राप्त किया। पाश्र्वनाथ ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय और अपरिग्रहका उपदेश दिया। पार्श्वनाथ के अनुयायी निबंध कहलाये। भद्रबाहु रचित कल्पसूत्र में वर्णित है कि पार्श्वनाथ का निधन आधुनिक झारखंड के हजारीबाग जिले में स्थित पारस नाथ नामक पहाड़ी के सम्मेत शिखर पर हुआ।

• महावीर के उपदेशों की भाषा प्राकृत (अर्द्धमगधी) थी।

• महावीर के दामाद जामलि उनके पहले शिष्य बने।

• नरेश दधिवाहन की पुत्री चम्प

• स्यादवाद एवं अनेकांतवाद जैन धर्म के ‘सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम हैं। • जैन धर्म के अनुयायी, कुछ प्रमुख शासक थे- उदयन, चंद्रगुप्त मौर्य, कलिंगराज खारवेल, अमोघवर्ष राष्ट्रकूट राजा, चंदेल शासक

• जैन धर्म के आध्यात्मिक विचार सांख्य दर्शन से प्रेरित हैं

• अपने उपदेशों के प्रचार के लिए महावीर ने जैन संघ की स्थापना की।

• महावीर के 11 प्रिय शिष्य थे जिन्हें गणघट कहते थे।

• इनमें 10 की मृत्यु उनके जीवनकाल में ही हो गई। महावीर का 11वाँ शिष्य आर्य सुधरमन था जो महावीर की मृत्यू के बाद जैन संध का प्रमुख बना एवं धर्म प्रचार किया।

• 10 वीं शताब्दी के मध्य में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में चामुंड (मैसूर के गंग

वंश के मंत्री) ने गोमतेश्वर की मूर्ती का निर्माण कराया।

• चंदेल शासकों ने खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण कराया।

• मथुरा मौर्य कला के पश्चात जैन धर्म का एक प्रसिद्द केंद्र था।

• नयचंद्र सभी जैन तीर्थकरों में संस्कृत का सबसे बड़ा विद्वान था।

• महावीर के निधन के लगभग 200 वर्षों के पश्चात मगध में एक भीषण अकाल पड़ा।

• उपरोक्त अकाल के दौरान चंद्रगुप्त मौर्य मगध का राजा एवं भद्रबाहु जैन संप्रदाय का प्रमुख था।

• राजा चंद्रगुप्त एवं भद्रबाहु उपरोक्त अकाल के दौरान अपने अनुयायियों के साथ कर्नाटक चले गये।

• जो जैन धर्मावलंबी मगध में ही रह गये उनकी जिम्मेदारी स्थूलभद्र पर दी गई।

• भद्रबाहु के अनुयायी जब दक्षिण भारत से लौटे तो उन्होंने निर्णय लिया की पूर्ण नग्नता महावीर की शिक्षाओं का आवश्यक आधार होनी चाहिए।

• जबकि स्थूलभद्र के अनुयायियों ने श्वेत वस्त्र धारण करना आरंभ किया एवं श्वेतांबर कहलाये, जबकि भद्रबाहु के अनुयायी दिगं

जैन धर्म के संस्थापक कौन थे?

जैन धर्म के संस्थापक इसके प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे।

जैनधर्म के अंतिम तीर्थकर(24वें) कौन थे?

महावीर स्वामी

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भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 12
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