श्री चैतन्य चरितामृत – Chaitanya Charitamrit Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
माता यशोदा को उन्हें घर लाने के लिए फुलाना पड़ता था। अतएव बच्चे का स्वभाव है कि वह रात-दिन खेल में लगा रहता है और अपने स्वास्थ्य तथा अन्य महत्वपूर्ण कार्यों भी परवाह नहीं करता।
वह प्रेयस् का उदाहरण है। किन्तु कार्य कुछ श्रेवस भी हैं जो अंतत: मंगलप्रद होते है। वैदिक सभ्यता के अनुसार मनुष्य को श-भावनाभाक्ति होना चाहिए उसे यह जानना कि ईश्वर क्या है ?
वह भौतिक जगत क्या है? वह कौन है और उनके परस्पर सम्बन्ध क्या है? वह श्रेयस् कहलाता है अर्थात् अंतत: मंगलप्रद कार्य।
श्रीमद्भागवत के इस श्लोक में बतलाया गया है मनुष्य को येयस् कार्य में रुचि दिखलानी वाहिए ।
श्रेयस के चरम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे अपना सर्वस्व-अपना जीवन, धन तथा वाणी-आपने लिए हो नहीं, अपितु अन्यों के लिए
अर्पित कर देना चाहिए किन्तु जब तक बढ अपने निजी जीवन में श्रेयस् में रुचि नहीं लेगा राम का वह अन्यों को श्रेयस् का उपदेश नहीं दे सकता। श्री चैतन्य गश द्वारा उूत यह मनुष्यों पर लागू होता है,
नाओं पर नहीं। जैसा कि शिक्षाले नसोक में मनुष्य-म शब्द से गित किया गया है. ये आदेश मनुष्यों के लिए हैं दुर्भाग्य अब के मनुष्य মन-तेह आाण करते तो आंगन में पशओों से भी बदतर होते
जा रहे या मालिका शिक्षा का योग है। आधुनिक शिक्षा मानव-ओवन के उधेश्य को नहीं जानत उन्हें इसी की विन्ता राखी है कि वे अप्ने देश नया मानव-समाज की आर्थिक दशा को को उक्त बनायें।
यह भी आवश्यक है। वैदिक सभ्यता में तो मानव जीवन के सारे पाध्षों पर विचार किया लाया है-इनमें धर्म, अर्थ, शाम तथा मोक्ष मम्मिलित है। किन्तु मानवता का परला धर्म धार्मिक बनने के लिए |
लेखक | कृष्णदास गोस्वामी-Krishnadas Goswami |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 463 |
Pdf साइज़ | 41.1 MB |
Category | आत्मकथा(Biography) |
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संजयजी, अभी प्रभुपद किताब हमारे पास नही है, मिलने पर आपको अवश्य सूचित करेंगे.
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