भू आकृति विज्ञान | Geomorphology PDF In Hindi

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भौतिक भूगोल सविंदर सिंह – Geomorphology PDF Free Download

भू-आकृति विज्ञान 

जलोढ़ मैदान (Piedmont alluvial plain) जब किनारे के सहारे होता है । वडे कणों का जमाव नदी को अधिक विस्तृत तथा संगठित हो जाते हैं तो उनकी बेटी की ओर होता है

तथा महीन कणों का निक्षेप बन्ध परिधि के समीप मानव-आवास बन जाते है तथा उनमे के बाह्य भाग की ओर होता है। तटबन्धो की ऊँचाई क्रमिक विकास के कारण नगरो तक का विकास हो जाता नदी के जल-तल से कई मीटर तक होती है परन्तु है ।

उदाहरण के लिए रोन नदी की ऊपरी घाटी में सामान्य ऊँचाई 10 मीटर के अन्दर ही होती है। मिसौ जलोढ पंखे के पास कई नगर बन गये हैं।

जलोढ़ पक्षों सोपी नदी के प्राकृतिक तटबन्ध की ऊँचाई 6 से 7 6 मे ऊपर बजरी भे जल रिस कर निचली परट में चला मीटर तक पायो जाती है ।

तटवन्ध, विस्तृत तथा भया जाता है। शुष्क मौसम में जब ऊपर का जल सुप्त हो जाता नक बाढ़ो को छोडकर, नदी के जल के पाश्विक फैलाव है तो कम गहराई वाले कुएँ खोदकर उसे जल आसानी म की सीमा निर्धारित करते हैं ।

अत मुद्ढ एव ऊंचे तट प्राप्त किया जा सकता है। कृषि की दृष्टि जलोदर बन्धी पर वाह् ढोल की ओर मानवआवाम तथा बस्तियों पंख अत्यधिक महत्व वाले होते हैं। पास की परिधि के का विकास हो जाता है।

ये तटबन्ध कृषि के लिये भी पार महीन कणो वाली जलोढ़ मिट्टी (कछारी मिट्टी) का प्रयोग किये जाते हैं, क्योकि इनमे जल-तल (Water विस्तार होता है।

यह मिट्टी खेती के लिए अधिक table) ऊंचा रहता है, अत पर्याप्त नमी मिलती रहती उपजाऊ होती है । इन आँखों में चोटी लेकर परिधि है सामान्य रूप से तटबन्ध नदी के बाढ की रोक धाम

साम्यावस्था के अन्तर्गत गिलवर्ट ने प्रतिपादित किया कि किसी भी आहति के अन्तिम रूप पर क्रियाशील वत्त का कुल योग शून्य होता है. ([06 $घ७३ ० ॥86 070६5 ९98 00 ॥6 वीए8 णिए ल्यूपथा०0 इ०० ) ।

इन्होंने इस संकल्पना का प्रयोग लैकोलिय के निर्माण को प्रक्रिया के विश्नेषुण के दौरान किया ।

नैकोलिथ के निर्माण के सभय आरोही मैगमा (संअं98 ४7980) का चालन बल (97५08 #0०००) तब तक चलता रहता है जबतक कि वह (चालन बल) समान परिमाण वाले प्रतिरोधी (ए८भआ98) बल द्वारा प्रतिघादित (००४ए४४००) नहीं हो जाता ।

अर्थात्‌ जब तक प्रतिरोधी बल मे चालन बल अधिक रहता हैं तत्॒ तर्क मैगमा ऊपर उठता रहता है और लैंकोलिय मे विम्वार होता जाता है परन्तु जब प्रतिरोधी वल चालन बल के वराबर हो जाता है तो साम्यावस्था की स्थिति आ जाती है और लेकोलिय का विस्तार स्थिर हो जाता है ।

इस तरह न्यूनतम वत्त का सिद्धान्दनियम कार्य करने लगता हैं (अर्थात्‌ बल का सकल योग शुन्‍्य हो जाता है) ।

शिलवर्ट ते इसी नियम का प्रयोग नदी के कार्य के सन्दर्भ मे भी किया है। नदी का जल-प्रवाह नीचे की ओर (9०७४ ४:८४77) गुसुन्व द्वारा होता है । इस तरह नदी तत्न की ऊर्जा भ्रवाह-वेग के रूप मे होती है।

इस प्रवाह-वेग में जलभार्ग की रगड से उत्पत्त प्रतिरोध (ड८झ४9॥८७) से व्यवधान होता है । जब तत्न की कर्जा (प्रवाह-वेग) एक रमड-जनित प्रतिरोध पराबर होते है तो साम्यावस्था की स्थिति आ जाती है और स्यूनतम बल (१८४६६ /०८०) को नियम कार्य करता है।

इस तरह की स्थिति को शाप्त नदी की चरिच्छेदिका कौ गिलबर्ट ने ‘साम्यावस्था वी परिच्छेदिकाँ कहा है. (कार्यों को साम्यावस्था–््पुष्माणिएणय ० 280(075–चालन बल (नदी के सन्दर्भ में गुरुत्व द्वारा चालित प्रवाह वेग) एवं प्रतिरोधो बल के बीच साम्याचस्था) एवं इस अवरथा की प्राप्त नदी को ‘अवणित नदी[ भ्रमबद्ध गंदी (872026 ए४९/) बताया है ।

गिलवर्ट ने इस सम्यावस्था के नियम एवं ‘प्रवशित’ की संकेल्पता जा अयोग उन सभी स्थलल्पों झुवं प्रक॒मो दे लिये किया जिसका उन्होने अध्ययन एवं विश्लेषण किया है ।

यधा–बोनविली झील के सन्दर्भ में ‘प्रवणित पुलिन” (82060852०), सियरा पर्वत के सन्दर्भ मे ‘प्रवणित पहाडी-डाल! (74066 छ॥809८) ।

गिलवर्ट ने स्थनत्पों दे निर्माण को दो प्रतिदनन्दी प्रव्नत्तियों (८०७०७९४॥ह ॥शातल्त थक) का प्रतिफल बताया है–(+) विविधता के हिर्माण की प्रद्त्ति तथा (8) एकलूप्रता/ममरूपता की प्रहहित ।

समय के सन्दर्भ मे भी गिलवर्ट की अवधारणा भूचैज्ञानिकों से सर्ववा भिन्‍न है। उन्होंने बताया कि भू” गर्शिक समय’ (8०० ०हां० #ए०) लम्बद्धलेयात्मक (५५७०) होता हैं।

फोई भी घदना (८४६०) गौ (प90७॥5) की नाडीजाल (70575) का प्रतिमिधित्व करती है (9 ८४९॥769९5६॥05 & 9६४७३ ०| छ्षप्रेष्शाध 79005) ।

एथ्तरी की गति आधारभुत लय होती है. (ग्र०00०॥ रण ॥6 ध्या 48 ध७ ७४३० ॥9४४0) ।

इस लय (पृथ्वी की गति) से जलवायु प्रभावित होती है और जलवायु भू-गभिक प्रक्रमो को प्रभावित करती है ।

विलबर्ट ने इस अवधारणा एवं विकास (८ए०७४०॥) या. “दल्कम-माप’ (धघए०/) संदृश प्रगामी प्रक्रिया (छ्ाएट्टाट5श५९ छ70065४) से प्रात्त अवधारणा भें अन्तर स्थापित किया ।

लेखक सविंद्र सिंह – Savindra Singh
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 689
PDF साइज़ 22 MB
Category भूगोल(Geography)

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