पंचायती राज व्यवस्था | Panchayati Raj System PDF In Hindi

‘पंचायती राज व्यवस्था : स्वतंत्र भारत में पंचायत’ PDF Quick download link is given at the bottom of this article. You can see the PDF demo, size of the PDF, page numbers, and direct download Free PDF of ‘Panchayati Raj System’ using the download button.

भारत में पंचायती राज व्यवस्था – Panchayati Raj Vyavastha PDF Free Download

पंचायती राज व्यवस्था और विकेन्द्रित शासन

प्रस्तावना

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को 50 वर्ष के नियोजन और विकास से पर्याप्त लाभ न मिलने का एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि विकेन्द्रित संस्थाओं के माध्यम से उनके आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने और उसके प्रतिपादन में उन्हें शामिल न किया जाना था।

राज्यों में भी, जहाँ अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण के कानूनी प्रावधान विद्यमान थे, वे पंचायतों में किसी महत्वपूर्ण सीमा तक प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं कर सके। इसका कारण अनेक राज्यों में पंचायत के चुनाव नियमित रूप से न होना था।

बिहार एक ऐसा अनोखा उदाहरण है जहाँ पंचायत के चुनाव बहुत पहले अर्थात 1978 में हुए थे। परन्तु 73वें संविधान संशोधन के अनुच्छेद 243-घ के द्वारा पंचायती राज व्यवस्था ( पी आर एस) के सभी तीन स्तरों पर अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति तथा इन समूहों की महिलाओं के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

अनुच्छेद 243-ण के अनुसार हर पाँच वर्ष में पंचायत के नियमित चुनाव कराए जाने आवश्यक है।

बाद में 73वें संशोधन अधिनियम के प्रावधानों को पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996 के अनुसार 5वें अनुसूचित क्षेत्रों तक भी बढ़ाया गया।

यह अधिनियम ग्राम सभा व पंचायतों को न केवल आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं बनाने में बल्कि इन क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों पर अनुसुचित जनजातियों के पारंपरिक अधिकारों के संरक्षण का अधिकार भी प्रदान करता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में जाति प्रथा के निरन्तर प्रचलन और अत्यधिक आर्थिक तथा सामाजिक असमानताओं को ध्यान में रखते हुए जन प्रतिनिधियों के रूप में निर्वाचित अनुसूचित जातियो व अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों के लिए पंचायतों में प्रभावी रूप से कार्य करना चुनौतीपूर्ण है।

यह अध्याय इस बात की जांच करता है कि क्या वंचित समुदाय, पंचायतों के कार्य में कुछ प्रभाव लाने का प्रयास कर रहे हैं या परंपरागत शक्तियों का निरन्तर प्रबल होना जारी है।

यह ध्यान देने के लिए भी सुझाव दिया जाता है कि उपेक्षित वर्गों ने अपनी शिकायतें रखने के लिए पंचायतों को किस सीमा तक सफल पाया है। उन्हें वास्तव में अधिकार देने में क्या बाधाएं है।

ऐसे विश्लेषणों के आधार पर अध्याय के अंतिम भाग में सिफारिशें की गई है कि केन्द्र और राज्य को क्या कदम उठाने चाहिए जिससे अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोग पंचायतों में प्रभावी रूप से भाग ले सकें ताकि राजनैतिक आरक्षण की अधिक सार्थक बनाया जा सके।

73वां संशोधन अधिनियम व्यवस्था से पूर्व पंचायती राज

संविधान सभा में पंचायती राज के विषय पर सक्रिय बहस हुई थी तथा अनेक सदस्यों ने ग्रामी और ग्राम पंचायतों को संविधान में उचित स्थान देने के महत्व पर बल दिया था।

इसके परिणामस्वरूप अनुच्छेद-31-क जोड़ा गया जो बताता है राज्य ग्राम पंचायतों के संगठन के लिए कदम उठाएगा और उन्हें ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत शासन की इकाईयों के रूप में कार्य

करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक होंगी इस अनुच्छेद को बाद में पुनः संख्यांकित करके मैं अनुच्छेद 40 किया गया तथा यह संविधान के राज्य नीति निर्देशक सिद्धान्तों का भाग बना। तथापि, पंचायतों को प्रभाव में लाने के लिए आवश्यक विधान तत्काल नहीं बनाया गया।

स्वतंत्रता के बाद की अवधि में ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के साधन के रूप में पंचायतों की स्थापना के बजाय सामुदायिक विकास कार्यक्रम और राष्ट्रीय विस्तार सेवा आरम्भ की गई जिसका उद्देश्य देश का चौतरफा विकास करना था।

परन्तु ये कार्यक्रम ग्रामीण विकास में जन सहभागिता का आह्वान नहीं कर सके।

इन कार्यक्रमों की ओर ग्रामवासियों का उदासीन रुख और ऐसी उदासीनता के कारण जानने और उपाय सुझाने के लिए कृषि मंत्रालय, भारत सरकार ने श्री बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक दल का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट 24 नवम्बर 1957 को प्रस्तुत की।

इस रिपोर्ट ने भारत में पंचायत राज की नींव रखी। उनके अपने शब्दों में ‘जब तक हम प्रतिनिधि को नहीं ढूंढते या लोकतांत्रिक स्थानीय संस्थानों की खोज या स्थापना नहीं कर लेते जो समुदाय की आवश्यकता और इच्छा के अनुसार स्थानीय.

73वां संशोधन अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं

ग्राम सभा का गठन

1963 में पंचायत राज आंदोलन में ग्राम सभा की स्थिति पर अध्ययन दल की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि ग्राम सभा को हर राज्य में सांविधिक रूप से मान्यता दी जानी चाहिए।

परन्तु सभी राज्यों द्वारा अपने पंचायत विधानों में इस उपबंध को शामिल नहीं किया गया था। 73वां संशोधन अधिनियम बन जाने से राज्यों के लिए यह अनिवार्य हो गया है कि वे ग्राम सभा अपने पंचायती राज कानून का अभिन्न अंग बनाएं।

अतः इस संबंध में केन्द्रीय अधिनियम ने ग्राम स्तर पर प्रत्यक्ष लोकतंत्र की स्थापना ताकि सभी मतदाताओं को ग्रामीण समुदाय के विकास में भाग लेने के योग्य बनाए जा सके।

नियमित और सामयिक चुनाव सुनिश्चित करना

पश्चिम बंगाल जैसे कुछ अपवादों को छोड़कर अन्य राज्यों द्वारा पंचायतों के नियमित चुनाव नहीं करवाए जा रहे थे। उदाहरण के लिए बिहार में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद के लिए चुनाव क्रमशः 1978 1979 और 1980 में हुए थे।

तमिलनाडु में 10 वर्ष के अंतराल के बाद पंचायत के चुनाव 1996 में हुए थे। संविधान के 73वें संशोधन के अनुसार सभी पंचायती राज संस्थाओं के लिए नियमित और सामयिक चुनाव कराना अनिवार्य है।

73वें संशोधन में यह व्यवस्था भी है कि अगर पंचायतें भंग की जाती हैं तो चुनाव छ माह के अंदर कराए जाने आवश्यक हैं।

कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण करना

अध्ययन प्रकट करते हैं कि पंचायतों पर ग्रामीण समाज के शक्तिशाली समुदाय जैसे जमींदार और साहूकारों का अधिकार था। इन स्थानीय लोकतांत्रिक तथा स्वशासी संस्थाओं में अनु० जाति और अनु0 जनजाति की सहभागिता की गुंजाइश नही थी।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 49
PDF साइज़15 MB
CategoryEducation
Source/Creditsdrive.google.com

Alternate PDF Download

भारत में पंचायती राज व्यवस्था – Panchayati Raj System In India PDF Free Download

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!