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भारतीय संगीत का विस्तृत इतिहास – History of Indian Music PDF Free Download
संगीत का इतिहास क्यों पढ़ना चाहिए ?
” इतिहास हमें एक ऐसी दुनिया में ले जाता है, जहाँ हमें अपनी खोई हुई जिन्दगी प्राप्त होती है, जहाँ हमें विकास की मंजिल की ओर अग्रसर होने के लिए नवीन आधार मिलते हैं ।” —जोन होल
“मानव के तथ्यों के विस्तार क्रम का स्पष्टीकरण करना और समझना ही इतिहास नहीं है, बल्कि उस विस्तार क्रम की गहराइयों का सजीव चित्रण करना हो इतिहास है ।” – रोवर्ट बील
“मानव की आत्मा की सजीव झाँकी यदि आपको करनी हो, तो आप संगीत के इतिहास को पढ़िये ।” — कुमारी ऐलिया रोज
“इतिहास का प्रकाशन ही हमें मानव की सजीव गौरव गरिमा का स्फूर्ति पूर्ण सौरभ प्रदान करता है, इतिहास हमारी प्रसुप्त धमनियों में नवजीवन की धारा प्रवाहित करता है, और हमें जिन्दगी की देदीप्यमान मंजिल की ओर ले जाता है। – कुमारी वायाला
“संगीत का इतिहास एक ऐसा इतिहास है, जिसमें मानव का सम्पूर्ण रूप प्रतिविम्बत होता है ।” – ईलियट
संगीत का जन्म
धार्मिक दृष्टिकोणः
संगीत का जन्म कैसे हुआ, इस सम्बन्ध में विश्व के विद्वानों के विभिन्न मत हैं। कहा जाता है कि संगीत पहिले बृह्माजी के पास था, और अन्त में नारदजी द्वारा संगीत का प्रचार इस पृथ्वी पर हुआ ।
संगीत की उत्पत्ति प्रारम्भ में वेदों के निर्माता बृह्माजी द्वारा हुई। बृह्मा जी ने यह कला शिवजी को दी और शिवके द्वारा देवी सरस्वतो को प्राप्त हुई। सरस्वतीजी को इसलिये “वीणा पुस्तक धारिणी” कह कर संगीत और साहित्य की अधिष्ठात्री माना है ।
सरस्वतीजी से संगीत कला का ज्ञान नारदजी को प्राप्त हुआ, नारदजो ने स्वर्ग के गन्धर्व, किन्नर एवं अप्सरानों को संगीत शिक्षा दी।
वहाँ से ही भरत, नारद श्रीर हनुमान प्रभृति ऋषि संगीत कला में पारंगत होकर भू लोक पर संगीत कला के प्रचारार्थं अवतीगं हुए ।
एक ग्रन्थकार के मतानुसार, नारदजी ने अनेक वर्षों तक योग साधना की, तब शंकरजी ने उन पर प्रसन्न होकर संगीत कला प्रदान की।
पार्वतीजी की शयन मुद्रा को देखकर शिवजी ने अनेक अंग प्रत्यंगों के श्राधार पर “रुद्रवीणा” बनाई और अपने पांचों मुखों से पांच रागों की उत्पत्ति की।
तत्पश्चात् छटा राग पार्वतीजी के श्री मुख से उत्पन्न हुआ। शिवजी के पूर्व पच्छिम, उत्तर, दक्षिरण, तथा आकाशोन्मुख से क्रमशः भैरव, हिडोल, मेघ, दीपक, और श्री राग प्रगट हुए एवं पार्वतीजी द्वारा कौशिक राग की उत्पत्ति हुई |
भारतीय संगीत का इतिहास
प्रगैतिहासिक काल से ही भारत में संगीत कीसमृद्ध परम्परा रही है गिने-चुने देशों में ही संगीत की इतनी पुरानी एवं इतनी समृद्ध परम्परा पायी जाती है।
माना जाता है कि संगीत का प्रारम्भ सिंधु घाटी की सभ्यता के काल में हुआ हालांकि इस दावे के एकमात्र साक्ष्य है उस समय की एक नृत्य बाला की मुद्रा में कांस्य मूर्ति और नृत्य, नाटक और संगीत के देवता की पूजा का प्रचलन सिंधु घाटी की सभ्यता के पतन के पश्चात् वैदिक संगीत की अवस्था का प्रारम्भ हुआ जिसमें संगीत की शैली में भजनों और मंत्रों के उच्चारण से ईश्वर की पूजा और अर्चना की जाती थी।
इसके अतिरिक्त दो भारतीय महाकाव्यों रामायण और महाभारत की रचना में संगीत का मुख्य प्रभाव रहा। भारत में सांस्कृतिक काल से लेकर आधुनिक युग तक आते-आते संगीत की शैली और पद्धति में जबरदस्त परिवर्तन हुआ है।
भारतीय संगीत के इतिहास के महान संगीतकारों जैसे कि स्वामी हरिदास, तानसेन, अमीर खुसरो आदि ने भारतीय संगीत की उन्नति में बहुत योगदान किया है जिसकी कीर्ति को पंडित रवि शंकर, भीमसेन गुरूराज जोशी, पंडित जसराज, प्रभा अत्रे, सुल्तान खान आदि जैसे संगीत प्रेमियों ने आज के युग में भी कायम रखा हुआ है।
