गरुड़ पुराण श्लोक अर्थ सहित | Garud Puran PDF In Hindi

गरुड़ पुराण सारोद्धार – Garud Purana Book PDF Free Download

श्लोक अर्थ सहित

श्रीभगवान् बोले-हे पक्षीन्द्र! सुनो, मैं उस यममार्गके विषयमें कहता हूँ, जिस मार्गसे पापीजन नरककी यात्रा करते हैं और जो सुननेवालोंके लिये भी भयावह है॥ १३ ॥

ये हि पापरतास्ताक्ष्य दयाधर्मविवर्जिताः । दुष्टसङ्गाश्च सच्छास्त्रसत्संगतिपराङ्मुखाः॥१४॥

आत्मसम्भाविताः स्तब्धा धनमानमदान्विताः। आसुरं भावमापत्रा दैवीसम्पद्विवर्जिता:॥ १५॥

अनेकचित्तविभ्रान्ता मोहजालसमावृताः । प्रसक्ताः कामभोगेषु पतन्ति नरकेऽशुचौ ॥ १६ ॥

ये नरा ज्ञानशीलाश्च ते यान्ति परमां गतिम्। पापशीला नरा यान्ति दुःखेन यमयातनाम् ॥ १७॥

पापिनामैहिकं दुःखं यथा भवति तच्छृणु । ततस्ते मरणं प्राप्य यथा गच्छन्ति यातनाम् ॥ १८ ॥

हे ताक्ष्य! जो प्राणी सदा पापपरायण हैं, दया और धर्मसे रहित हैं,जो दुष्ट लोगोंकी संगतिमें रहते हैं, सत्- शास्त्र और सत्संगतिसे विमुख हैं; जो अपनेको स्वयंप्रतिष्ठित मानते हैं,

अहंकारी हैं तथा धन और मानके मदसे चूर हैं, आसुरी शक्तिको प्राप्त हैं तथा दैवी सम्पत्तिसे रहित हैं;

जिनका चित अनेक विषयोंमें आसक्त होनेसे भ्रान्त है, जो मोहके जालमें फँसे हैं और कामनाओंके भोगमें ही लगे हैं, ऐसे व्यक्ति अपवित्र नरकमें गिरते हैं।

जो लोग ज्ञानशील हैं, वे परम गतिको प्राप्त होते हैं। मापी मनुष्य दुःखपूर्वक यम यातना प्राप्त करते हैं ॥ १४-१७॥

पापियोंको इस लोकमें जैसे दुःखको प्राप्ति होती है और मृत्युके पश्चात् वे जैसी यमयातनाको प्राप्त होते हैं, उसे सुनो ॥

यथोपार्जित पुण्य और पापके फलोंको पूर्वमें भोगकर कर्मके सम्बन्धसे उसे कोई शारीरिक रोग हो जाता है॥१९॥

आधि (मानसिक रोग) और व्याधि (शारीरिक रोग)-से युक्त तथा जीवनधारण करनेकी आशासे उत्कण्ठित उस व्यक्तिकी जानकारीके बिना ही सर्पकी भाँति बलवान् काल उसके समीप आ पहुँचता है॥ २० ॥

उस मृत्युकी सम्प्राप्तिको स्थितिमें भी उसे वैराग्य नहीं होता। उसने जिनका भरण-पोषण किया था, उन्हींके द्वारा उसका भरण-पोषण होता है, वृद्धावस्थाके कारण विकृत

रूपवाला और मरणाभिमुख वह व्यक्ति घरमें अवमाननापूर्वक दी हुई वस्तुको कुतेकी भाँति खाता हुआ जीवन व्यतीत करता है।

गोदानसे सूर्यलोककी प्राप्ति होती है किया गया हैं। रजोंके प्रादुर्भावका आख्यान वत्रा (होरे) यान और शय्याका यो करनेपर भार्या, भयभीत की परीक्षा, पराग, मरकतमणि, इन्द्रनीलमणि, वैदूर्यमणि पुष्परागमत्रि,

