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आज की मुरली – Aaj Ki Murli PDF Free Download
आज की मुरली ब्रह्म कुमारी
प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे – ज्ञान रत्नों को धारण कर रूहानी हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोलते जाओ, जिससे सबको हेल्थ वेल्थ मिले”
प्रश्न:- बाप का कौन सा कर्तव्य कोई भी मनुष्य आत्मा नहीं कर सकती है?
उत्तर:- आत्मा को ज्ञान का इन्जेक्शन लगाकर उसे सदा के लिए निरोगी बनाना, यह कर्तव्य कोई भी मनुष्य नहीं कर सकते। जो आत्मा को निर्लेप मानते, वह ज्ञान का इन्जेक्शन कैसे लगायेंगे। यह कर्तव्य एक अविनाशी सर्जन का ही है जो ऐसी ज्ञान-योग की दवाई देते हैं जिससे आधाकल्प के लिए आत्मा और शरीर दोनों ही हेल्दी- वेल्दी बन जाते हैं।
गीत:- यह वक्त जा रहा है.. –
ओम् शान्ति। यह किसने कहा कि बाकी थोड़ा समय है? बहुत गई अब थोड़ी की भी थोड़ी रही। अब तुम इस पुरानी दुनिया में बैठे हो । यहाँ तो दुःख ही दुःख है। सुख का नाम-निशान नहीं है।
सुख है ही सुखधाम में। कलियुग को कहते हैं दुःखधाम। अब बाबा कहते हैं जबकि मैं आया हूँ, तुमको सुखधाम ले चलने के लिए तो फिर क्यों रूके हुए हो? दु:खधाम से क्यों दिल लगी हुई है?
दु:खधाम के भातियों से अथवा इस पुराने शरीर से क्यों दिल लगी है? हम आये हैं तुमको सुखधाम में ले चलने के लिए।
संन्यासी कहते हैं इस दुनिया का सुख तो काग विष्टा समान है इसलिए उनका संन्यास करते हैं। तुम बच्चों को अब सुखधाम का साक्षात्कार हुआ है।
यह पढ़ाई है ही सुखधाम के लिए और इस पढ़ाई में कोई भी तकलीफ नहीं है। बाप को याद करना है। इस याद से भी तुम निरोगी बनेंगे।
तुम्हारी काया कल्प वृक्ष समान बड़ी होगी। यह जो मनुष्य सृष्टि का झाड़ है, उनकी आयु 5 हजार वर्ष है। उसमें आधाकल्प सुख, आधाकल्प दुःख है।
दुःख तो आधाकल्प तुमने देखा, बाप कहते हैं पवित्र दुनिया में चलना है तो पवित्र बनो। श्रीमत कहती है यह विष की लेन-देन छोड़ दो। ज्ञान और योग की धारणा करो। जितना ज्ञान रत्न धारण करेंगे उतना निरोगी बनेंगे।
बाप ने समझाया है यह रूहानी हॉस्पिटल भी है तो युनिवर्सिटी भी है। परमपिता परमात्मा आकर रूहानी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी स्थापन करते हैं।
हॉस्पिटल तो दुनिया में बहुत हैं लेकिन ऐसी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी दोनों इक्ट्ठी कहीं नहीं होती। यहाँ यह वण्डर है, हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी, हेल्थ और वेल्थ इकट्ठी मिलती हैं।
फिर क्यों नहीं इस खजाने को लेने के लिए खड़े हो जाते हो। आजकल करते अचानक ही विनाश आ जायेगा। बाप श्रेष्ठ ते श्रेष्ठ मत देते हैं। तुम गवर्मेन्ट को भी समझाओ इस समय बेहद का बाप ऐसी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी खोलते हैं जो सबको हेल्थ वेल्थ दोनों मिले।
गवर्मेन्ट भी हॉस्पिटल, युनिवर्सिटी खोलती है। उनको समझाओ इस जिस्मानी हॉस्पिटल खोलने से क्या होगा। यह तो आधाकल्प से चलती आई हैं और मरीज भी बनते ही आये हैं।
यह है फिर रूहानी हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी, इससे मनुष्य 21 जन्मों के लिए एवरहेल्दी वेल्दी बन सकते हैं। तो एज्यूकेशन मिनिस्टर, हेल्थ मिनिस्टर को भी समझाओ कि बेहद के बाप ने यह कम्बाइन्ड हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी दोनों खोली हैं।
आपको भी राय देते हैं ऐसे खोलो तो मनुष्यों का कल्याण हो जाए। बाकी यह बीमारियां आदि तो से रावण राज्य शुरू हुआ है तब से शुरू हुई हैं। आगे तो वैद्य की दवाईयां थी।
अब तो अंग्रेजी दवाईयां बहुत निकली हैं। यह है अविनाशी सर्जन, जो अविनाशी दवाई देते हैं। तब गाया जाता है ज्ञान अंजन सतगुरू दिया, ज्ञान इन्जेक्शन रूहानी बाप ही लगाते हैं आत्माओं को।
और कोई आत्मा को इन्जेक्शन लगाने वाला हो नहीं सकता। वह तो कह देते हैं आत्मा निर्लेप है। तो तुम समझाओ उस हॉस्पिटल और युनिवर्सिटी में तो लाखों रूपया खर्चा लग जाता है।
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धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप के समीप आने के लिए रूहानी यात्रा पर रहना है। रात को जागकर भी यह बुद्धि की यात्रा जरूर करनी है।
2) सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बन 21 कुल का उद्धार करना है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना है। काल पर विजय पाने के लिए इस पुरानी खाल से ममत्व निकाल देना है।
वरदान:– रूहानियत द्वारा वृत्ति, दृष्टि, बोल और कर्म को रॉयल बनाने वाले ब्रह्मा बाप समान भव ब्रह्मा बाप के बोल, चाल, चेहरे और चलन में जो रायल्टी देखी – उसमें फालो करो। जैसे ब्रह्मा बाप ने कभी छोटी-छोटी बातों में अपनी बुद्धि वा समय नहीं दिया।
उनके मुख से कभी साधारण बोल नहीं निकले, हर बोल युक्तियुक्त अर्थात् व्यर्थ भाव से परे अव्यक्त भाव और भावना वाले रहे।
उनकी वृत्ति हर आत्मा प्रति सदा शुभ भावना, शुभ कामना वाली रही, दृष्टि से सबको फरिश्ते रूप में देखा। कर्म से सदा सुख दिया और सुख लिया। ऐसे फालो करो तब कहेंगे ब्रह्मा बाप समान।
स्लोगन:– मेहनत के बजाए मुहब्बत के झूले में झूलना ही श्रेष्ठ भाग्यवान की निशानी है।
लवलीन स्थिति का अनुभव करो
जैसे लौकिक रीति से कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन है, आशिक है। ऐसे आपके अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज हो तो आपके बोल औरों को भी स्नेह में घायल कर देंगे।
लेखक | Murli |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 3 |
PDF साइज़ | 0.1 MB |
Category | Religious |
Credit | drive.google.com |
यह पर पुरे जनवरी मास की मुरली दी गई है जिसको आप हररोज पढ़ सकते हो.
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