मर्म विज्ञान चिकित्सा | Marm Vigyan PDF In Hindi

मर्म चिकित्सा विज्ञान – Marm Vigyan Book/Pustak Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश

ये अवस्थाएँ ऐसी है जिनमें यदि शीघ्र शस्त्रक्रिया द्वारा उपचार न किया जाय तो रोगी को शीघ्र मृत्यु हो जाती है । अतः उक्त वातों के निश्चय होने पर शौघ्र ही प्रतिकार प्रारम्भ कर दे ।

क्षण भर भी इस में विलम्ब अत्यधिक होता है। यहां तक कि स्तब्धता की अवस्था में भी शस्त्र किया करने का निर्देश है ऐसी अवस्था में रक्त के संचार-को अत्तुण्य रखने के लिये तथा हृदय के कार्याव- रोध को रोकने के लिये ‘लवण जल’ ( Saline ) का शिरावस्ति पर्याप्त मात्रा में देना आवश्यक है ।

रोगी को सदा शोषण बनाये रखने का प्रयत्न करना चाहिये । वेदना की शान्ति के लिये थोड़ा अहिफेन का प्रयोग भी हितकर होता है। परन्तु इसका प्रयोग बहुत सावधानी से करना चाहिये । केवल अंत्र के संकोच प्रसार को रोकने मात्र फी मात्रा में इसका उपयोग हितकर हाता है ।

रचना-यह वही वक्षःस्य यंत्र है, जिसके संकोच विकास से खम्पूर्ण शरीर में रक्त का परिभ्रमण होता है । ( इस कार्य के अतिरिक अन्य कार्यों के विवरण के लिये सुश्रुत, शारीर-चतुर्थ अध्याय घाणेकर टीका में वर्णित हृदय के विवेचन को देख ) ।

सत्वादि का अधिष्टान हृदय क्यों कहा गया है यह उपयुक्त स्थल को देखने से स्पष्ट हो जायगा । हृदय दोनों स्तनों के मध्य में रहता है, किन्तु उसका अधिकांश बाई ओर होता है। वक्ष के दोवाल के ऊपर उसकी स्थिति निम्न चार बिन्दुओं को मिलाने वाली चार रेखाओं से मालूम (चित्र सींच ) कर सकते हैं।

(१ ) हृदय का शप्र भाग या मुख ( Apex ) इसका स्थान बाई ओर के पश्चम पशुकान्तर स्थान में चूचुक के नीचे उर:फलक की ओर इञ्च या वक्ष मध्य रेखा से ३१ इच होता है । इसी स्थान पर दर्शन या स्पर्श से हृदय के अप्र का स्पन्दन प्रतीत होता है । हृदय की विकृतियों में यह स्थान नीचे और बाहर की ओर सरक जाता है। हृदय प्र ( Apex ) का स्थानान्तर हृद्विकृति का निश्चित चिह्न है

लेखक पाठक रामरक्ष -Pathak Ramraksh
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 128
Pdf साइज़7.5 MB
Categoryआयुर्वेद(Ayurveda)

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