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1857 की क्रांति की शुरुआत, कारण एवं परिणाम की PDF Free Download
1857 की क्रांति की Notes
क्रांति का दूसरा नाम | इतिहासकार | नाम का अर्थ |
धर्मांधों का ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध | एल. ई. आर. रीज | धर्म में अंधे भारतीयों को ईसाईयों के विरुद्ध युद्ध करने वाला बताया गया। |
बर्बरता और सभ्यता के बीच युद्ध | टी. आर. होम्स | भारतीयों को बर्बर कहा गया और खुद को सभ्य बताते हुए यह कहा गया की भारतीय जो बर्बर थे, उन्हें सभ्य बनाने के क्रम में उन्होंने सभ्य लोगों के साथ विद्रोह किया। |
हिन्दू-मुस्लिम षड़यत्र | जेम्स आउट्रम, टेलर | इस विद्रोह को हिन्दू और मुसलिमों का मिला-जुला षड्यंत्र बताया गया, जिसमें अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया गया। |
सैनिक विद्रोह | लॉरेंस, सीले, ट्रेवेलियन, होम्स | इन्होंने इस विद्रोह को सैनिक विद्रोह की संज्ञा दी। |
भारतीय इतिहासकार
क्रांति का दूसरा नाम | इतिहासकार | नाम का तात्पर्य |
न प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, न प्रथम राष्ट्रीय आंदोलन तथा, न ही स्वतंत्रता संग्राम था | आर. सी. मजूमदार | इन्होंने आज़ादी के समय भारतीय सरकार से मतभेद होने के कारण 1857 की क्रांति को यह कहा था। |
सैनिक विद्रोह | दुर्गा दास, सर सैय्यद अहमद खां | इन भारतीय इतिहासकारों द्वारा उन ब्रिटिश इतिहासकारों का समर्थन किया गया, जिन्होंने इस क्रांति को एक सैनिक विद्रोह बताया था जैसे लॉरेंस, सीले आदि। |
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम | वी. डी. सावरकर | इन्होंने इस क्रांति को एक व्यापक स्वरुप माना। |
राष्ट्रीय विद्रोह | डिजरैली, अशोक मेहता | ब्रिटिश संसद में डिजरैली द्वारा इस क्रांति को एक राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा दी गई। |
1857 की क्रांति की शुरुआत
- 1857 की क्रांति की शुरुआत 29 मार्च, 1857 को मंगल पांडे के द्वारा बैरकपुर छावनी से किया गया। 10 मई, 1857 को मेरठ के सिपाहियों ने विरोध किया
- मेरठ से विद्रोही सैनिक ने दिल्ली मार्च का 11 मई, 1857 को बहादुर शाह जफर को भारत का बादशाह घोषित किया।
- मेरठ के सैनिकों का नेतृत्व बख्ता खान ने किया किया, धीरे-धीरे 1857 ई. का विद्रोह देश के अन्य क्षेत्रों में भी फैल गया।
- कानपुर में 5 जून, 1857 को विद्रोह की शुरुआत हुई। यहां पर पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब ने विद्रोह को नेतृत्व प्रदान किया, जिसमें उनकी सहायता तात्या टोपे ने की।
- लखनऊ में 4 जून, 1857 को विद्रोह की शुरुआत हुई। बेगम हजरत महल ने अपनी अल्पायु पुत्र बिरजिस कादिर को नवाब घोषित किया तथा लखनऊ स्थित ब्रिटिश रेजिडेंसी पर आक्रमण किया।
1857 की क्रांति के कारण
1857 की क्रांति होने के निम्नलिखित कारण थे जिनमें से मुख्य कारण भारतीय सैनिकों को चर्बी युक्त कारतूस प्रयोग करने की सलाह, लॉर्ड डलहौजी के राज हड़प नीति तथा ईसाई धर्म के प्रचार भारतीयों में असंतोष का मुख्य कारण था।
लॉर्ड डलहौजी की राज्य हड़प नीति और लॉर्ड वेलेजली की सहायक संधि ने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- राजनीति कारणों के साथ ही प्रशासनिक कारण भी क्रांति के लिए उत्तरदाई थे। इस समय कोई भारतीय उच्च पद तक नहीं पहुंच सकता था।
- ईसाई धर्म के प्रचार में भारतीयों के असंतोष को उभारा।
- 1857 की क्रांति में अंग्रेजों द्वारा भारत का आर्थिक शोषण भी एक प्रमुख कारण था। भारतीय सैनिक भू-राजस्व नीति के कारण दु:खी थे।
- सैनिक कारणों में ऐसे अनेक बिन्दु विधमन्न थे जो विद्रोह की पृष्ठभूमि के तैयार कर रहे थे। पदोन्नति से वंचित रखना, भारत की सीमाओं के बाहर युद्ध के लिए भेजा जाना तथा देश के बाहर जाने पर अतिरिक्त भत्ता नहीं देना इत्यादि भी 1857 की क्रांति में कारण थे ।
- मुगल बादशाह चुकी भारतीय जनता का प्रतिनिधित्व करता था इसीलिए उसके अपमान में जनता ने अपना अपमान महसूस किया और विद्रोह के लिए मजबूर हुए।
- चर्बीयुक्त करतूसो के प्रयोग की बात से सैनिकों में आक्रोश पैदा हुआ।
- यह 1857 की क्रांति का तत्कालीन कारण था।
- प्लासी के युद्ध के बाद निरंतर भारत का शोषण होता रहा जो शायद जन असंतोष का सबसे महत्वपूर्ण कारण था। इन सभी कारणों को देखते हुए अंततः भारतीय ने 1857 में क्रांति की शुरुआत की।
1857 की क्रांति के असफलता का कारण
- विद्रोहियों में नेतृत्व की कमी थी। संगठन तथा एकता का अभाव था।
- विद्रोहियों के पास सीमित हथियार एवं बम – बारूद का होना।
- ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, हैदराबाद के निजाम आदि राजाओं ने अंग्रेजों का खुलकर साथ दिया।
- 1857 के असफलता होने के तत्काल बाद ब्रिटिश क्रॉउन ने कंपनी से भारत पर शासन करने के सभी अधिकार वापस ले लिए।
- विद्रोहियों के बारे में जॉन लॉरेंस ने कहा कि यदि विद्रोहियों में एक भी योग नेता रहा होता तो हम सदा के लिए हार जाते।
- 1858 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा भारत में कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया। इसके बाद से भारत का गवर्नर जनरल वायसराय कहा जाने लगा।
1857 की क्रांति की शुरुआत 10 मई, 1857 ई. को मेरठ से हुई, जो धीरे-धीरे कानपुर, बरेली, झांसी, दिल्ली, अवध आदि स्थानों पर फैल गई।
१८५७ का स्वातंत्र्य समर (मूल मराठी नाम : १८५७चे स्वातंत्र्यसमर) एक प्रसिद्ध इतिहास ग्रन्थ है जिसके लेखक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी विनायक दामोदर सावरकर थे।
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 14 |
PDF साइज़ | 8 MB |
Category | History |
Source/Credits | google.Drive.com |
1857 की क्रांति – Indian Rebellion of 1857 History PDF Free Download