दिव्य प्रेरणा प्रकाश | Divya Prerna Prakash PDF In Hindi

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दिव्य प्रेरणा प्रकाश – Divya Prerna Prakash PDF Free Download

दिव्य प्रेरणा प्रकाश

  1. विद्यार्थियों, माता-पिता अभिभावकों व राष्ट्र के कर्णधारों के नाम ब्रह्मनिष्ठ संत श्री आसारामजी बापू का संदेश

हमारे देश का भविष्य हमारी युवा पीढ़ी पर निर्भर है किन्तु उचित मार्गदर्शन के अभाव में वह आज गुमराह हो रही है।

पाश्चात्य भोगवादी सभ्यता के दुष्प्रभाव से उसके यौवन का ह्रास होता जा रहा है। विदेशी चैनल, चलचित्र, अशलील साहित्य आदि प्रचार माध्यमों के द्वारा युवक-युवतियों को गुमराह किया जा रहा है। विभिन्न सामयिकों और समाचार-पत्रों में भी तथाकथित पाश्चात्य मनोविज्ञान से प्रभावित मनोचिकित्सक और ‘सेक्सोलोजिस्ट युवा छात्र-छात्राओं को चरित्र, संयम और नैतिकता से भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं।

ब्रितानी औपनिवेशिक संस्कृति की देन इस वर्तमान शिक्षा प्रणाली में जीवन के नैतिक मूल्यों के प्रति उदासीनता बरती गई है। फलतः आज के विद्यार्थी का जीवन कौमार्ययस्था से ही विलासी और असंयमी हो जाता है।

पाश्चात्य आचार-व्यवहार के अंधानुकरण से युवानों में जो फैशनपरस्ती, अशुद्ध आहार-विहार के सेवन की प्रवृत्ति कुसंग, अभद्रता, चलचित्र प्रेम आदि बढ़ रहे हैं उससे दिनोंदिन उनका पतन होता जा रहा है। ये निर्बल और कामी बनते जा रहे हैं। उनकी इस अवदशा को देखकर ऐसा लगता है कि ये ब्रह्मचर्य की महिमा से सर्वथा अनभिज्ञ हैं।

लाखों नहीं, करोड़ों-करोड़ों छात्र-छात्राएँ अज्ञानतावश अपने तन-मन के मूल ऊर्जा स्रोत का व्यर्थ में अपक्षय कर पूरा जीवन दीनता-हीनता-दुर्बलता में तबाह कर देते हैं और सामाजिक अपयश के भय से मन-ही-मन कष्ट झेलते रहते हैं।

इससे उनका शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य चौपट हो जाता है, सामान्य शारीरिक-मानसिक विकास भी नहीं हो पाता। ऐसे युवान रक्ताल्पता, विस्मरण तथा दुर्बलता से पीड़ित होते यही वजह है कि हमारे देश में औषधालयों, चिकित्सालयों, हजारों प्रकार की एलोपैथिक दवाइयों, इन्जेक्शनों आदि की लगातार वृद्धि होती जा रही है।

असंख्य डॉक्टरों ने अपनी-अपनी दुकाने खोल रखी है फिर भी रोग एवं रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।

इसका मूल कारण क्या है? दुर्व्यसन तथा अनैतिक, अप्राकृतिक एवं अमर्यादित मैथुन द्वारा वीर्य की क्षति ही इसका मूल कारण है। इसकी कमी से रोगप्रतिकारक शक्ति घटती है, जीवनशक्ति का ह्रास होता है।

इस देश को यदि जगदगुरु के पद पर आसीन होना है, विश्व-सभ्यता एवं विश्व संस्कृति का सिरमौर चलना है, उन्नत स्थान फिर से प्राप्भौ तिक विकास अंत में महाविनाश की ओर ही ले जायेगा क्योंकि संयम, सदाचार आदि के परिपालन से ही कोई भी सामाजिक व्यवस्था सुचारु रूप से चल सकती है।

भारत का सर्वांगीण विकास सच्चरित्र एवं संयमी युवाधन पर ही आधारित है।

अतः हमारे युवाधन छात्र-छात्राओं को ब्रह्मचर्य में प्रशिक्षित करने के लिए उन्हें यौन स्वास्थ्य, आरोग्यशाख, दीर्घायु प्राप्ति के उपाय तथा कामवासना नियंत्रित करने की विधि का स्पष्ट ज्ञान प्रदान करना हम सबका अनिवार्य कर्तव्य है।

इसकी अवहेलना करना हमारे देश व समाज के हित में नहीं है। यौवन सुरक्षा से ही सुदृढ राष्ट्र का निर्माण हो सकता है।

(अनुक्रम)

  1. यौवन- सुरक्षा

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।

धर्म का साधन शरीर है। शरीर से ही सारी साधनाएँ सम्पन्न होती हैं। यदि शरीर कमजोर है तो उसका प्रभाव मन पर पड़ता है, मन कमजोर पड़ जाता है। कोई भी कार्य यदि सफलतापूर्वक करना हो तो तन और मन दोनों स्वस्थ होने चाहिए |

इसीलिये कई बूढ़े लोग साधना की हिम्मत नहीं जुटा पाते, क्योंकि वैषयिक भोगों से उनके शरीर का सारा ओज-तेज नष्ट हो चुका होता है। यदि मन मजबूत हो तो भी उनका जर्जर शरीर पूरा साथ नहीं दे पाता।

दूसरी ओर युवक वर्ग साधना करने की क्षमता होते हुए भी संसार की चकाचौंध से प्रभावित होकर वैषयिक सुखों में यह जाता है।

अपनी वीर्यशक्ति का महत्व न समझने के कारण बुरी आदतों में पड़कर उसे खर्च कर देता है, फिर जिन्दगी भर पछताता रहता है।

मेरे पास कई ऐसे युवक आते हैं, जो भीतर ही भीतर परेशान रहते हैं किसीको वे अपना दुःख-दर्द सुना नही पाते, क्योंकि बुरी आदतों में पड़कर उन्होंने अपनी वीर्यशक्ति को खो दिया है। अब, मन और शरीर कमजोर हो गये गये, संसार

Language Hindi
No. of Pages102
PDF Size1.3 MB
CategoryCatelog
Source/Creditsvedpuran.files.wordpress.com

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