यौन मनोविज्ञान – Sex Education Psychology Book Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
सहयौन सुखदु खास्तिर्व के अन्तर्गत परस्वाभाविक थीन आवेग की कुछ सब से उत्कट अभिव्यक्तिया गाती है। सादवाद के कारण कुछ अत्यन्त हिसात्मक दुराचार हो सकते हैं जो मानव स्वभाव के विरुय है और मासोकवाद के कारण माननीय प्रकृति का भद्दा से भद्दा अपमान हो सकता है।
पर यह बाद रखना जरूरी कि दोनो ही स्वाभाविक मानवीय आावेगी पर आधारित है, पर ये उन प्रवृत्तियो के अन्तिम सीमान्त है जो पल्प मात्रा में होने पर बेधजै निक क्षेत्र के अन्तर्गत माने जा सकते है ।
सहयौन सुखदु लास्तित्व का स्वाभाविक सामान्य प्राधार जटिल धीर बहु मुखी है। इस सम्बन्ध में विशेष रूप से दो बातें ऐसी है जिन्हे ध्यान में रखन। चाहिर–(१) कष्ट चाहे पहुचाया जाए या सहन किया जाए, पूर्वराज प्रक्रिया की गौण उपज है, जो निम्नतर श्रेणी के जानवरी योर मनुष्यी में समान रूप से पाया जाता है।
२) कष्ट नाहे सुन किया जाए चाहे पहनाया जाए, विशेषत जत्मजत प्रथा वातावरण में प्राप्त स्नायविक शामिल दशाच्ों में रनायुधी के लिए उत्तेअक है और योन केन्दरो पर उसका जोरदार प्रसर होता है। यदि हम इन दो प्रामारभूत बातो को ध्यान में रखे तो हमे सकयोग
सुखद खा- स्तित्व की मिया के बहरुपी यज्ञ को विवाद रूप से समझने में कठिनाई नही होती और हमे उनके मनोविज्ञान की चाभी मिल जाएगी। योग प्ाथेग का प्रस्येक सहयोग सुरण मास्तित्य वाला रुच या तो पूर्वरान के किसी पादिम
स्तर की प्रति वृद्धि है जो कमी कभी पूर्वजों से यादहुए स में प्रकट होती है) याफिर यह उग प्रयनी की सूचित करती है जो मिथिगत सारीर में यौन स्फोति की स्थिति उत्पन्न करने के लिए कामोद्दीपक के रूप में लग करते है ।
लेखक | मनम नाथ-Manam Nath |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 350 |
Pdf साइज़ | 17.4 MB |
Category | मनोवैज्ञानिक(Psychological) |
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