तुलसीदास की जीवनी – Tulsidas Biography Book Pdf Free Download
जन्म-वर्णन
लोक में प्रसिद्ध है कि गोसाईजी के पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा | माता का नाम श्रीमती हुलसी देवी था । गोसाईजी ने अपने किसी भी ग्रन्थ में अपने माता-पिता के नाम नहीं दिये हैं ।
कुछ एक स्थलों पर ‘हुलसी’ शब्द आया है जिससे अनुमान किया जाता है कि उनकी माता का नाम ‘हुलसी’ ही है । अक बर बादशाह के प्रसिद्ध वजीर नवाब खानखाना रहीम के साथ गोसाईजी का बड़ा ही स्नेह था ।
खानखाना भी हिन्दी-भाषा के अच्छे कवि थे । एक दिन तुलसीदास जी के पास एक दीन ब्राहाण आया और अपनी कन्या के विवाहार्थ उसने कुछ धन की याञ्चा की ।
गोस्वामीजी ने एक पुर्ने पर अधोलिखित दोहार्द्ध लिख कर उस ब्राह्मण को देकर कहा कि तुम इसे ले जाकर खानखाना के हाथ में दो: सुर तिय नर तिय नाग तिय, अस चाहत सब कोय ।
ब्राह्मण ने वैसा ही किया। इस पर खानखाना ने उस ब्राहाण को बहुत कुछ धन देकर बिदा किया और कहा कि इस कागज को तुम पुनः गोसाईंजी के हाथ में जाकर दे दो । खानखाना ने उसी पद के नीचे यह लिख दिया:
गोद लिये हुलसी फिरै, तुलसी से सुत होय ॥
इसी ‘हुलसी’ से लोगों की यह धारणा है कि खानखाना ने इस शब्द को श्लेषार्थ में प्रयुक्त किया है ।
हुलसी का अर्थ ‘प्रसन्न होकर’ और ‘तुलसीदास की माता’ का भी वाचक है। गोसाईजी स्वयं हुलसी शब्द को प्रसन्नता वा प्रकाश अर्थ में प्रयुक्त करते हैं, जैसा निम्न पदों से प्रकट है :
वंश-वर्णन
इसमें तो कोई सन्देह ही नहीं कि तुलसीदास जी ब्राह्मण के बालक थे । “दियो सुकुल जन्म शरीर सुन्दर हेतु जो फल चारि को” और “जायो कुन मंगन इत्यादि पद्यों से गोस्वामी जी ने स्वयं अपने ब्राह्मणवंशज होने की सूचना दी है ।
इस विषय में किसी भी प्रत्थकार के बीच मत द्वैत नहीं देखते। हाँ. कोई इन्हें कान्यकुब्ज और कोई सरयूपारीण बतलाते हैं।
पण्डित रामगुलाम द्विवेदी इन्हें सरयूपारी ब्राह्मण तथा पतिश्रौजा के दुबे मानते हैं। गोत्र पराशर बतलाया जाता है। कहा भी है “तुलसी पराशर गोत्र दुबे पतियौजा के” ।
गोस्वामी जी की जीवनी में विचित्र परिवर्त्तन
अब तक जो कुछ जीवनचरित्र गोस्वामी तुलसीदासजी का प्राप्त हो चुका था उसी के आधार पर ऊपर यथासम्भव कुछ लिखा गया है ।
अब गोसाईं जी की एक विचित्र ही जीवनी का पता लगा है, जिसका वर्णन लाला शिवनन्दन सहाय जो ‘माधुरी’ के वर्ष २ खण्ड १ संख्या १ के पृष्ठ २५ पर इस प्रकार करते हैं:
“हमें ज्ञात हुआ है कि केसरिया ( चंपारन ) – निवासी बाबू इन्द्रदेव नारायण को गोसाई जी के किसी चेले की, एक लाख दोहे-चौपाइयों में लिखी हुई गोसाई जी की जीवनी प्राप्त हुई है ।
सुनते हैं, गोसाईं जी ने पहले उसका प्रचार न होने का शाप दिया था; किन्तु लोगों के अनुनय-विनय से शाप-मोचन का समय संवत् १९६७ निर्धारित कर दिया ।
तब उसकी रक्षा का भार उसी प्रेत को सौंपा गया जिसने गोसाईं जी को श्री हनुमान् जी से मिलने का उपाय बता कर श्री रामचन्द्रजी के दर्शन की राह दिखाई थी। वह पुस्तक भूटान के किसी ब्राह्मण के घर पड़ी रही।
एक मुन्शी जी उसके बालकों के शिक्षक थे। बालकों से उस पुस्तक का पता पाकर उन्होंने उसकी पूरी नकल कर डाली ।
इस गुरुतर अपराध से क्रोधित हो वह ब्राह्मण उनके बध के निमित्त उद्यत हुआ, तो मुन्शी जी वहाँ से चंपत हो गए । वही पुस्तक किसी प्रकार अलवर पहुँची, और फिर पूर्वोक्त बाबू साहब के हाथ लगी ।
क्या हम अपने स्वजातीय इन मुन्शी जी की चतुराई और बहादुरी की प्रशंसा नहीं करेंगे ? उन्होंने सारी पुस्तक की नकल कर ली, तब तक ब्राह्मण-देवता के कानों तक खबर न पहुँची, और जब भागे तो अपने बोरिए-बस्ते के साथ उस दीर्घ-काय ग्रंथ को भी लेते हुए !
