एक लोटा पानि कहानी – Ek Lota Pani Book/Pustak PDF Free Download
एक लोटा पानी
चैतका महीना था। ग्वालियर राज्यका मशहूर डाकू परसराम अपने अरबी घोड़ेपर चढ़ा हुआ, जिला दमोहके देहातमें होकर कहीं जा रहा था। लकालक दोपहरी थी।
प्यासके कारण परसरामका गला सूख रहा था। कोई तालाब नदी या गाँव दिखायी न देता था। चलते-चलते एक चबूतरा मिला, जिसपर एक शिवलिंग रखा था।
छोटे और कच्चे चबूतरेपर बरसातके पानीने छोटे-छोटे गड्ढे कर दिये थे। इसलिये महादेवजीकी मूर्ति कुछ तिरछी-सी हो रही थी।
यह देख परसराम घोड़ेसे उतरा और उसे एक पेड़से बांधकर अपनी तलवारसे महादेवजीकी पिण्डीको ठीक विठलाने लगा परसराम बोला- ‘महादेव गुरुजी हैं।
परशुरामके गुरु थे, इसलिये मेरे भी गुरु हैं। वे भी ब्राह्मण थे, मैं भी ब्राह्मण हूँ। उन्होंने अमीरोंका नाश किया था और गरीबोंका पालन किया था, वही मैं भी कर रहा हूँ।
मूर्ख लोग मुझे डाकू कहते हैं। धनवान्से जबरन् धन लेकर दिनों का पालन करना क्या डाकूपन है ? है तो बना रहे।
ग्वालियर राज्यने मेरे लिये पाँच हजारका इनामी वारंट जारी किया है और भारत सरकारने पचास हजारका। मेरी गिरफ्तारोंके लिये तीस हजारका इनाम छप चुका है।
ने लोग अमीरोंके पालक और गरीबॉक चालक हैं। इसलिये मुझे डाकू कहते हैं। डाक वे हैं या में? इसका निर्णय कौन करेगा? खैर कोई परवाह नहीं । जबतक शंकर गुरुका पंजा मेरी पीठपर है तबतक कोई परसरामको गिरफ्तार नहीं कर सकता।
लेकिन क्या में आज प्यासके मारे इस जंगलमें मर जाउँगा ? मेर पंद्रह साथी- जो पद पते लिखे और बहादुर हैं- अपने अपने अरबी घोड़ोंपर नई मुझे खोज रहे होगे।
जव ते मुझे इस जंगलमें मरा हुआ पायेंगे, तब वे नेत्रहीन होकर बड़े दु:खी होंगे आाबा गुरुदेव!
क्या एक लोटा पानीके बिना आप मेरी जान ले लेंगे?” तबतक एक बुढ़िया वहाँ आयी। उसके हाथमें एक लोटा जल था और लोटेके ऊपर एक कटोरी थी, जिसमें मिठाई रखी थी। परसराम -बूड़ो माई! तुम कहाँ रहती हो?
लेखक | Gita Press |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 158 |
Pdf साइज़ | 16.7 MB |
Category | Story |
एक लोटा पानि – Ek Lota Pani Book/Pustak Pdf Free Download