भारतीय संगीत में यह माना गया है कि संगीत के आदि प्रेरक शिव और सरस्वती है।[1] इसका तात्पर्य यही जान पड़ता है कि मानव इतनी उच्च कला को बिना किसी देवी प्रेरणा के. केवल अपने बल पर विकसित नहीं कर सकता।
उत्तर भारतीय शास्त्रीय संगीत का उद्भव
संगीत मानव जीवन को मधुर बनाता है और जीवन की शुभ घड़ियों में आनंद बढ़ाता है। संगीत केवल कर्णप्रिय ही नहीं अपितु हृदय को धैर्य तथा आनंद देने वाला होता है।
इसका वास्तविक और यथार्थ प्रभाव अनंत होता है। इसके प्रभाव से अनेक आत्माओं को सांसारिक समस्याओं और मानसिक परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है।
यदि व्यापक दृष्टि से देखा जाए तो संगीत संपूर्ण सृष्टि में व्याप्त है भारत के समस्त त्योहारों में संस्कारों में संगीत एक अनिवार्य अंग बन गया है। संगीत का मानव जीवन में बड़ा महत्व है।
‘आजादी की लड़ाई में राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत गीत गाकर परतंत्र भारत को स्वतंत्र कराने में वंदे मातरम् जैसे गीतों को कौन नकार सकता है संगीत जहाँ हमारे आध्यात्मिक, धार्मिक जीवन का सहयोगी है वहीं संगीत द्वारा हमारे दैनिक जीवन की चिंताएं दूर होकर हमें संगीत श्रवण से उत्साह प्राप्त होता है।
चिकित्सा के क्षेत्र में भी भारत सहित विश्व के अनेक देशों में संगीत को चिकित्सा का साधन स्वीकारा गया है. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि संगीत मानव जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है।
संगीत की उत्पत्ति के संबंध में अनेक धारणाएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि संगीत प्रकृति से प्राप्त है। प्रकृति में पशुओं की विविध बोलियों, पक्षियों की चहचहाट तथा वायु की सनसनाहट आदि सम्मिलित हैं।
जिस प्रकार संगीत का प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है उसी प्रकार प्रकृति भी संगीत के प्रभाव से अछूती नहीं है। सृष्टि के कण-कण में संगीत की धारा सदियों से बहती चली आ रही है अर्थात संपूर्ण जगत ही संगीतमयी है।
वैदिक काल का संगीत
भारतीय संगीत का आदि रूप वेदों में मिलता है। वेद के काल के विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद है, किंतु उसका काल ईसा से लगभग 2000 वर्ष पूर्व था- इसपर प्राय: सभी विद्वान् सहमत है। इसलिए भारतीय संगीत का इतिहास कम से कम ४००० वर्ष प्राचीन है।
वेदों में वाण, वीणा और कर्करि इत्यादि तंतु वाद्यों का उल्लेख मिलता है। अवनद्ध वाद्यों में दुद्धि, गर्गर इत्यादि का घनवाद्यों में आघाट या आघाटि और सुषिर वाद्यों में बाकुर, नाडी, तूणव, शंख इत्यादि का उल्लेख है।
यजुर्वेद में ३० कांड के १९ वें और २०वें मंत्र में कई वाद्य बजानेवालों का उल्लेख है जिससे प्रतीत होता है कि उस समय तक कई प्रकार के वाद्यवादन का व्यवसाय हो चला था।
संसार भर में सबसे प्राचीन संगीत सामवेद में मिलता है। उस समय “स्वर” को “म” कहते थे। साम का संगीत सेइतना घनिष्ठ संबंध था कि साम को स्वर का पर्याय समझने लग गए थे।
छांदोग्योपनिषद् में यह बात प्रश्नोत्तर के रूपमें स्पष्ट की गई है। का साम्रो गतिरिति? स्वर इति होवाच (छा. उ. 1.84) (प्रश्न साम की गति क्या है?” उत्तर “स्वर”।
साम का “स्व” अपनापन “स्वर है। “तस्य हैतस्य साम्रो यः स्वं वेद, भवति हास्य स्वं तस्य स्वर एव स्वम् अर्थात् जो साम के स्वर को जानता है उसे “स्व” प्राप्त होता है। साम का “स्व” स्वर ही है।
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 531 |
PDF साइज़ | 39 MB |
Category | Music, History |
Source/Credits | archive.org |
भारतीय संगीत का इतिहास – History of Indian Music PDF Free Download