अवधूत गीता | Avadhut Gita Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
दूसरी प्रिय वस्तु नष्ट होजाती है तब पुल्प अपनेको और संसारको दुःखी होकर विकार देने लगता है और कुछ काटके पीछे जव कि तिसका मन संसारके दूसरे पदार्थोंकी तरफ लग जाता है
तत्र वह वैराग्य मी तिसको मूलजाताहै इसीका नाम मन्द बैराव्य है और बिना ही किसी दुःखकी प्राप्तिके विषय मोगोंके त्यागकी इच्छाका उत्पन्न होना जो है इसका नाम तीव्र वैराग्य है
और अपनी अभिलाषाके अनुकूल समस्त राज्यादिक सांसारिक पदार्थ तथा स्त्री, पुत्र आदिके वर्तमान होनेपर मी उनके त्यागकी इच्छाका जो उत्पन्न होना है उसे तौत्रतर वैराग्य कहतेहैं
तो ऐसे वैराग्यवान् अर्थात् ज्ञानवैराग्यकी मूर्ति श्रीस्वामी दत्तात्रेयजी हुए हैं और जिसचास्ते वह अवघृत होकर संसारमें विचरेहैं इसी बास्ते उन्होंने “अवधूतगीता” भी बनाई है
उन्हींकी ” अवबूतगीता” के अथको हम मापाटीकामे दिखायेंगे अब प्रथम उनके जीवनवृत्तांतको दिखातेहैं इस वार्ताको तो हिंदूमात्र जा नतेहैं जो सत्ययुग त्रेता द्वापर कलि यह चारों युग बराबर ही अपनी २ पारीसे आते जाते रहते हैं।
जिस जमानेमें सब लोग सत्यवादी और व र्मात्मा होतेहैं उसी जमानेका नाम सत्ययुग है फिर जिस जमानेमें तीन हिस्सा सत्यवादी और चौथा हिस्सा असत्यवादी होते हैं
उसी जमानेका नाम त्रेतायुग है और जिस जमानेमें आधे सत्यवादी और आधे असत्यवादी होतेहैं उसका नाम द्वापर है जब कि चौथा हिस्सा सत्यवादी होते हैं
तब कलियुग कहा जाता है और जब कि हजारों लाखोंमें एक आधा सत्यवादी होता है और सव असत्यवादी होतेहैं तब उस जमानेका नाम घोर कलियुग है सो सत्ययुगमे जब कि, सब लोग सत्यवादी, थे
उसी में करके एक राजाप वढे भारी तपस्वी राजा हुए हैं उनकी नोंका नाम अनसूया था और अनसूयाके सन्तति नहीं थी. सो सन्ततिकी कामना क· के अनस्याने ब्रह्मा विष्णु और महादेव जो कि, संपूर्ण देवतामें प्रवान हैं
लेखक | श्री दत्तात्रेय-Shri Dattatreya |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 276 |
Pdf साइज़ | 5.8 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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