ज्ञानेश्वर चरित ग्रंथविवेचन – Gyaneshwar Charitra Book/Pustak Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
इच्छाबलसे ही उत्पन्न हुई थी, यही मानना पड़ता है। ईबरी इच्छासे विठ्ठलपन्तने आलन्दीमें पाँव रखा और उसी पाঁবपर पॉँच रखकर यह कारण-परम्परा बड़े वेगसे आगे बढ़ती गयी। पीछे- की लहर जैसे आगेको लहरको ढकेलती हुई आगे आती है,
वैसे ही पिछला कारण अगले कारणको कार्यका रूप देता हुआ और खर्य भी पिछले कारणका कार्य होता हुआ प्रवाहरूपसे चला जा रहा है।षिडछपन्त आलन्दोमें आकर श्रीसिद्धेद्वरके देवालयमें ठहरे ।
आन्दोके कुलकर्णी सिधोपन्त त्रिप्रवरी यासिष्ठ गोत्री ब्राह्मण, बड़े सदाचारी और ज्ञानी पुरुष थे । इन्हें अच्छी आय था, चौबीस गाँवोंके कुलकर्णी थे । इनकी सहधर्मिणी उमावाई भी धर्मानुकूल यो और इनका गृहाश्रम सूखपूर्वक चल रहा
था इन परोपकारस्त और अतिथिसत्कारतत्पर दम्पतिके एक उपवर कन्या यो । इसके लिये सिवोपन्त उपयुक्त वर दूँढ रहे थे । वह ऐसा वर चाहते थे जो विद्वान् हो, सदाचारी हो और भगवद्गक हो । विट्ठलपन्तकी वयस्
अधिक नहीं थी और ज्ञान-बैराग्य- क्लका सेज उनके शरीरपर चमक रहा था । जल्दी में रहते हुए यह नित्य स्नान-सन्ध्या-देवपूजन आदि कर्म करके तीसरे पहर उपनिषद भाष्यादि देखा करते थे । आलग्दीगें आये हुए
इस नवीन का ग सिधीपन्सने जी देखा वह उन्हें पसन्द आया. तब उन्होंने उसके कुल-टीलके सम्बन्ध में उसासे पल-ताश की, लव तो यह उन्हें जच ही गये । उन्होंने मन-ही-मन यह मान लिया किस सुख युवकको
अपना जामाला बनाना चाहिये पर पूरी परीक्षा तिथि हो रात-दिन उसी ध्यानमें रहनेसे कहिये अपवा ईश्वरी इच्छासे कहिये, सिधोपन्तको यह लम भी हुआ कि, तुम अपनी कन्या इसी वरको व्याह दो,
इसके गर्भसे दिल्य सन्तान उत्पन्न होकर तुम्हारे कुलका उद्धार दूसरे दिन चार प्रतिष्ठित पुरुषोंको बुलाकर उनके सामने सिद्धांत ने विट्ठल्पन्तसे विवाहका प्रस्ताव किया और अपना स्वप्न भी बला दिया ।
लेखक | लक्ष्मण रामचंद्र-Lakshman Ramchandra |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 361 |
Pdf साइज़ | 10.7 MB |
Category | आत्मकथा(Biography) |
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