आधुनिक चिकित्सा शास्त्र – Adhunik Chikitsa Shastra Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
उस भाग को रक्न नही मिना वहा Ncciosis की प्रक्तिया हो जाती है। उपर्युक्त धमनियो में Atheroma के कारण चिरस्थायी अवरोध हो तो आत का ठीक पोषण न होने से भोजन के बाद २-३ पटे दर्द रहता है, कम खाने से कम, अधिक खाने से अधिक होता है ।
अछचि बमन, अतिभार के लक्षण होते है, रोगी का भार घटता जाता है, उसकी टागो, हृदय या मस्तिष्क में Atherorma होने के लक्षण भी होते है । तीव्र रुप में हुएइस रोग मे सहसा रोगी को सारे पेट पर दर्द लगने लगता है जो बहुषा तो बना ही रहता है, कभी कभी ठहर-ठहर कर भी उठना है, भोजन के लिए अरचि रहती तथा वमन होती, है पेट पर अफारा दीखता है वह अकडा हुआ होता है।
स्पर्याक्ष मता का लक्षण होता है, रागी मे Shock के लक्षण जसे शकिरय (Prostuiation) स्वेद, चिन्ता आदि के लक्षण होते है । मल मे रक्त होता है, रात मे इ्वेत कणो की वृद्धि होती है, भोजन के बाद कष्ट बढता है, निराहार रहने पर रोगी आराम में रहता है।
Aortogr aphy से इसका निश्चय होता है । गल्पकर्म द्वारा रोग ग्रस्त आत के भाग को निकालने से ही यह रोग ठीक हो सकता है तथा Shock के समान ही इसकी चिकित्मा होनी चाहिये, अर्थात् मृत आत को काट कर Restation करने से ही रोगी को बचाया जा सकता है ।
चिरस्थायी सिरावरोध में भी Endarterectomy का शाल्य कर्म ही इसकी चिकित्सा है | भोजन में लिया हुआ आहार द्रव्य लगभग तीन घण्टे मे आमाणय से निकल कर २, २॥ घण्टे मे IIcum के निचले सिरे पर पहुँच जाता है और वहा पर कुछ काल कका रहता है ।
इसके उत्पन्न होने पर धुद्राप ओर वृहद्र के बीच का द्वार (Theocaccal Valve) जो हर सनय वन्द रहता है, ल जाता है और रुद्रा के निम्न भाग में एकत्रित हुआ। यह अन्न-द्र आगे Ceacum मे सिराफ जाता है ।
लेखक | धर्मदत्त वैध – Dharmdatt Vaidh |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 972 |
Pdf साइज़ | 83.7 MB |
Category | आयुर्वेद(Ayurveda) |
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