विवाह संस्कार पुस्तक – Hindu Marriage Matra Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
इमन्तमभितिष्ठामि यो मा कभाभिदासति ॥ अर्थप्रकाश करने वाले ग्रह नक्षत्राविकों के बीच में सूर्य जसे श्रेष्ठ है, वैसे ही कुन, मान, आचार, शरीर, अवस्था तथा अन्य गुणों से सजातीय तुल्य पुरुषों में मैं श्रेठ ।।
और जो कोई झे हपफीण करना चाहता है अर्थात् मुझे नीचा दिखाना चाहता है उस पुरुष को लक्ष्य बना कर इस भासन के ऊपर बैठता है अर्चात् उसे इस आसन के तुल्य बीचा करके बैठता हूं |
इस मन्त्र को बोले तत्पश्चात् कार्यकी एक सुंदर पात्र में पूर्ण जल भर के कन्या के हाथ में देखें और कन्या पैर धोने के लिए जल से सत्कार । ओं पाद्य पाद्यं पाद्यं प्रतिगृह्यताम् ।
अर्थ-पैर धोने के लिए जाता स्वीकार कीजिए । इस वाक्य की बीज के वरके आगे धरे पुनः वर -ओं प्रतिगृहणामि।अर्थ-६ीकार करता है ।इस वाक्य को बाल के कन्या के हाथ से उदक ल पग प्रक्षालन करे और उस समय
सार भूत रस है। उस मन्त्र के सार भूत तुझ को में व्याप्त होऊ अर्चात् तुझ से रोगादि निवृत्ति के लिए ईश्वर करे कि सम्बन्ध करुं अ् का सार तू इस समय मेरे विषय में प की रक्षा के लिए उपस्थित है।
इस मन्त्र को बोले-तत्पश्चात् फिर भी कार्य का दूसरा शुद्ध लोटा पवित्र जल से भर कन्या के हाथ में देवे पुनः कन्या अर्घ जल से मुख धोने का सत्कार । ओं अर्धोश्धोंर्थः प्रतिगृहयताम् ॥
अर्थ-सत्कारार्थ मुख प्रत्षालनाथ जल स्वीकार करें । इस घा्य को बोज के घर के हाथ में ब्रेवे ऑर वर-ओं प्रतिगृह्णामि ॥अर्थ-में स्वीकार करता हैं ।इस वाक्य को बोल के कन्या के हाथ से जल पात्र ले के उस मुखप्रताजन करे और उसी समय वर मुख धोके-गोरे
लेखक | स्वामी दयानंद-Swami Dayanand |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 72 |
Pdf साइज़ | 3.9 MB |
Category | विषय(Subject) |
विवाहा संस्कार भाषा टीका – Vivah Sanskar Book/Pustak Pdf Free Download