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ब्रह्मचर्य साधना – Brahmacharya Sadhana PDF Free Download
ब्रह्मचर्य के नियम
रखमात्र भी आत्म-संयम नहीं होता है। वह कामवासना का पूर्ण दास और उसके हाथों की कठपुतली होता है। वह खरगोशों की भाँति प्रजनन करता तथा संसार ) में भिक्षुओं की संख्या में वृद्धि करने के लिए अगणित बच्चों को जन्म देता है।
सिंह, हाथी, बैल तथा अन्य शक्तिशाली पशुओं में मनुष्यों से अधिक आत्म-संयम होता है। सिंह वर्ष में केवल एक बार सहवास करते हैं।
स्तीरी जातीय पशु गर्भ धारण करने के पक्षात् जब तक उनके बच्चों का दूध पीना नहीं छूट जाता तथा अब तक वे स्वयं स्वस्थ तथा हृष्ट- पुष्ट नहीं हो जाते तब तक पुजातीय पशु को अपने पास फटकने नहीं देते ।
मनुष्य ही प्रकृति के नियमों का उल्लहन करता है ।फलतः अगणित रोगों से पीड़ित होता है। उसने इस विषय में अपने को पशुओं अभाव में पुष्प पुष्प नहीं है, जल के अभाव में सरिता सरिता नहीं है,
उसी प्रकार बह्मचर्य के अभाव में मनुष्य मनुष्य नहीं है। आहार, निद्रा, भय तथा मैथुन-ये पशु तथा मनुष्य दोनों में उभय निष्ठ है। धर्म-विवेक तथा विचार-शक्ति ही मनुष्य की पशु से विशिष्टता दर्शाता है।
ज्ञान तथा विचार की प्राप्ति एकमात्र वीर्य के परिरक्षण से ही सम्भव है । यदि किसी व्यक्ति में ये विशिष्ट गुण उपलब्ध नहीं है
के स्तर से भी नीचे अधापतित कर डाला है। जैसे राजकोष, प्रजा तथा सेना के अभाव में राजा राजा नहीं है: सुगन्ध के तो उसकी गणना वस्तुतः साक्षात् पशु में ही की जानी चाहिए। अब काम, जो इस संसार में सभी सुखों का स्रोत है,
समाप्त हो जाता है तब समस्त सांसारिक बन्धन, जिनका आश्रय- स्थान मन है, समाप्त हो जाते हैं । सर्वाधिक साहृातिक विष भी काम की तुलना में कोई विष नहीं है। पूर्वोत्त तो एक शरीर को दूषित करता है, जबकि उत्तरोक्त अनु.
यह संसार कामुकता तथा अहङ्कार ही है, अन्य कुछ नहीं। इनमें अहङ्कार ही मुख्य वस्तु है। यही आधार है। कामुकता तो अहङ्कार पर आश्रित है। यदि ‘मैं कौन हूँ’ के अनुसंन्धान अथवा विचार द्वारा अहङ्कार को नष्ट कर दिया जाये तो काम-भाव स्वतः ही पलायन कर जाता है।
मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं स्वामी है। उसने अपने दिव्य गौरव को खो दिया है तथा अविद्या के कारण कामुकता और अहङ्कार के हाथों का यन्त्र तथा उनका दास बन गया है। कामुकता तथा अहङ्कार अविद्याजात हैं।
आत्मज्ञानोदय आत्मा के इन दोनों शत्रुओं को, असहाय, अज्ञानी, क्षुद्र मिथ्या जीव अथवा भ्रामक अहं को लूट रहे इन दो दस्युओं को विनष्ट कर डालता है।
कामवासना की कठपुतली बन कर मनुष्य ने अपने को बहुत बड़ी मात्रा में अधःपतित कर डाला है। हन्त। वह एक अनुकरणशील यन्त्र बन चुका है। उसने अपनी विवेक शक्ति खो दी है। वह निकृष्टतम रूप की दासता के गर्त में जा गिरा है।
क्या ही दुःखद अवस्था है। निस्सन्देह, क्या ही शोचनीय दुर्गति है। यदि वह अपनी खोई हुई दिव्यावस्था तथा बाह्य महिमा को पुनर्प्राप्त करना चाहता है तो उसकी समग्र सत्ता का
