विकृत चिंतन : रोग शोक का मूलभूत कारण – Vikrit Chintan PDF Free Download

समस्त विग्रहों की जड़ अहंकार
संसार में जितने भी द्वन्द्व, संघर्ष, विग्रह और युद्ध हुए हैं उनके कारणों का यदि अध्ययन किया जाय तो वे अनेक नहीं होंगे।
दो व्यक्तियों की आपसी लड़ाई और दो राष्ट्रों के युद्ध दिखाई पड़ने में अलग-अलग होंगे
परन्तु उनका कारण एक ही होगा और वह कारण है एक दूसरे पर आधिपत्य जमाना। दूसरे शब्दों में अपने आपको प्रतिद्वन्द्वी से बड़ा शक्तिशाली सिद्ध करना।
पिछले विश्वयुद्ध में लाखों व्यक्ति मारे गये और उनसे भी अधिक हताहत हुए।
इस भीषण नरसंहार का कारण एक व्यक्ति का यह मानना था कि उसकी जाति सर्वश्रेष्ठ है और वह उस सर्वश्रेष्ठ जाति का सर्वोच्च नेता है।
इसलिए वह संसार का सबसे बड़ा शक्तिशाली, सर्वश्रेष्ठ और सबसे महान व्यक्ति है।
दो व्यक्तियों की लड़ाई में भी यही कारण होता है। एक किसी कारण से अपने आपको दूसरे से बड़ा शक्तिशाली और श्रेष्ठ समझता है तथा उससे यह मनवाना चाहता है,
जबकि दूसरा व्यक्ति उसकी इस बात को स्वीकार कर अपने आपको छोटा नहीं मानना चाहता। लडाई के प्रत्यक्ष कारण चाहे जो भी रहें पर मूलतः संघर्ष दो व्यक्तियों के अहंकार का टकराव ही होता है।
इस अहंकार ने मनुष्य जाति का जितना अहित किया है, उतना दूसरे किसी कारण से अहित नहीं हुआ है।
न भूख से, न बीमारी से, न बाढ से, न सूखे और न रोग से तथा न दुर्बलता से, किसी भी कारण इतने लोग नहीं मरे हैं
जितने कि आपसी संघर्षो, जातीय युद्धों और दो राष्ट्रों के या अनेक देशों के संग्राम से मरे हैं।
इन संघर्षों, द्वन्द्वों और युद्धों का एकमात्र कारण अपनी श्रेष्ठता का दावा तथा दूसरों द्वारा उस दावे को दी गयी चुनौती ही है।
अहंकार के कारण न केवल मनुष्य जाति हिंसा तथा विनाश की शिकार हुई है बल्कि उसके कारण मनुष्य का नैतिक पतन भी हुआ है।
स्वार्थ, संकीर्णता, अनुदारता, लोभ, परस्वत्वापहरण जैसे दुर्गुणों का एकमात्र जनक भी अहंकार ही है।
लोभ, मोह, अनीति और अनाचार को अहंकार की ही सन्तान कहा जा सकता है।
चूँकि यह दुर्गुण मनुष्य के अन्तःकरण में निवास करता है अतः इसकी प्रतिध्वनि समाज क्षेत्र में होना भी स्वाभाविक ही है
लेखक | ब्रह्मवर्चस-Brahmvarchas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 64 |
Pdf साइज़ | 4.5 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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