इसके साथ ही क्या अपने दूसरे भाई को यह अश्रुत-पूर्व और अलभ्य पुस्तक हस्त-गत करने पर बधाई न देनी चाहिये ? पर प्रेत ने उसकी कैसे रक्षा की, और वह उस ब्राह्मण के घर कैसे पहुँची ?
यह कुछ हमारे संवाद दाता ने हमें नहीं बताया । जो हो, जिस प्रेत की बदौलत सब कुछ हुआ, उसके साथ गोसाईं जी ने यथोचित प्रत्युपकार नहीं किया ।
बनखंडी तथा केशवदास के समान उसके उद्धार का उद्योग तो भला करते । उलटे उसके माथे ३०० वर्ष तक अपनी जीवनी की रक्षा का भार डाल दिया” !
इस सम्बन्ध में माननीय बाबू श्यामसुन्दर दासजी ने ‘मर्यादा’ से जो कुछ उल्लेख राम-चरित मानस की टीका की भूमिका के पृष्ठ ९ से पृष्ठ १४ तक किये हैं उसे पाठकों की जानकारी के लिये अविकल उद्धृत किया जाता है:
“मर्यादा पत्रिका की ज्येष्ठ १९६९ की संख्या में श्रीयुत इन्द्रदेव नारायण जी ने हिन्दी – नवरत्न पर अपने विचार प्रगट करते हुए गोस्वामी तुलसीदासजी के जीवन सम्बन्ध में अनेक बातें ऐसी कही हैं जो अब तक की निर्धारित बातों में बहुत उलट फेर कर देती हैं।
इस लेख में गोस्वामी तुलसीदासजी के एक नवीन ‘चरित्र’ का वृत्तान्त लिखा है और उससे उद्धरण भी किये गये हैं। इस लेख में लिखा है:
“गोस्वामी जी का जीवन-चरित्र उनके शिष्य महानुभाव रघुवर दासजी ने लिखा है । इस ग्रन्थ का नाम “तुलसी-चरित” है ।
यह बड़ा ही बृहद्व्रन्थ है । इसके मुख्य चार खंड हैं-(१) अवधं, (२) काशी, (३) नर्मदा और (४) मथुरा: इनमें भी अनेक उपखण्ड हैं इस ग्रन्थ की छन्द-संख्या इस प्रकार लिखी हुई है ० एक लाख तैंतीस हजारा, नौ से बासठ छन्द उदारा” । यह ग्रन्थ महाभारत “चौ० से कम नहीं है ।
इसमें गोस्वामी जी के जीवन-चरित्र-विषयक नित्य प्रति के मुख्य मुख्य वृत्तान्त लिखे हुए हैं। इनकी कविता अत्यन्त मधुर, सरल और मनोरंजक है ।
लेखक | तुलसीदास-Tulsidas |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 8 |
Pdf साइज़ | 1 MB |
Category | आत्मकथा(Biography) |
तुलसीदास का विस्तृत जीवन परिचय PDF
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