रूपान्तरण करना चाहिए, उसकी कामवासना को उदात्त दिव्य विचारों तथा नियमित ध्यान द्वारा पूर्णतया रूपान्तरित करना चाहिए। कामवासना का रूपान्तरण नित्य-सुख की प्राप्ति की एक बहुत ही प्रबल प्रभावशाली तथा सन्तोषप्रद विधि है।
यह संसार ही कामुक है
कामवासना का संसार के सभी भागों पर एकाधिपत्य है। लोगों के मन कामपूर्ण विचारों से ओतप्रोत हैं। यह संसार ही कामुक है। समस्त विश्व भीषण कामोन्माद के वशीभूत है। सभी दिग्भ्रान्त हैं तथा विकृत बुद्धि संसार में चल-फिर रहे हैं।
कोई भगवद्विचार नहीं है। कोई भगवच्चर्चा नहीं है। भूषाचार (फैशन), उपाहार गृहों (रेस्तरां), विश्रान्ति-गृहों (होटल), प्रीतिभोजों, नृत्यों, घुड़दौड़ों तथा चलचित्रों की ही चर्चा है।
लोगों का जीवन खान, पान तथा प्रजनन में ही समाप्त हो जाता है। इसमें ही उनके कर्तव्य की इतिश्री है।
कामवासना ने लन्दन, पेरिस तथा लाहोर में ही नहीं वरन् मद्रास केपरम्परानिष्ठ परिवार की ब्राह्मण बालिकाओं तक में भी नवीन भूवाचार (फैशन) चालू कर दिया है।
वे अब अपने मुख में हरिद्रा-चूर्ण के स्थान में ‘वैरी ब्लाजम ‘पाउडर’ तथा ‘वेजिलिन स्नो’ लगाती हैं तथा प्रांसीसी लड़कियों की भाँति अपने बाल कटवाती है।
इस प्रकार के अनुकरण की हेय प्रवृत्ति भारत में हमारे बालकों तथा बालिकाओं के मन में अनधिकृत रूप से प्रवेश कर गयी है। हमारे प्राचीन ऋषियों तथा मनीषियों के पवित्र आदशों तथा उपदेशों की सर्वथा उपेक्षा की जा रही है।
यह क्या ही शोचनीय अवस्था है। यदि जान्सन अथवा रसेल जैसा कोई पाक्षात्य विद्वान् विकास, गति, परमाणु, सापेक्षता अथवा अनुभवातीत सिद्धान्त के रूप में कोई बात प्रस्तुत करता है तभी लोग उसे सच मानेंगे।
निस्सन्देह, यह लज्जास्पद बात है। उनके मस्तिष्क विदेशी कणिकाओं से अवरुद्ध हैं। उनमें दूसरों में वर्तमान किसी गुण को आत्मसात् करने के लिए मस्तिष्क ही नहीं है।
भारत में आज के नवयुवकों तथा नवयुवतियों का दुःखद अधःपतन हुआ है। यह ऐसा युग है जब वे रिक्शा, कार, ट्राम, साइकिल अथवा वाहन के बिना थोड़ी दूर भी नहीं चल सकते।
क्या ही अत्यधिक कृत्रिम जीवन है! भारत की महिलाओं में कन्धों तक बाल कटाने की प्रवृत्ति ने घोर संक्रामक रोग का रूप ले लिया है।
इसने समस्त भारत को आक्रान्त कर रखा है। यह सब काम तथा लोभ की शरारत के कारण है।
लेखक | स्वामी शिवानंद- Swami Sivananda |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 86 |
Pdf साइज़ | 36.4 MB |
Category | धार्मिक(Religious) |
ब्रह्मचर्य साधना – Brahmacharya Sadhana Pdf Free Download
Very Nice
Brahmacharya book by Swami Vivekananda in gujrati
Maine kal brahamcharya nast kiya aur. Mai kalse than liya. Jab tak. 1 saal tak brahamcharya naa pura kar lu tab tak. Mai tamsik. Aur. Phone ko hath nhi lagaunga. Aur man mein yeh bhi sawal aaya ki mai akele brahamcharya palan nhi kar skta iske liye mujhe. Brahamcharya le liye. Ek Google’ se. Brahamcharya ki pdf. Download kar ke. Usse. Photocopy ke dwara nikal kar. Usse har deren padna padega. Mai aaj se purn. Brahmacharya ka palan karunga. DHANYAWAD 🙏🏻
Awesome Sir ji
Aaj se Mai bhi brahamachary karunga ok