एकादशी व्रत का महात्म्य | Ekadashi Vrat Ka Mahatmya PDF

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एकादशी महात्म्य – Ekadashi Mahatmya PDF Free Download

एकादशी व्रत का महात्म्य

जयन्ती तथा पापनाशिनी – इन चार नामोंसे विख्यात होती है। ये सभी पापोंका नाश करनेवाली हैं। इनका व्रत अवश्य करना चाहिये। जब शुक्लपक्षकी एकादशीको पुनर्वस’ नक्षत्र हो तो वह उत्तम तिथि “जया’ कहलाती है।

उसका व्रत करके मनुष्य निश्चय ही पापसे मुक्त हो जाता है। जब शुक्रुपक्षकी द्वादशीको श्रवण ‘नक्षत्र हो तो वह उत्तम तिथि ‘विजया’ के नाम से विख्यात होती है;

इसमें किया हुआ दान और ब्राह्यण-भोजन सहस्त्र गुना फल देने वाला है, तथा होम और उपवास तो सहस्त्र गुनेसे भी अधिक फल देता है। जब शुक्रुपक्षकी द्वादशीको ‘रोहिणी नक्षत्र हो तो वह तिथि ‘जयन्ती” कहलाती है:

बहू सब पापों को हरने वाला है उस तिथिको पूजित होनेपर भगवान् गाचिन्द निश्चय ही मनुष्यके सब पापोंको धो डालने हैं। जब कभी शुक्कूपक्षकी द्वादर्शाको ‘पुष्य’ नक्षत्र हो तो वह महापुण्यमयी “पापनाशिती’ तिथि कहलाती है ।

जो एक वर्ष तक प्रतिदिन एक प्रस्थ तिल दान करता है तथा जो केवल ‘ पापनाशिनी ‘ एकादशीको उपवास करता है, उन दोनोंका पुण्य समान होता है।

उस तिथिको पृजित होनेपर संसारके स्वामी सर्वेश्वर श्रीहरि सन्तुष्ट होते हैं तथा प्रत्यक्ष दर्शन भी देते हैं। उस दिन प्रत्येक पुण्यकर्मका अनन्त फल माना गया है।

सगरनन्दन ककुत्स्थ, नहुष तथा राजा गाधिने उस तिथिको भगवानकी आराधना की थी, जिससे भगवानने इस पृथ्वीपर उन्हें सब कुछ दिया था । इस निथिके सेवनमे मनुष्य सात जन्मोंके कायिक,

वाचिक और मानसिक पापसे मुक्त हो जाता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। पुष्य नक्षत्रसे युक्त एकमात्र पापनाशिनी एकादशीका व्रत करके मनुष्य एक हजार एकादशियोंके व्रतका फल प्राप्त कर लेता है।

उस दिन स्नान, दान,जप, होम, स्वाध्याय और देवपूजा आदि जो कुछ भी किया जाता है. उसका अक्षय फल माना गया है। इसलिये प्रयत्नपूर्वक इसका व्रत करना चाहिये।

लेखक Gita Press
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 172
Pdf साइज़7.1 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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