विहुममणि, स्फटिक, रुधिराक्षरन, पुलक, कनमणि, भीष्मक मणि तथा मुक्ता आदि र्नोंके विदि भेद लक्षण और परीक्षण-विधि बतायी गयी है

अभय प्रदान करनेसे ऐश्वर्यकी प्राप्ति होती है। धान्यदानसे शाश्वत अविनाशी सुख तथा वेद अध्यापन (वेद के दान)-से अहका सानिध्य-साथ होता है। गायको घास देने से पापों से मुकि हो जाती है।

ईसके लिये काष्ठ आदिका दान करने से एवं भोजन देनेवाला मनुष्य रोग रहित, सुखी और दीर्घायु अभिलाषा रखता है,

उसे अपने लिये संसार या घर में वस्तु सर्वाधिक प्रिय है, उस वस्तुका दान गुणवान् पिंडदान आदि अक्षय होता है। ब्रह्मा को करना चाहिये।

गরপা आदि विविध तीर्थों- प्रयाग, वाराणसी, कुरुक्षेत्र, व्यक्ति प्राप्त अग्निके समान तेजस्वी हो जाता है। द्वारका, केदार, यदरिकाश्रम, तद्वीप, मायापुरी (हरिद्वार), रोगियोंके रोग-शान्तिके लिये औषधि,

तेल आदि पदार्थ नैमिषारण्य, पुष्कर, अयोध्या, चित्रकूट, काीपुरी, तुंगभद्रा, श्रीशैल, सेतुबन्ध-रामेधर, अमरकण्टक, उज्जयिनी, मधुरापुरी हो जाता है।

वह नदी सूईके समान मुखवाले भयानक कीड़ोंसे चारों ओर व्याप्त है। वज्रके समान चोंचवाले बड़े बड़े गीध एवं कौओंसे घिरी हुई है ॥ १९ ॥

वह नदी शिशुमार, मगर, जोंक, मछली, कछुए तथा अन्य मांसभक्षी जलचर-जीवोंसे भरी पड़ी है ॥ २० ॥

उसके प्रवाहमें गिरे हुए बहुत-से पापी रोते-चिल्लाते हैं और हे भाई, हा पुत्र!, हा तात ! – इस प्रकार कहते हुए बार-बार विलाप करते हैं ॥ २१ ॥

भूख और प्याससे व्याकुल होकर पापी जीव रक्तका पान करते हैं। वह नदी झागपूर्ण रक्तके प्रवाहसे व्याप्त, महाघोर, अत्यन्त गर्जना करनेवाली, देखने में दुःख पैदा करनेवाली तथा भयावह है। उसके दर्शनमात्रसे पापी चेतनाशून्य हो जाते हैं ॥ २२-२३ ॥

पीठ खींच बहुवृश्चिकसंकीर्णा सेविता कृष्णपन्नगैः । तन्मध्ये पतितानां च त्राता कोऽपि न विद्यते ॥ २४ ॥

आवर्तशतसाहस्त्रैः पाताले यान्ति पापिनः । क्षणं तिष्ठन्ति पाताले क्षणादुपरिवर्तिनः ॥ २५ ॥

पापिनां पतनायैव निर्मिता सा नदी खग । न पारं दृश्यते तस्या दुस्तरा बहुदुःखदा ॥ २६ ॥

बहुत-से बिच्छू तथा काले सर्पोंसे व्याप्त उस नदीके बीचमें गिरे हुए पापियोंकी रक्षा करनेवाला कोई नहीं है ॥ २४ ॥

उसके सैकड़ों, हजारों, भँवरोंमें पड़कर पापी पातालमें चले जाते हैं। क्षणभर पातालमें रहते हैं और एक क्षणमें ही ऊपर चले आते हैं ॥ २५ ॥

हे खग ! वह नदी पापियोंके गिरनेके लिये ही बनायी गयी है। उसका पार नहीं दीखता। वह अत्यन्त दुःखपूर्वक तरनेयोग्य तथा बहुत दुःख देनेवाली है॥ २६ ॥

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 266
Pdf साइज़30 MB
CategoryAll Puranas

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित हिंदी गरुड़ पुराण

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