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प्रागैतिहासिक काल के बारे में सम्पूर्ण जानकारी – All About Prehistoric Times PDF Free Download
प्रागैतिहासिक काल
मानव-जाति का इतिहास वि व-सभ्यता के विकास का इतिहास है। प्राचीन मिस्र, यूनान, बेबीलोन, रोम, भारत, चीन आदि दे की नदी घाटियों में मानव सभ्यता का जन्म और विकास हुआ।
मानव सभ्यता सिर्फ पाँच हजार व पुराना है यह मानव-सभ्यता का प्रारंभिक काल है हाल तक लोगों का वि वास था कि मनुश्य एक ई वरीय सृजन है, संसार के विभिन्न धर्मग्रथों से भी इसकी पुष्टि होती है।
किन्तु चार्ल्स डारविन (1859 ई०) के विकासवाद के सिद्धान्त ने इस मत का खंडन किया। उसके अनुसार मानव-सभ्यता का विकास धीरे-धीरे हुआ है और यह विकास का प्रतिफल है।
इसके अनुसार प्रारंभ में पृथ्वी का तापमान इतना अधिक था कि इस पर किसी जीवधारी का रहना संभव नहीं था।
भाने माने पृथ्वी का तापमान कम होने लगा और परिवर्तन होने लगा। हजारों वर्णों के इन परिवर्तनों के प बात पृथ्वी की जलवायु जीवोत्पन्ति के लिए अनुकूल हो गई।
किंतु कुछ समय तक जीव उत्पन्न नहीं हुए। यह युग जीव विहीन युग के नाम से प्रसिद्ध है।
जीव विहीन युग के अन्त में पृथ्वी पर सर्वप्रथम पनीले (पानी में रहने वाले) जन्तुओं ने जन्म लिया। ये अस्थिविहीन थे।
इन पनीले जन्तुओं की काया में समयानुकूल कई परिवर्तन हुए और हजारों वर्शी के बाद इसने मछली का रूप धारण किया।
डारविन के अनुसार, यह जीवन के विकास की दूसरी अवस्था थी तीसरी अवस्था में स्थल पर वृहद शरीर वाले जानवर उत्पन्न हुए। पृथ्वी पर जंगल उत्पन्न होने लगे समुद्र और दिल झीलों तथा नदियों के तट पर इन जंगलों में वृहद जीव पेट के बल रंगते थे।
इनकी उत्पत्ति और वृद्धि अंडों द्वारा होती थी। धीरे-धीरे उनका आकार छोटा होता गया, क्योंकि वृहद आकार के कारण उन्हें जीवननिर्वाह में कठिनाई होती थी।
इसी समय आका में उठने वाले वृहद आकार पक्षियों का भी विकास हुआ तथा कुछ जीवों की उत्पत्ति अदों के स्थान पर माता के गर्भ से होने लगी।
इस प्रकार जीव विकास की प्रक्रिया जारी रही लाखो वर्ग व्यतीत होने पर कई बृहद आकार जन्तु या तो नश्ट हो गए या उनका भारीर छोटा हो गया। इस काल में औरंग, जीरंगम्पांजी आदि लंगूरों से मनुष्य की उत्पत्ति हुई।
प्रागैतिहासिक युग के इस काल को हिम युग भी कहते हैं प्रारम में मनुश्य और प पू में कोई अंतर नहीं था। प्रारंभ में मनुष्य को प्राकृतिक तथा हिसक करना पड़ता था। इसके लिए उराने अनेक हथियारों और औजारों का अविष्कार किया ये औजार पहले पाण.
साधारणतः 50000 ई. पूर्व से 8000 ई. पूर्व तक के काल को पुरापाषाण युग माना जाता है। इस काल को तीन वर्गों में अर्थात् पूर्व-पुरापाषाण काल मध्य-पुरापाषाण काल तथा उत्तर-पुरापाषाण काल में विभाजित किया गया है।
पूर्व-पुरापाषाण काल
पुरापाषाणयुगीन साक्ष्यों का पता तो इस शताब्दी के आरम्भ से ही लग गया था। चूंकि उत्तर-पश्चिमी भारत के सोहन क्षेत्र में (सिंधु की सहायक नदी) पहली बार इस सांस्कृतिक क्रम का प्रमाण मिला है।
इसलिए इस संस्कृति को सोहन संस्कृति का नाम भी दिया गया।
अब पूर्व पुरापाषाण अवशेष भारत के प्राय सभी भागों में मिलते है जिनमें असम की घाटियाँ भी सम्मिलित है जैसे महाराष्ट्र की प्रवरा नदी के साथ-साथ नेवासा में आंध्रप्रदेश के गिद्दलूर में और करीमपुरी, मद्रास के अनको स्थल कर्नाटक, नर्मदा जैसे नरसिंहपुर तथा मामबेटका की गुफाए साधारणत: गण्णसा या खंडक उपकरण है।
इस काल के उपकरण इनकी लगभग सभी स्थलों पर बहुतायात है। इनके अतिरिक्त हन्तकुठा या विदरणी भी मिलती है।
मध्य-पुरापाषाण काल
अधिकांश भारतीय नदियों के दूसरे तलच्चन निक्षेपों से इस संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
इनकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि पूर्वपाषाणकाल जिसमें क्वार्टजाइट से औजार बनाए जाते थे अब अधिकतर क्षेत्रों में पूर्ण रूप से जैम्पर व चर्ट या फिर इसी प्रकार में चमकदार पत्थर के बनाए जाने लगे।
इस संस्कृति के प्रमुख उपकरण है (1) बंधक (2) बेधक सुरचनी (3) फलक जैसे स्थूल शल्क (4) वैधानियों
इस संस्कृति के अवशेष क्षेत्र उड़ीसा उत्तरी आध्र विध्याचल शामिल है तथा जो गंगा घाटी तक फैला हुआ है।
यहाँ के उपकरण बड़े-बड़े शल्कों के बने है। यहाँ हर किस्म की खुरानियाँ मिली है। कुछ एक गढ़ाने तथा हस्तकला भी मिले हैं।
दूसरी ओर पश्चिमी क्षेत्र में अर्थात् उत्तरी महाराष्ट्र कर्नाटक गुजरात में मध्यपुरापाषाण अधिक परिष्कृत है और उनमें कई बहुत सुन्दर नौके बनी है।
लेखक | – |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 17 |
PDF साइज़ | 2.5 MB |
Category | History |
Source/Credits | drive.google.com |
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