गीता का भक्ति योग – Gita Ka Bhakti Yog Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
भगवान्ने श्रद्धा प्रेमपूर्वक भजन करनेवाले सगुण-उपासकों–भक्तों-) को सबसे श्रेष्ठ यतलाया- ते मे युक्ततमा मता’ (१२। २ ) (छठे अष्यायके सैंतालीसवें श्लोकमें भी भगवान्ने
इसी प्रकार ‘स मे युक्ततमो मत पदोंसे अपने मक्तोंको सबसे श्रेष्ठ बतलाया है ) । फिर भगवान्ने बतलाया कि निर्गुण और सगुण- दोनों ही उपासक मुझे प्राप्त होते हैं ।
उनमें भगवान ने देहाभिमानी निर्गुण उंपासककों तो अपनी प्रात्ति कठिनः ब्तलायी, पर भगवत्परायण सगुण-उपासकोंको अपनी प्राप्ति सुगम बतलाते हुए कहा कि उनका मैं शीघ्र ही मृत्युसंसार-सागरसे उद्धार कर देता हूँ ।
इसके याद भगवान्ने कहा कि मन और बुद्धि मुझमें ही अर्पण कर दो, तो मेरी प्राप्ति हो जायगी । ऐसा नहीं कर सकते, तो अभ्यासयोगसे मेरी आसिकी इच्छा करो।
अन्यास भी नहीं कर सकते, तो सब कर्म मेरे अपथा कर दो । ऐसा भी नहीं कर सकते, तो सत्र कमोके पलका त्याग कर दो। तात्पर्य यह कि किसी प्रकार मुझसे सम्बन्ध जोड़ लो और संसारसे सम्बन्ध तोड़ लो ।
भगवान् के साथ जीवगात्रका खतः सिद नित्य-सम्बन्ध है । परंतु संसारसे अपनी सम्बन्ध मान लेने के कारण जीव भगवान्से विमुख हो जाता है । सब करके फलका त्याग करनेसे संसारसे माने हुए त्याग हो जाता है,
जिससे तत्काल परमेशान्तिकी प्राप्ति हो जाती है-त्यागाच्छा्तिरनन्तरम्’ ( १२ । १२ ) । फिर भगवान् ने उस परमशान्तिको प्रात महापुरुषों के लक्षणोंका वर्णन किया।
अन्तमें अपने परायण होकर उन लक्षणोको आदर्श मानकर गीतामें भक्तिका वर्णन विशेषरूपसे सातवें अध्यायसे आरम्भ होता है । आठवें अध्यायमें अजुनके द्वारा प्रश्न करनेके कारण दूसरा विषय आ गया ।
अतः सातवें अध्यायमें जो बातें शेष रह गयी थीं, उनका वर्णन नवे अध्यायमें तथा दसवें अध्यायके आरम्भमें ( ग्यारहवें श्लोकतक) किया गया। इस प्रकार सातवें और नवें-दोनों अध्यायोंमें रखा है ।
लेखक | Gita Press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 460 |
Pdf साइज़ | 20.5 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
गीता का भक्ति योग – Gita Ka Bhakti Yog Book/Pustak Pdf Free Download