रसीदी टिकट: अमृता प्रीतम की आत्मकथा | Rasidi Ticket PDF In Hindi

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रसीदी टिकट – Rasidi Ticket PDF Free Download

रसीदी टिकट: अमृता प्रीतम की आत्मकथा

महादेव मे मिली हुई मारी जायदाद वा त्यागवर वह सत दयानजी वे ढरे म जा बठा । मस्कृत सीखी व्रज बापा सीखी हिरमत सीखी योर डेर म ‘वातका] साधु कनान लगा।

बहन जय जीवित थी मामा मामी न वही अमृतसर म नद यी समाई कर दी थी। राज बीनी गाय मागा जिला गुजरात की थी-बदला-बदलीम व्याही हुई।

जिससे व्याह हुआ या, वह फौज में भरती होगर गया था, फिर उसकी कोई बवर नही आयी। उदाम और निराश वह गुजरावाला क एक छोट से स्यून में पती थी।

स्वन जाने मे पह अपनी भाभी के माय दमालजी के डेर म माया सा आया करती थी। भाई मर गया या, भाभी विधवा थी । पर अब दाना जुती जोर उदास एक स्कूल म पढाती थी एक साथ रहती थी।

एम दिन जर दाना दयाल जी के डेरे आयी, जोर से मह बरसन लगा। दयालजी न मेह का समय बिताने व लिए अपने ‘बालका साधु मे कविता सुनाने के लिए वहा ।

वह सदा आखें मूदवर कविता सुना करत थे। उम दिन जब आयें खोली तो दया- उनक नद वी आखें राज बीबी व मुह की तरफ भटक रही हैं।

मुछ दिना बाद उहान राज बीबी की व्यथा मुनी और नद से यहा, नद बेटा जोग तुम्हार लिए नहा है। यह भगवे वस्त्र त्याग दो और गहस्थ आश्रम भ पर रखो।

पीरीयऔर अमीरी दाना मेरे पिता के स्वभाव मे थी।

मा वताया करती थी-एक वार उनवा एक गुरु माई (सात दयालु का एक जोर पेना) सत हरनाम सिंह कहने लगा कि उसका बड़ा भाई माह करवाना चाहता है अच्छी भर्ती सगाई होते होते रह गयो, क्यारि उमने पास रहने वे लिए अपना मकान नहीं है।

पिताजी पास अभी भी अपने नाना की जायदाद में से एन मान बना माया नहीं लगे “अगर इतनी मी बात में पीछे उसका व्याह नही हाता तो मैं अपना मान उभ नाम लिख देता हूं”-और एतमाद मकान उसवे नाम लिन दिया।

बहुत बरसा की बात है–एक बार कोई पास बठा हुआ था ।

उसवी जैन मे जो रूमाल था बह मत्रा था। उसे रमात वी ज़रूरत पडी ता नया रुमाल दवर छसवा मैला रूमात ले लिया । पास रख लिया ! वह बहुत बरस तक मेरे पास रहा ।

जब वी उस टमाल पर हाथ पड जाता था मार्थ वी नरसे कस जाती थी बुछ बीज न जाने कसे होत हैं कि एक वार लहू-मास मे उग जाए तो फिर चाहे बसी अधिया बाएं बसा हो सूखा पड जाए उनके पत्ते झड जाए दहन दूढ जाएं, पर ध जडा से नही उखडत |

एज ‘दिसी चेहरे कए तुमब्दुर/ ओर दूसरा अक्षरा वा अदब’–ऐसे ही बीज थे जो बाल अवस्था म॑ मेरे जादर उस गए।

फिर विश्वास टूटे, और ऐस टूटे कि,सोचतदी हू इन दोना पडो दा जडा से उखड जादर चाहिए था। बच्ची लगता भी है वि’ इतवा नाम तिशान तक नहीं रहा पर मन वी सूखी मिट्टी म से फिर इतकी कापनें सिक्‍ल आती हैं, टहनिया वन जाती हैं, उन पर घोर भा जाता है और मेरे सासा मे स॑ उनवी सुगंध आान लगती है इन जादुई पड का एव बीज मैंने अपन हाथा से बोगा था पर दूसरा मरे पिता से |

किसी विंताव बा पष्ठ धरती पर पडा हो ती बहू उस जदब से उठा लेते थे। अगर भूल से भरा पर पप्ठ पर आ जाता तो वह नाराज होत थ |

सो अक्षरा का अदव मरे मन मे गहरा पड गया, और साथ ही उनका जिनवे हाथ मे बलम होता है।

देखतो की थी गुरवानों क प्रवाड विद्वनू भाई पाहनमिहजी पिताजी के मित्न थे । वह जब कभी आते, घर वी दहलीज भी अंदव से भर जाती ।

पिताजी क गुर, सस्कृत के’ जिदान्‌ दयातजी बा चित्र सदा पिताजी ये सिरहान को ओर लगा रहता था। उस ओर पाव करन नी मनाही थी।

सो, बडी हुई तो अपने समय वे लेखका वे लिए भी सर पास अदव ही था। परछु अपने समवालीन लखका से जितने उदास अनुभव मुये हुए हैं हैरान हू कि अक्षरा ओर कतमा बे अटव का जादुई पेड जद से मया सूछ नही गया लंक्नि साचती टू, क्या मेरे समकाद्रीन नैवल वहीं हैं जिनसे दास्ता पड़ा ? दूरी और काल थी सीमा से पर भी कोट हैं,

वितत हो वाजानजानिस विहने मेरे इस अक्षरा और कलमा के अदय वाले पेड का सोचा है। फिर यह पड भी अगर हरा रह गया है तो हराव कया हू

लेखक अमृता प्रीतम-Amruta Pritam
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 192
Pdf साइज़3.3 MB
Categoryआत्मकथा(Biography)

रसीदी टिकट – Raseedi Ticket Pdf Free Download

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