वैदिक साहित्य का इतिहास | History of Vedic Literature PDF In Hindi

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वैदिक साहित्य एवं संस्कृति का इतिहास- Vedic Literature History PDF Free Download

वैदिक साहित्य का परिचय

वैदिक साहित्य भारत का सबसे प्राचीन साहित्य है। यह साहित्य विशाल और सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान को अपने अन्दर समाहित किए हुए है। इसीलिए किसी भी विषय का सम्बन्ध हो उसका उत्स वेदों में खोजा जाता है।

वेद शब्द ग्रन्थ का वाचक होकर सम्पूर्ण ज्ञान का वाचक है। ज्ञान किसी भी विषय का हो सकता है। मानव जाति का प्राचीनतम इतिहास सामाजिक नियम, सदाचार, दर्शन, कला, धर्म आदि के ज्ञान का आधार वेद ही है।

वेद के पर्यायवाची शब्द अनेक है-श्रुति आम्नाय त्रयी आगम और निगम इनमें सबसे प्रचलित शब्द श्रुति है। प्राचीनकाल में वेद को गुरु परम्परा से सुनकर ही अध्ययन किया जाता था।

इसीलिए उसका नाम श्रुति है। वेद आध्यात्मिक ज्ञान के आधार है। सांस्कृतिक ज्ञान के स्रोत हैं। भारतीय आध्यात्मिक जीवन एवं उसके सांस्कृतिक विकास तथा समुत्कर्ष के अध्ययन के लिए वैदिक साहित्य कोश-ग्रन्थ प्रमाणित हो चुका है।

भारतीयों के अन्तरतम का परिपूर्ण ज्ञान करने के लिए सहस्राब्दियों से प्रचलित इस साहित्य का जब तक रसास्वादन नहीं कर लिया जाता, तब तक वह ज्ञान अपूर्ण ही रहता है।

वेद भारतीय परम्परा में प्राचीनतम और सर्वाधिक पवित्र मार्न जाने वाले ग्रन्थ हैं। मनु ने तो बहुत ही स्पष्ट शब्दों में कह दिया है कि “धर्म जिज्ञास्यमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः ” धर्म-विषयक जिज्ञासा के समाधान के लिए श्रुति ही प्रमाण है।

“वेदोऽखिलो धर्म मूलम्” “सर्वज्ञानमयो हि सः”

चातुर्वर्ण्य त्रयो लोकाश्चत्वारश्वाश्रमाः पृथक्।

भूतं भव्यं भविष्यं च सर्व वेदात् प्रसिद्धयति ।।

वेद धर्म का मूल और समस्त ज्ञान से युक्त है। चारों वर्ण, तीनों लोक, चारों आश्रम, भूत, वर्तमान चारों आश्रम, भूत, वर्तमान और भविष्य इन सबका परिज्ञान वेद से होता है।

ऊपर के उद्धरणों से भारतीय जीवन में वेदों की महनीय महत्ता का स्वतः आभास मिल जाता है।

वेद शब्द विद धातु से बना है। विद धातु चार अर्थों में प्रयुक्त होती है-ज्ञान, सत्ता, लाभ और विचारणा। यहाँ यह ज्ञान अर्थ में प्रयुक्त है।

भारतीय परम्परा उन ऋषियों महर्षियों को मन्त्रद्रष्टा ऋषि कहती है, जिन्होंने वेद मन्त्रों का मनन किया है। ऋग्वेद के एक मन्त्र में ऐसा भाव मिलता भी है ऋषियों ने अपने अन्तःकरण में जो वाक (वेदवाणी) प्राप्त की. उसे उन्होंने समस्त मानवों को पढ़ाया।”

यास्क ने भी निरुक्त में लिखा है-मन्त्रामननात् छन्दांसिछादनात् तथा “ऋषिदर्शनात्” अर्थात् ऋषियों ने मन्त्रों को देखा किन्तु आज प्रचारलब्ध वेद शब्द का व्युत्पत्ति-लभ्य अर्थ ‘ज्ञान’ है।

विन्टरनिट्ज ने भी अपना आशय इसी अर्थ में व्यक्त किया है, जहां वे ‘The knowledge Par excellence” तथा “The sacred the religious knowledge” लिखते हैं।””

यदि वेद तथा वैदिक साहित्य शब्द का सूक्ष्म विवेचनात्मक अध्ययन करें, उस स्थिति में जब हम वेद शब्द का अर्थ ज्ञान करते है, जैसा कि आज सर्वसम्मत विचार है तब वेद और विद्या दोनों ही समान धातु से निष्पन्न शब्द प्रतीत होते हैं इसलिए मूलतः विद्या और वेद शब्द समानार्थक ही है।

इस दृष्टि से वेद शब्द का समानार्थक प्रयोग आयुर्वेद, धनुर्वेद आदि शब्दों के रूप में प्राचीन काल से चला आ रहा है। इस प्रकार आश्वलायन श्रौतसूत्र में अनेक विद्याओं के साथ वेदशब्द का प्रयोग किया गया है।

“मन्त्र ब्राह्मणयोर्वेद नामधेयम् ।

परिभाषा के अनुसार मन्त्र भाग और ब्राह्मण भाग दोनों के लिए वेद शब्द चिरकाल से प्रयोग होता चला आ रहा है और यदि हम संकुचित दृष्टि से इस शब्द पर विचार करें तो वेद के मन्त्र भाग या संहिता भाग को ही वेद कह सकते हैं जो कि मौलिक दृष्टि से अधिक संगत है।

वस्तुतः वेद शब्द का वास्तविक अभिप्राय मात्र संहिता भाग से है क्योंकि ब्राह्मण आरण्यक उपनिषद् भाग उसकी व्याख्यान व माष्य ही है।

इस परवर्ती साहित्य को सम्पूर्ण वैदिक साहित्य इस शब्द के अन्तर्गत अवश्य ही समाहित कर सकते हैं किन्तु वेद शब्द से इस सम्पूर्ण वाड्मय को ग्रहण करना समीचीन नहीं है। समस्त वैदिक साहित्य को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है

(1) संहिता – जो कि मन्त्र, प्रार्थना स्तयन आशीर्वाद, यज्ञ विषयक मन्त्रों संग्रहात्मक सूक्त। दूसरे शब्दों में, मन्त्रों के समुदाय का नाम ही संहिता है। के

(2) ब्राह्मण-Theological matters यज्ञ संबंधी विधान रीतियां एवं यशोत्सव विषयक समस्त वैदिक ज्ञान के संग्रहात्मक मंत्र ब्राह्मण हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ब्राह्मण-ग्रन्थों में एक प्रकार से सहिताओं के संग्रहीत मन्त्रों की विस्तृत व्याख्या की गई है, किन्तु प्राधान्येन ब्राह्मण-ग्रन्थों का लक्ष्य यज्ञ का विस्तारपूर्वक वर्णन करना ही है।

(3) आरण्यक (Forest Test) – आरण्यक तथा उपनिषद दोनों ही ब्राह्मण-ग्रन्थों के निकटवर्ती है तथा इन्हें भी हम संहिताओं की व्यवस्था के रूप में स्वीकार कर सकते हैं किन्तु इस साहित्य का ब्राह्मण साहित्य के साथ मौलिक अन्तर भी है। आरण्यक साहित्य में यज्ञों के आध्यात्मिक रूप का वर्णन है. तो उपनिषद में प्राचीनतम दार्शनिक विवेचन आरण्यक साहित्य जन समाज.

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भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 144
PDF साइज़20 MB
CategoryLiterature
Source/Creditsdrive.google.com

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