शरद पूर्णिमा की कथा | Purnima Vrat Katha PDF In Hindi

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पूर्णिमासी की व्रत कथा – Purnima kivrat story PDF Free Download

पूर्णिमा व्रत कथा

पूजन करनेवाला व्यक्ति प्रातः काल स्नान आक्ति सेक्तनवृत्त होकर क्तकसी पक्तवत्र स्थान पर आटेसेचैक पूर कर के लेका मण्डप बनाकर शिव-पाववती की प्रक्ततमा बनाकर स्थाक्तपत करे।

तत्पश्चात् नवीन वस्त्र धारण कर आसन पर पूवावशिमुख बैठकर िेिकालाक्ति के उच्चारण के साथ हाथ मेंजल लेकर संकल्प करें। उसके बाि गणेि जी का आवाहन व पूजन करें।

अनन्तर वरुणाक्ति िेवोंका आवाहन करके कलि पूजन करें, चन्दन आक्ति समक्तपवत करें, कलि मुद्रा क्तिखाएं, घण्टा बजायें।

शरद पूर्णिमा व्रत कथा व पूजा विधि – Sharad Purnima Vrat katha & Puja Vidhi

आश्विन मास की पूर्णिमाको मनाया जाने वाला त्यौहार शरद पूर्णिमा की कथा कुछ इस प्रकार से है- पूर्णिमा तिथि हिंदू धर्म में एक खास स्थान रखती है। प्रत्येक मास की पूर्णिमा का अपना अलग महत्व होता है। लेकिन कुछ पूर्णिमा बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती हैं। अश्विन माह की पूर्णिमा उन्हीं में से एक है बल्कि इसे सर्वोत्तम कहा जाता है। अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस पूर्णिमा पर रात्रि में जागरण करने व रात भर चांदनी रात में रखी खीर को सुबह भोग लगाने का विशेष रूप से महत्व है। इसलिये इसे कोजागर पूर्णिमा भी कहते हैं। आइये जानते हैं शरद पूर्णिमा का महत्व व व्रत पूजा विधि के बारे में।

शरद पूर्णिमा का महत्व – Importance of Sharad Purnima

शरद पूर्णिमा इसलिये इसे कहा जाता है क्योंकि इस समय सुबह और सांय और रात्रि में सर्दी का अहसास होने लगता है। चौमासे यानि भगवान विष्णु जिसमें सो रहे होते हैं वह समय अपने अंतिम चरण में होता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा का चांद अपनी सभी 16 कलाओं से संपूर्ण होकर अपनी किरणों से रात भर अमृत की वर्षा करता है। जो कोई इस रात्रि को खुले आसमान में खीर बनाकर रखता है व प्रात:काल उसका सेवन करता है उसके लिये खीर अमृत के समान होती है।

मान्यता तो यह भी है कि चांदनी में रखी यह खीर औषधी का काम भी करती है और कई रोगों को ठीक कर सकती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार शरद पूर्णिमा इसलिये भी महत्व रखती है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इसलिये शरद व जागर के साथ-साथ इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। लक्ष्मी की कृपा से भी शरद पूर्णिमा जुड़ी है मान्यता है कि माता लक्ष्मी इस रात्रि भ्रमण पर होती हैं और जो उन्हें जागरण करते हुए मिलता है उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं।

शरद पूर्णिमा के अन्य नाम (Sharad Purnima Name)

क्रमांकप्रदेश (जहाँ शरद पूर्णिमा मनाते है)शरद पूर्णिमा को क्या कहा जाता है
1.गुजरातशरद पूर्णिमा – इस दिन वहां लोग गरबा एवं डांडिया रास करते है
2.बंगाललोक्खी पूजो – देवी लक्ष्मी के लिए स्पेशल भोग बनाया जाता है.
3.मिथिलाकोजगारह

