संत वाणी – Sant Vani Book Pdf Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
सन्ती के पास इस सुधार-कार्य के लिए कोई निश्चित योजना या कार्य-पद्धति नहीं थी उन्हें पुरानी रचना तोड़कर किसी नयी रचना की स्थापना नहीं करनी थी। वे रचनामात्र को उदासीनता से देखते थे ।
कमी कहते थे कि इन ग्रन्यों में क्या खोजते हो, उनमें क्या धरा हुआरा है ! अन्थों को छोड़ दो। यन्थों के सहारे हृदय-प्रन्थि खुलने की नहीं । मसि कागज के आसरे क्यों टूटै भव-बन्ध’ ।
कभी कहते थे कि इन ग्रन्थों का कोई दोष नहीं । सोचनेवाले लोग ही जहा स्वार्थी, श्रज्ञानी या मोह मत्त हों, वहा बेचारे धर्म ग्रन्थ क्या करें।
सन्तोंने सबसे बड़ा काम यह किया कि धर्म और रूढी के नाम पर जो भ्रम, यहम या गलतफहमिया फैली हुई थीं. उनको दूर कर दिया । सम्भवतः सन्तों का सबसे श्रेष्ठ कार्य यही है ?
लोक भ्रम को दूर करने के साथ-साथ उन्होंने व्यवहार-शुद्धि का कार्य भी काफी किया है उनके बमाने में भिन्न-भिन्न जातियों में जो कुछ छल-कपट और अमानुषता थी उसे भी दूर करने के लिए सन्तों ने काफी प्रयत्न किया है ।
वे सत्य के प्रचारक थे। जहां तक उनके जीवन का सन्यन्ध आता या, वे सत्याग्रही भी ये । किन्तु समाज की कमजोरी को और उनके और अपने बीच में रहने वाले अन्तर को देखकर सत्य प्रचार से अधिक आग्रह उन्होंने नहीं रखा ।
सामाजिक सुधार के बारे में भी सन्तों ने कुछ कम काम नहीं किया। छुवाछूत को उन्हंने ऐसा फटकारा है कि अगर स्वार्थी ब्राद्मणों ने उनका काम बिगाड़ न दिया होता तो छुआछूत कभी की नष्ट हो गयी होती।
सन्त जानते थे कि जातिव्यवस्था और वर्ण व्यवस्था समाज के आर्थिक- संगठन के लिए चाहे जितनी आवश्यक हो इस व्यवस्था से समाज।
लेखक | वियोगी हरि-Viyogi Hari |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 186 |
Pdf साइज़ | 3 MB |
Category | काव्य(Poetry) |
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