भक्त सुमन – Bhakt Suman Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
मकतके प्रेम बनं प्रमान देखनर शानेबस्नी मी भाचर्यचकित हो गये उन्होंने नामदेशको सचेत किया और गाढ़ आलिङ्गनकर वे उनके प्रेमकी प्रशंसा करने व्ये ।
मदेवने उनके चरणों में प्रणाम विया कुछ दिनों में यात्रा पूर्ण करके दोनों लौट आये।नामदेव अपने प्राणोंसे भी प्यारे विट्ठलसे मिले और कहने लगे कि ‘मेरे मनमें श्रम था
इसीलिये आपने मुझे दर-दर भटकाया । परन्तु भगवन् ! निश्चयपूर्वक कहता हूँ कि पण्डपुरका-सा सुख अन्यत्र खप्रमें मी नहीं है। संसार में अनेक तीर्थ हैं परन्तु मेरा मन तो
चन्द्रभागाकी ओर ही लगा रहता है, आपके बिना अन्य देव्की ओर मेरे पैर चलना ही नहीं चाहते, मेरे कान दूसरे किसीके यशको सुनना नहीं चाहते ।
जहाँपर गरुड़चित पताकाएँ नहीं है वह स्थान कैसा ! जहाँपर वैष्णवोंका मेला न हो तथा अखण्ड हरिकया न चलती हो वह क्षेत्र भी कैसा ? ये सारी बातें पण्डरपुरमें विदुके चरणों में है इसलिये मैं आपके सिवा कुछ भी नहीं जानता हूँ।
परन्तु आपने मुझपर बड़ी कृपा की जो सर्वत्र मेरे लिये पण्डरपुर कर दिया और याद करते ही मुझे दर्शन देते रहे !”समाधि लेनेके बाद फिर एक बार नामदेव उत्तर भारतमें गये थे।
नामदेवको विसोबा खेचरसे पूर्ण ज्ञानका वोध हुआ था। इसलिये उन्हींको ये अपना गुरु मानते थे । मदेवजीकी आयुका पूर्याद्द पण्डरपुरमें और उत्तरार्द पंजाब भगवान्ने उस महात्मा
भक्तको बहुत ही दुर्लभ बताया है जो सर्वत्र सबमें भगवान्को ही देखता है। वास्तवमें वही मनुष्य धन्य है जो सर्वत्र भगवदर्शनका अभ्यास करता है और उसमें सफल हो जाता है।
श्रीनामदेक्जीमें यह सर्वत्र भगवत्-दर्शनकी निष्ठा बहुत ही अच्छे रूप में प्रकट थी बे जहाँ कहीं रहते, जिस किसी भी चीजको देखते, उनके मन भगशान्के सित्र अन्य कुछ मी नहीं दीखता । उनके जीवनकी हैं।
लेखक | हनुमान प्रसाद-Hanuman Prasad |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 140 |
Pdf साइज़ | 3.2 MB |
Category | उपन्यास(Novel) |
भक्त सुमन – Bhakt Suman Book/Pustak Pdf Free Download