भारतीय सामाजिक समस्या -Social Problems In India Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
विश्लेषण करके बताया है कि बच्चा उत्पन्न होते ही उत्तरदायित्व ग्रहण करने लग जाता है। धीरे-धीरे उत्तरदायित्व उसकी आदत बन जाती है।
उसके उत्तरदायित्व की आदत यदि समाज द्वारा मान्य होती है, तो वह सामाजिक व्यक्ति माना जाता है ।
भय के कारण यदि कोई सामाजिक नियमों को स्वीकार करता है, तो कुछ काल के बाद सतत आधुति के पश्चात् वह सामाजिक नियम भी उसके जीवन में आदत हो जाता है।
उसका व्यक्तित्व उससे प्रभावित होता है। व्यक्तित्व के विकसित होने पर आचरण बनता है। बच्चे की आदत और उत्तरदायित्व उसके जीवन के आदर्श में बदल जाता है।
यच्चा जो कुछ करता है, वह इस भावना से नहीं करता कि उसे करना चाहिए, वरम् वह अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिये करता है।
परन्तु आगे चलकर यही कार्य उसके लिये आदर्श भी बन जाता है।समाज व्यक्ति को जितना आदर्श बना सकता है, उतना वह नहीं करता ।
यदि उतना आदर्श बना ले तो कोई सामाजिक असामंजस्य होता ही नहीं। समाज यदि चाहे तो व्यक्ति को किसी दिशा में मोड़ सकता है ।
परन्तु मोड़ने की शक्ति सीमित होती है। जिसे वह मिलाना चाहता है, उसके लिये ध्यान रखने की बात है कि उसकी भावना विकृत न हो ।
अपूर्ण मस्तिष्क व्यक्ति को उतना ही काम दिया जा सकता जितना उसके लिये उचित हो और भार न हो। इस क्रम से उसे सुधारा जा सकता है ।
कामों का असा भार पाकर यह उसे कर सकने के बजाय और भी बड़ा जायगा और उसके जीवन में असफलता ही हाथ लगेगी।
समाज का स्वरूप ऐसा होना चाहिये कि इसके अन्दर रहने वाले व्यक्ति को कम से कम संघर्ष करना पड़े। इस तरह का समाज पन जाने पर बैयक्तिक विश्व खलता बहुत कम होगी।
लेखक | राजाराम शास्त्री-Rajaram Shastri |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 324 |
Pdf साइज़ | 23.3 MB |
Category | विषय(Subject) |
भारत की सामाजिक समस्या – Social Problems Pdf Free Download