योग की विधी और सिद्धि – Yog Ki Vidhi Aur Siddhi Book/Pustak Pdf Free Download
योग
धार्मिक एकता स्थापित हो सकती है और इसके फलस्वरूप विश्व में एक धर्म, एक दैवी स्वराज्य तथा प्रेम एवं अहिंसा का आह्वान हो सकता है।
चिन्तन अथवा मनु योग का एक अंग आज चिन्तन अथवा मनन का पाश्चात्य देशों में बहुत रिवाज चल पड़ा है।
इससे उनका मन चिन्तादायक समस्याओं से हट कर प्रभु-चिन्तन में लग जाने से शान्ति का अनुभव करता है। आज पाश्चात्य देशों में कौटुम्बिक जीवन (Family life) अथवा माता-पिता के स्नेह का अभाव है
बच्चे उसकी न्यूनता अनुभव करते हैं क्योंकि उन्हें माता-पिता के घनिष्ठ सम्पर्क में आने के अवसर बहुत कम मिलते हैं माता-पिता दफ्तर चले जाते हैं और बच्चे स्कूल में।
फिर, जब वे वापस लौटते है तो माता-पिता पार्टियों या क्लयों में गये होते हैं
शैशव में मातृ स्नेह तथा पैठक प्रेम के अभाव का ही यह परिणाम होता है कि वे बड़े होकर वासना भोग में ही प्रेम के अभाव की अभिव्यक्ति करते है।
यही कारण है कि पाश्चात्य समाज एक वासना प्रधान समाज (Permissive society) हो गया है।
इसके पूर्व में, एशियाई देशों में लोग आर्थिक विन्ताओं में डूबे रहते हैं तथा आलस्य और क्रोधावेश के वश हैं प्रभु चिन्तन से ही दोनों प्रकार के समाज का सुधार हो सकता है और पूर्व तथा पश्चिम में मिलाप हो सकता है।
ऐसा कुछ प्रयास आज हो रहा है। परन्तु देखा गया है कि पाश्चात्य देशों में ईश्वर के स्वरूप का मनन चिन्तन करने की बजाय बहुत से लोग यो ही किसी नैतिक उक्ति (Moral saying) पर, किसी दिव्य गुण पर या किसी विचार (Thought) पर मन को ही मेडिटेशन (Medita tion) के रूप में अपनाते हैं।
यदि कुछ भी अभ्यास न करसे से तो यह हज़ार गुणा अच्छा है, परन्तु यह वास्तविक मेडिटेशन का अंग नहीं है और अभूरा है।
लेखक | ब्रह्मा कुमारी-Brahma Kumari |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 255 |
Pdf साइज़ | 37.9 MB |
Category | Yoga Books |
Yog Benefits And Methods Hindi PDF Free Download