सामाजिक कुरीतियों – Social Evils Book Pdf Free Download

पुस्तक का एक मशीनी अंश
जिन बैध्याओं और जिन बहिनों के बारे मैं ऊपर इतना कुछ कहा जा चुका है यह वेश्याये कौन हैं ?
यह खाळा बाबुओं और सेठ साहूकारों के घरों की विधवायें हमारी ही बहिनों और बेटियों के सिवा और कौन हैं ? हमारी नीचता हमारी कठोरता और हमारी असावधानी ही इन सब पापों की ज़िम्मेदार है।
हमारे ‘नाक कट जाने के भय की दोहाई देने वाले और विधवा विवाह के विरोधियों से हम साफ़ तौर से पूछना चाहते हैं कि आखिर इन मन्दिरों के भीतर, तीर्थस्थानों पर, धर्मशालाओं में, पाप नाशिनी गंगा के तट पर, पुराने मकानों के खंडहर में,
रानी महारानियों की कोठियों में और इस भारत की भूमि के चप्पे चप्पे पर जो यह घोर व्यभिचार, आत्म हत्यायें और भूण हत्यायें आदि देखने में आ रही हैं और दिन दिन अपना विकराल रूप धारण कर रही है क्या धर्मानुकूल विधवाओं का पुनर्विवाद इससे भी बुरा है ?
अभी हाल की बात है एक रानी साहब ने अपनी एक बंगाली मिन (स्त्री) को इस आशय का एक पत्र लिखा था मेरे जी में आया कि युढ़िया का ला घोट पर जी मसोस कर रह गई क्योंकि वह जानती थी कि जय से मेरा विवाह हुआ मने एक दिन भो पति का सु ह वहाँ देखा था परदे का मेरे यहां बका कड़ा प्रबन्ध था ।
सन्जरो वरदो तलवार लिये पहरे पर खड़ा रहता था । केवल तौकर चाकर या मेरे सम्बन्धी ही कोठी के भीतर आ सकते थे।
मैंने मन हो मन अपनी फ्रॉम यासना को शान्ति करने को यात स्थिर कर लो । पर सोचने लगी कि इन इने गिने लोगों में से किस को अपने प्रेम का पत्र चुन्’ ?
लेखक | रामरख सिंह सहगल-Ramrakh Singh Sahgal |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 223 |
Pdf साइज़ | 16.7 MB |
Category | साहित्य(Literature) |
समाज दर्शन – सामाजिक कुरीतियों के दिग्दर्शन – Social Philosopy And Evils Book Pdf Free Download