चंदामामा माँ बच्चो का मासिक पत्र | Chandamama Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
कन्हैया नन्द के घर बड़े लाड़-प्यार से पलने लगा। लेकिन यह ज्यों-ज्यों बड़ा होने लगा उसकी शरारतें बढ़ती गई। वह पड़ा नटखट और ऊधमी निकला। बह गोप गोपिकाओं के दूघ दुगने समय वहाँ जाता और बछड़ों की रस्सियाँ खोल देता। अपने साथियों को लेकर बालों के घर में घुस जाता और दूध, दही, मक्खन चुरा कर खा लेता।
जब जी भर जाता तो हाड़ियाँ फोड़ देता । अगर होंड़ियाँ ऊँचे छीकों पर होतीं तो वह लड़कों के कन्धों पर चढ़ कर उन्हें निकाल लेना। अगर इसी बीच मोपिकाएँ आ जातीं और उसे पकड़ना चाहती तो वह बचा कर भाग जाता। इस तरह जब दिन दिन उसका ऊधम बढ़ता गया तो गोपिकाओं ने जाकर यशोदा से शिकायत की
। जब यशोदा ने कन्हया को डाँटा-उपटा तो उसने कहा-‘माँ! तुम इनकी बातों पर विश्वास न करो! बताओ तो तुम्हीं, मेरी बाहें इतनी छोटी हैं ! फिर छींके पर की हाँड़ियाँ में कैसे निकल सका?’ ‘ तो तुम्हारे मुंह पर मक्खन कैसे लगा ?’ यशोदा ने पूछा। ‘वह तो दूसरे लड़कों ने मुझे पिटवाने के लिए लगा दिया है।’
कृष्ण ने कहा । तत्र भोली-भाली यशोदा ने हैंग कर उसको गले से लगा लिया ।एक जङ्गल में एक बड़ा सरोवर था। एक दिन वानरों का राजा यालि उस सरोवर की बग़ल से जा रहा था। शाम का वक्त था। भक्तों की देव-पूजा का समय आसन्न हो गया था।
वालि शिवजी का बड़ा भक्त था। वह हमेशा अपने साथ एक सुन्दर पेटी में बन्द करके एक शिवलिंग लिए फिरता था। इसलिए वह उस सरोवर में नहा-धोकर एक जगह श.ड़-बुहार कर वहाँ लिंग की पूजा करने लगा। उसी समय उस जंगल के रहने वाले कुछ भील शिकार खेलते हुए उधर से आ निकले।
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 60 |
Pdf साइज़ | 14.2 MB |
Category | बाल पुस्तके(Children) |
चंदामामा माँ बच्चो का मासिक चक्र | Chandamama Book/Pustak Pdf Free Download