संस्कृत व्याकरण प्रवेशिका – Sanskrit Grammar Praveshika Book PDF Free Download
पुस्तक का एक मशीनी अंश
माला के प्रत्येक सूत्र से युक्त होने पर अर्थ निकलता है। ऐसे सूत्र अधिकार कहे जाने हैं। इनकी अनुवृत्ति का क्षेत्र तय तक बना रहता है जब तक कोई दूसरा अधिकार सूत्र नहीं पा जाता ।
जैसे-तस्य विकारः (४३१ (२३४), तस्यापत्यम् (४ १६२ ) मोहिते ( २ श१) प्रमति युत्र है.
इसके अतिरिक्त पाणिनि की अष्टाध्यायी के समझाने के लिए टीका चारों ने शापक सूत्रों को अलग से ढूंढ निकाला है तथा सूत्रों में योगविभाग करके कुछ स्पष्ट न कही गयी बातों को भी शामिल किया है।
परन्तु इन सबका शान चल सूक्ष्म अध्ययन करने वाले के लिए अपेक्षित है, इसलिए यहाँ नकी विवेचना नहीं की जा रही है। १- पाणिनि ने संस्कृत को जीवित भाषा के रूप में लिया है । इसके प्रमाण में हम केवल दो-चार युक्तियाँ गहाँ प्रसंगवश दे देते हैं ।
पहले दो वैदिक मारा को प्यपवाद के रूप में ग्रहण करना इसी तथ्य की ओर संकेत करता है कि पाणिनि के सामने यर्तमान भाषा ठान्दस भाषा से कुछ मागे चली पायी थे, पर अभी बहुत दूर नहीं हुई थी, अन्यधा बदिक मापा का অजग से व्याकरण अवश्य लियते ।
दूसरे, स्तम्बशकूतोरिन् (शरा२४ ), हरतातिनापयो: पशी (शरार१ ), तरीदियाल्योदंक ( रा२ा२ ) नते नाखिकायाः संशाया टीटगनाटवप्रडचः (१२॥३१ ), कत्रा द्वितीय-गृतीय सम्पयो गास्कृारी ( १८) प्रभृति सामान्य रुपक-जीवन से ही सम्बन्ध रखने पाले स्त्रों की रचना सष्ट रही सिंद करती है कि जित भापा का पिरतेपण पाणिनि- कर रहे हैं,
यह बोलचाल की मापा है । खीसरे, गण पाटों में चापे हुए नाम इसने विचित्र पचौर गानजान से लगते हैं कि किसी को यह दान में भी विचार नहीं होता कि ये शन्द स्टैयद भाषा के रोंग । उदाहरणार्थ गुह! मालिगु, पहूपय, याकू, पटाकु, पक, शिप, होट प्रति नाम योतवाल की भा
लेखक | बाबूराम सक्सेना-Baburam Saxena |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 600 |
Pdf साइज़ | 10.9 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
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