बिहारी सतसई के दोहे – Bihari Satsai Book Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
सुणय और कोमकता में एकदम विक-बी गई। लसत सेत सारी कर्वी हरल तण्यौना कान पन्थी मनी मुरसरि सलिल रवि श्रतिषिम्बु विहान ॥ ९२ ॥
अन्वयमेत सारी स्वीकार सरक तस्वीना हसत, मनी सुरसारी सकि बिहान-विन्यतिदिन पत्थी।
तरल चंचल । बिहान पाकाल जवी साडी से हैंका हुआ उसके काम का चंच कर्णकक ऐवा सोह रहा है, मानो गंगा के कमावल जल में प्रातःकाल के सूर्य का (मुनहा) प्रतिबिम्ब पा पड़ा नोट-यहाँ सोने का कर्णफूल प्रातःकाल का सूर्य है, और साड़ी गंगा का स्फटिक-सा स्वष्ठ बल।
सुति दुराई दुरति नहिं प्रगट करति रति-रूप । छुटे पीक औरे उठी लाली ओठ अनूप ।। १३ ॥
अन्वय-मुति दुराई नहिं दुरति, रति-रूप प्रगट करति, पीक छुटै घोट अनुप बाली औरै उठी । मुदुति = पुति सुन्दर कान्ति रति-रूप=रति का रूप,
कामदेव की श्री रति अत्यन्त सुन्दर कही जाती है; अतएव बहां ‘रति-रूप’ से अर्थ है सौन्दर्य का अत्यन्त आधिमा दुराई = छिपाने । सुन्दर कान्ति छिपाने से नहीं छिपती, बरन् ( ऐसी चेष्टा करने पर) वह भीर भी प्रारूप सौंदर्य प्रकट करती है।
पान की पीक (या लाली) छुड़ाये जाने पर ओठों की अनुपम हाली और भी बढ़ गई है। नोट-नापिका अपने ओठ की ललाई को पान की लाली समझकर बार-बार उसे छुदा रही है।
किन्नु न्यो-न्यों पान की लाली छुटती है, स्वाभाविक लाली और भी खिलती जाती है। कुच गिरि चढ़ी अति थकित हैं चली डाठि मुंह-चार। फिरि न टरी परियो रही परी चिबुक को गाड़ ॥
९४पिय विय सो हैसिके कही लखै दिठौना दीन चन्द्रमुखी मुख चन्दु ते भली च सम कीन ॥ ९९॥
अन्वय-दिठीना दीन लखें, पिय तिय सौं हैं सिके कशी, चन्द्रमुखी चन्द सम कीन, मुख चन्दु ते मली । सो=से । दिठौना दीन=डिठौना लगाये हुए । ते से ।दिवाना जगाये हुए देखकर प्रीतम ने अपनी प्रियतमा से इसका कहा हे चन्द्रमुखी।
लेखक | रामवृक्ष बेनीपुरी-Ramvruksh Benipuri |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 314 |
Pdf साइज़ | 15 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
बिहारी सतसई – Bihari Satsai Book/Pustak Pdf Free Download