शरद पूर्णिमा व्रत की कथा – Sharad Purnima Vrat katha 

शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथा भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोपियों संग महारास रचाने से तो जुड़ी ही है लेकिन इसके महत्व को बताती एक अन्य कथा भी मिलती है जो इस प्रकार है। मान्यतानुसार बहुत समय पहले एक नगर में एक साहुकार रहता था। उसकी दो पुत्रियां थी। दोनों पुत्री पूर्णिमा को उपवास रखती लेकिन छोटी पुत्री हमेशा उस उपवास को अधूरा रखती और दूसरी हमेशा पूरी लगन और श्रद्धा के साथ पूरे व्रत का पालन करती।

समयोपरांत दोनों का विवाह हुआ। विवाह के पश्चात बड़ी जो कि पूरी आस्था से उपवास रखती ने बहुत ही सुंदर और स्वस्थ संतान को जन्म दिया जबकि छोटी पुत्री के संतान की बात या तो सिरे नहीं चढ़ती या फिर संतान जन्मी तो वह जीवित नहीं रहती। वह काफी परेशान रहने लगी।

उसके साथ-साथ उसके पति भी परेशान रहते। उन्होंने ब्राह्मणों को बुलाकर उसकी कुंडली दिखाई और जानना चाहा कि आखिर उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है। विद्वान पंडितों ने बताया कि इसने पूर्णिमा के अधूरे व्रत किये हैं इसलिये इसके साथ ऐसा हो रहा है। तब ब्राह्मणों ने उसे व्रत की विधि बताई व अश्विन मास की पूर्णिमा का उपवास रखने का सुझाव दिया।

इस बार उसने विधिपूर्वक व्रत रखा लेकिन इस बार संतान जन्म के पश्चात कुछ दिनों तक ही जीवित रही। उसने मृत शीशु को पीढ़े पर लिटाकर उस पर कपड़ा रख दिया और अपनी बहन को बुला लाई बैठने के लिये उसने वही पीढ़ा उसे दे दिया। बड़ी बहन पीढ़े पर बैठने ही वाली थी उसके कपड़े के छूते ही बच्चे के रोने की आवाज़ आने लगी।

उसकी बड़ी बहन को बहुत आश्चर्य हुआ और कहा कि तू अपनी ही संतान को मारने का दोष मुझ पर लगाना चाहती थी। अगर इसे कुछ हो जाता तो। तब छोटी ने कहा कि यह तो पहले से मरा हुआ था आपके प्रताप से ही यह जीवित हुआ है। बस फिर क्या था। पूर्णिमा व्रत की शक्ति का महत्व पूरे नगर में फैल गया और नगर में विधि विधान से हर कोई यह उपवास रखे इसकी राजकीय घोषणा करवाई गई।

पूर्णिमा व्रत व पूजा विधि – Sharad Purnima puja

पूर्णिमा ही नहीं किसी भी उपवास या पूजा का लिये सबसे पहले तो आपकी श्रद्धा का होना अति आवश्यक है। सच्चे मन से पूर्णिमा के दिन स्नानादि के पश्चात तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना कर उसे वस्त्र से ढ़कें। तत्पश्चात इस पर माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। यदि आप समर्थ हैं तो स्वर्णमयी प्रतिमा भी रख सकते हैं। सांयकाल में चंद्रोदय के समय सामर्थ्य अनुसार ही सोने, चांदी या मिट्टी से बने घी के दिये जलायें।

100 दिये जलायें तो बहुत ही उपयुक्त होगा। प्रसाद के लिये घी युक्त खीर बना लें। चांद की चांदनी में इसे रखें। लगभग तीन घंटे के पश्चात माता लक्ष्मी को यह खीर अर्पित करें। सर्वप्रथम किसी योग्य ब्राह्मण या फिर किसी जरुरतमंद अथवा घर के बड़े बुजूर्ग को यह खीर प्रसाद रूप में भोजन करायें। भगवान का भजन कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें। सूर्योदय के समय माता लक्ष्मी की प्रतिमा विद्वान ब्राह्मण को अर्पित करें।

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भाषा हिन्दी
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CategoryBook
Source/Creditspdfseva.com

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