श्री भक्ति सागर ग्रन्थ – Bhakti Sagar Granth Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
पांचतव्र विनहदै थिरथायो । ना वह बन्पो न कत्यवनायो ओर छोर कहु दीखत नाहीं। कक्सों है और कवियों नाहीं है अनमोल मर्जाद न ताकी वेपरमान बेद यॉं भाषी बैद पुराण पार नहिं पावे |
कक्कू कछु धरिष्ान बताये अनन्तभानु के सो ठजियारो । पिण्ड मरयण्ड दौउते मन्यारों लोकमध्य अविचल निजधामा । श्वेतरूप अगमपुर नामा अगमपुरी निरधारा सूची ।
हंसल हैं जिनकी मति ऊंची वेहद लोक बन्यो अतिभारी । असंख्यभानु कोसी उजियारी दो० हद्दकहूँ तो है नहीं, बेहद कहूँ तो नाहिं । ध्यान स्वरूपी कहतहों, वैन सैन माहि ॥
अतिउज्ज्वल रवि हृष्ट ठहरे । मणि हीरा लागे जहाँ गहरे कई रङ्गके हीरा भाखे । कलश काँगूरा स्विसराखे ताभीतर बहु द्रुमअशोगा। अक्षयवृक्ष फललगे निरोगा कल्पवृक्ष बहुरंगी तिरंगा ।
फल घोर पात फूल इकसङ्गा कोमलदल शोभा अतिभारी । अजर पुरुष दर्शन अधिकारी चेतनरूप गहर अतिडाही । साधु रहत तिनकी परछाहीं षोड़श भानु सम देह स्वरूपा ।
हरिरस मदमाते निधिरूपा उन वृक्षनके निचनिच मंदिर । अनगिन महल महामठ सुन्दर महलगहलपर वजा पताका । पुरुषोत्तमपुरुष’नामलिखिराखा चजा पाताका लहरत ऐसे ।
खिमत वीजुरी बहुतक जैसे । रतन जटित तिन सी अंगनाई । बैठत उठत चलत हई। काम कोध नहिं लोभ अधीरा। निर्मल दिशा शील गुणधीरा। जहां न थालस नींद जमाई ।
भूख प्यास मलता नहि भाई। मैल पसीना थांसू नाई । दिव्य देहधरि रहे गुमाई। हरो बाग अद्भुत है. भाई। दूजे द्वार महा अरुणाई तीजे द्वार बाग पियराई ।
चौथे उदो है वीरता उन बागन के आसा पासा । बहुत भवन जहाँ साधुनिवासा मैड़ी मण्डप बहुत सारी । एवे वरण सुन्दर अधिकारी साधु सन्त जहाँ हरिजन पूरे। चारो मुक्ति जहां कर जोरें । भाव कारणकी सुखदाई ।
लेखक | स्वामी चरणदास – Swami Charandas Ji |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 694 |
Pdf साइज़ | 24.5 MB |
Category | Religious |
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