श्री हरि गीता | Shri Hari Gita PDF In Hindi

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श्री हरि गीता – Shri Hari Gita PDF Free Download

हरि गीता

जिससे सन्टाम अशान्त और स्वधर्म को भूले हुए अजु न की कीवता नष्ट हुई, जिससे उसे आर्यत्व का स्मरण हुआ.

जिसने उसमे परम पुरुषार्थ जगाया और उसे राजसीभाव तथा माया-ममता से हटाकर बेबी कर्म में नियुक्त किया। इमे सन्देह- रहित और निर्भय होने के लिये ईश्वरीय वाणी सुननी है और उसके अनुसार स्वधर्म का आचरण करना है।

कुरुक्षेत्र के समान रक्तरंजिता नर्दक भूमि को भी स्ववर्म- पालन से आध्यात्मिक, स्वतन्त्र, अक्षुण्ण और अखंड धर्मभूमि बनाने के लिये हमें गीता के ज्ञान की आवश्यकता है।

हमारे कर्म आनन्द से भर जाये, हमारा प्रेम मानवमात्र में भगवत्-भाव भरदे और हमारा ज्ञान सम्पूर्ण आध्यात्मिक तथा बौद्धिक

विकास का सहायक होकर जीवन को ईश्वरीय कर्मों का क्षेत्र बनाने में सफल हो हम सब सत्य में स्थित हों, योग-क्षेम की चाह और चिन्ता से मुक्त हों और आत्मवान् बने यही हमे गीता से सीखना है ।कमे को बन्धन और त्याज्य मानकर जो अकर्मण्य प्राणी जीवन की निधि खो चुके हैं.

स्वतन्त्रता (जीवन-मुक्ति) के आनन्द का अनुभव जिन्हे स्वप्नवत है. इसी जीवन में स्वर्ग सुग्य का उपभोग छोड़कर जो मरने पर स्वर्ग पाने की अभिलापा करते हैं

और जो गीता के ज्ञान का अधिकार खोकर दीनभाव हमे सहायता और प्रकाश के लिये गीता की क्षण-क्षण में नयी रुचि उत्पन्न करनेवाली विलक्षण वाणी सुननी है, गीता के जीते-जागते सन्देश से कर्म की प्रेरणा और स्फूर्ति लेकर मर्त्य जगत् को अमृत से भरना है, असत् से सत् की ओर चलना है।

कर्म और ज्ञान के दोनों हाथ जोड़कर हार्दिकभक्ति से गीता की वन्दना करते ही जीवन के स्वरों में गीता का संगीत गंज उठेगा कुरुक्षेत्र की भूमि संसार का विस्तृत क्षेत्र है।

यहां प्रत्येक जीव को प्रतिपल युद्ध करना पड़ता है। प्रकार के गुण इस भूमि मे नाना और होप मानव-मन मे जागते है। विचार-शक्ति

श्रीहरिगीता श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिशछोकी हिन्दी अनुवाद

है। अनुवाद-कर्ता है ऑल इस्डिया रेडियो द्वारा गीता सुननेबालों के चिरपरिचित पं० दीनानाथ भागंव ‘दिनेश’ दिल्ली के मानवधर्स” के कुशल धर्मनिष्ठ सम्पादक |

‘द्निश” जी की गीता सेंने ऑल इण्डिया रेडियो से जब सुनी तो मुझे वहुत दही आनन्द हुआ |

सेने मन ही सन कहा कि इस ऑल इण्डिया रेडियो के संचालक जो कोई हों, इसमें सन्देह नहीं कि ‘दिनेश” जी से गीता कहलाने के रूप में उनके द्वारा बड़ा ही मंगलकाये हो रहा है ।

गीता के श्लोकों मे एक विलक्षण मन्त्रशक्ति है, जिसके प्रभाव की कोई मर्यादा नहीं बांधी जा सकती, न गीताथ का कोई भी अनुवाद, भाष्य, वात्तिक या टीका उस अर्थ के मुक्त स्रोत में कोई बांध बॉघ सकती है।

जितने भी साम्प्रदायिक्र अजुवाद या भाष्यादि होते हैं, सब अपने समय की विशेष परिस्थिति, उस समय के समाज की बिचार-प्रणाल्ली तथा वेयक्तिक धारणाओं और विशिप्ठ अनुभवों से मर्यादित होते हैं।

साम्प्रदायिक प्राकार के अन्दर वँधा हुआ गीतार्थ अपने स्वाभाधिक्र मुक्त स्रोत को ढांके द्वी रहता है।

इसलिये गीता के सबसे अच्छे ओर प्रामाणिक अनुवाद वही कहे जा सकते हैं जो गीता के अर्थपूर्ण शब्दों का अनुवाद करने में अपनी ओर से अपन समय, समाज या व्यक्तित्व की कोई बात नहीं मित्राते ओर जहां तक होता है. इससे बचने की सावधानी रखते हैं ।

किसी भी ग्रन्थकार की कोई कृति उसकी निष्ठा का ही प्रतिबिम्ब हुआ करती है। यदि उस कृति से उसकी निष्ठा नहीं है तो वहा कृति कोई चीज नही दै।

इस दृष्टि से “श्रीहरिगीता” दिनेश जी की गीता-निष्ठा का ही फल है ओर निष्ठा ही बह बल है जिससे गीताथ ब्राप्त होता है।

निष्ठा का ही यह श्रसाद है जो इस प्रासादिक वाणी के साथ “श्रीहरिगीता” के रूप मे प्राप्त हुआ है ।

ऐसे प्रामाशिक अनुवादों से यह लाभ होता है कि एक तो चीज अपने असली रूप मे मित्ञती है और दूसरे प्रत्येक पाठक को वह धैय और उत्साह प्राप्त होता है, जिससे गीताथे की व्यापकता में वह स्वच्छुन्द विहार कर सके ।

गीता की सन्त्रशक्ति उसकी सतत सहायक होती है ।

गीता पहले-पहल कुरुक्षेत्र की रणभूमि में सुनाई गई और उससे जगन्मंगलकारक घमराज्य स्थापित हुआ |

तब से ४१०२ वर्ष बीत चुके है, पर गीता का यद्दी आदि और अन्त नहीं है।

अनादि अनन्त तत्व का भश्रतिपादन कर शाश्वत धर्म और ऐकान्तिक सुख का रास्ता बतानेबाल्ली गीता का जीवन छ्लोत अखण्ड और अमिट है। ज्ञों कोई आत्त होकर पुकारे, उसके किये गीता का बरद हस्त, आज भी प्रत्यक्ष है।

गीता को आज भी और जाने कितनी बार आगे भी उसी ज्ञान, धर्म और सुख का जगत्‌ को दान करना है।

इसलिये श्रीहरिगीता? का यह्‌ अवसर गीता के ही उस कार्य का एक महान्‌ अवसर है।

लेखक दीनानाथ भार्गव-Dinanath Bhargav
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 366
Pdf साइज़6.4 MB
Categoryधार्मिक(Religious)

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