मौलिक अधिकार नोट्स | Fundamental Rights Notes PDF

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मौलिक अधिकारों के बारे में पढ़ें – Read About Fundamental Rights PDF Free Download

मौलिक अधिकारों

स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान, स्वतंत्रता आंदोलन के नेताओं ने इन अधिकारों का महत्व समझ था और माँग की थी कि अंग्रेज शासकों को जनता के अधिकारों का आदर करना चाहिये। 1928 में ही मोतीलाल नेहरू समिति’ ने ‘अधिकारों के एक घोषणापत्र की माँग उठाई थी।

अतः यह स्वाभाविक था कि स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माण के दौरान संविधान में अधिकारों का समावेश करने और उन्हें सुरक्षित करने पर सभी की राय एक थी।

संविधान में उन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया जिन्हें सुरक्षा देनी थी और उन्हें मौलिक अधिकारों की संज्ञा दी गई ।

जैसा कि नाम से स्पष्ट है ‘मौलिक अधिकार अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इसीलिए उन्हें संविधान में सूचीबद्ध किया गया है और उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान बनाये गये हैं।

वे इतने महत्वपूर्ण है कि संविधान स्वयं यह सुनिश्चित करता है कि सरकार भी उनका उल्लंघन न कर सके।

मौलिक अधिकार हमारे अन्य अधिकारों से भिन्न हैं। जहाँ साधारण कानूनी अधिकारों को सुरक्षा देने और लागू करने के लिए साधारण कानूनों का सहारा लिया जाता है. यही मौलिक अधिकारों की गारंटी और उनकी सुरक्षा स्वय संविधान करता है।

सामान्य अधिकारों को संसद कानून बना कर परिवर्तित कर सकती है लेकिन मौलिक अधिकारों में परिवर्तन के लिए संविधान में साथ उसका एक दोस्त भी था।

गाँव के एक होटल में उन्हें चाय पीने की इच्छा हुई। दुकानदार स्वदेश कुमार को जानता था, पर उसके मित्र की जाति जानने के लिए उसने उसका नाम पूछा।

उसके बाद दुकानदार ने स्वदेश कुमार को तो एक सुंदर कप में चाय दी, लेकिन उसके दोस्त को कुल्हड़ में चाय दी क्योंकि वह दलित था।

• टेलीविजन के एक चैनल में समाचार पढ़ने वाले कुल दस सदस्यों में से केवल चार को यह आदेश दिया गया कि आगे से वे समाचार न पढे।

वे सभी महिलायें थीं। इसका कारण यह बताया गया कि वे सभी 45 वर्ष की उम्र को पार कर चुकी हैं। लेकिन इस अवस्था को पार कर चुके दो पुरूषों पर यह प्रतिबंध नहीं लगाया गया।

ये भेदभाव के स्पष्ट उदाहरण है। एक में जाति और दूसरे में लिंग के आधार पर भेदभाव किया गया। आपकी राय में क्या ऐसा भेदभाव उचित है?

समता का अधिकार ऐसे और अन्य प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास करता है। यह सार्वजनिक स्थलों जैसे दुकान, होटल, मनोरंजन-स्थल, कुओं, स्नान घाट और पूजा-स्थलों में समानता के आधार पर प्रवेश देता है।

जाति, नस्ल, रंग, लिंग, धर्म या जन्म-स्थान के आधार पर प्रवेश में कोई भेदभाव नहीं हो सकता। यह उपर्युक्त आधारों पर लोक सेवाओं में भी कोई भेदभाव वर्जित करता है।

यह अधिकार बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि पहले हमारे समाज में इन जगहों पर सबके साथ समान बरताव नहीं होता था।

छुआछूत की प्रथा असमानता का सबसे भद्दा रूप हैं। समता का अधिकार के द्वारा इसे समाप्त कर दिया गया।

इसी अधिकार के अंतर्गत यह भी व्यवस्था की गई है कि. केवल उन लोगों को छोड़कर जिन्होंने सेना या शिक्षा के क्षेत्र में गौरवपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है. राज्य किसी भी व्यक्ति को कोई उपाधि प्रदान।

प्रतिष्ठा की समानता और अवसर की समानता अवसर की समानता का अर्थ है कि समाज के सभी वर्गों को समान अवसर मिले लेकिन जब समाज में अनेक सामाजिक विषमताएँ व्याप्त हो, तो वहाँ समान अवसरों का क्या मतलब हो सकता है?. संविधान स्पष्ट करता है कि सरकार बच्चों,

महिलाओं तथा सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की बेहतरी के लिए विशेष योजनाएं तथा निर्णय लागू कर सकती है।

आपने नौकरियों और स्कूलों में प्रवेश के लिए आरक्षण के बारे में अवश्य सुना होगा। आपको संभवतया आश्चर्य भी हुआ होगा कि समानता के सिद्धांत का पालन करने के बावजूद यहाँ आरक्षण क्यों है.

वास्तव में संविधान का अनुच्छेद 16(4) साफ-साफ कहता है कि आरक्षण जैसी नीति को समानता के अधिकार के उल्लघन के रूप में नहीं देखा जा सकता।

यदि आप संविधान देखें तो आप पायेंगे कि ‘अवसर की समानता के अधिकार को पूरा करने के लिये यह जरूरी है।

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 12
PDF साइज़5 MB
CategoryEducation
Source/Creditsdrive.google.com

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