अहंकार | Ahankar Book/Pustak PDF Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
उन दिनों नील नदी के तट पर बहुत से तपस्वी रहा करते थे। दोनों ही किनारों पर कितनी ही झोपड़ियाँ थोड़ी-थोड़ी दूर पर बनी हुई थीं ।
तपस्वी लोग इन्हीं में एकान्तबास करते थे. और जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की सहायता करते थे । इन्हीं कोपड़ियों के बीच मे वहाँ वहाँ गिरजे बने हुए थे।
प्रायः सभी गिरजाघरों पर सलीब का आकार दिखाई देता था। घर्मोत्सवों पर साधु-सन्त दूर-दूर से यहाँ आ जाते थे। नदी के किनारे लहाँ तहाँ मठ भी ये नहीं तपस्वी लोग अकेले छोटी-छोटी गुफाओं मे सिद्धि प्राप्ति करने का यत्न करते थे।
यह समी तपस्वी बड़े-बड़े कठिनव्रत धारण करते थे, केवल सूर्यास्त के बाद एक बार सूक्ष्म आहार करते। रोटी और नमक के सिवाय और किसी वस्तु का सेवन न करते थे।
कितने ही तो समाधियों या कन्दराओं मे पड़े रहते थे। सभी ब्रह्मचारी थे, सभी मिताहारी थे । वह ऊन का एक कुरता और कन्टोप पहनते थे, रात को बहुत देर तक जागते और भजन करने के पीछे भूमि पर सो जाते थे।
अपने पूर्व पुरुष के पापों का प्रायश्चित करने के लिए वह अपनी देह को भोग-विलास ही से दूर नहीं रखते थे, बरन उसकी इतनी रक्षा भी न करते थे जो वर्तमान काल में अनिवार्य्य समझी जाती है।
उनका विश्वास था कि देह को जितना ही कष्ट दिया जाब, वह जितनी रुग्णावस्था में हो, उतनी ही आत्मा पवित्र होती है। उनके लिए कोढ़ और फोड़ों से उत्तम शृंगार की कोई वस्तु न थी।
इस तपोभूमि में कुछ लोग तो ध्यान और तप में जीवन को सफल करते थे, पर कुछ ऐसे लोग भी थे जो ताड़ की जटाओ को बट फर किसानों के लिए रस्सिय बनावे, या फसल के दिनों मे कृपकों की सहायता करते थे।
शहर के रहने वाले समझते थे कि यह चोरों और डाकुओं का गरोह हैं, यह सब अरब के लुटेरों से मिल कर क़ाफिलों को लूट लेते हैं। किन्तु यह भ्रम था।
लेखक | प्रेमचंद-Premchand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 255 |
Pdf साइज़ | 8.3 MB |
Category | कहानियाँ(Story) |
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