पितृ सूक्त पाठ | Pitru Suktam PDF In Hindi

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पितृ सूक्त पाठ – Pitru Suktam Book PDF Free Download

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Pitru suktam Lyrics In Sanskrit

उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।

असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥

अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः।

तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥

ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः।

तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥

त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्।

तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥

त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः।

वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥

त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ।

तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥

बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।

तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥

आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः।

बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥

उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।

तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥

आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः।

अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥

अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः।

अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥

येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते।

तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥

अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः।

ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥

आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे।

मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥

आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय।

पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥

॥ ॐ शांति: शांति:शांति:॥

पितृ सूक्त का हिंदी में अनुवाद व अर्थ

नीचे, ऊपर और मध्य स्थानों मे रहनेवाले, सोमपान करनेके योग्य हमारे सभी पितर उठकर तैयार हों । यज्ञ के ज्ञाता सौम्य स्वभाव के हमारे जिन पितरों ने नूतन प्राण धारण कर लिये हैं, वे सभी हमारे बुलाने पर आकर हमारी सुरक्षा करें , जो भी नये अथवा पुराने पितर यहॉं से चले गये हैं, जो पितर अन्य स्थानों में हैं और जो उत्तम स्वजनों के साथ निवास कर रहे हैं

अर्थात् यमलोक, मर्त्यलोक और विष्णु लोक में स्थित सभी पितरों को आज हमारा यह प्रणाम निवेदित हो,उत्तम ज्ञान से युक्त पितरों को तथा अपांनपात् और विष्णु के  विक्रमण को, मैंने अपने अनुकूल बना लिया है । कुशासन पर बैठने के अधिकारी पितर प्रसन्ना पूर्वक आकर अपनी इच्छा के अनुसार हमारे-द्वारा अर्पित हवि और सोमरस ग्रहण करें

कुशासन पर अधिष्ठित होनेवाले हे पितर ! आप कृपा करके  हमारी ओर आइये । यह हवि आपके लिये ही तैयार की गयी है, इसे प्रेमसे स्वीकार कीजिये । अपने अत्यधिक सुखप्रद प्रसादके साथ आयें और हमें क्लेशरहित सुख तथा कल्याण प्राप्त करायें
पितरोंको प्रिय लगनेवाली सोमरुपी निधियों की स्थापना के बाद कुशासनपर हमने पितरों को आवाहन किया है । वे यहॉं आ जायँ और हमारी प्रार्थना सुनें । वे हमारी सुरक्षा करनेके साथ ही देवों के पास हमारी ओर से संस्तुति करें

हे पितरो ! बायॉं घुटना मोडकर और वेदीके दक्षिणमें नीचे बैठकर आप सभी हमारे इस यज्ञकी प्रशंसा करें । मानव-स्वभावके अनुसार हमने आपके विरुद्ध कोई भी अपराध किया होतो उसके कारण हे पितरो, आप हमें दण्ड मत दें ( पितर बायॉं घुटना मोडकर बैठते हैं और देवता दाहिना घुटना मोडकर बैठना पसन्द करते हैं ) अरुणवर्णकी उषादेवीके अङ्कमें विराजित हे पितर ! अपने इस मर्त्यलोकके याजकको धन दें, सामर्थ्य दें तथा अपनी प्रसिद्ध सम्पत्तिमेंसे कुछ अंश हम पुत्रोंको देवें ( यमके सोमपानके बाद ) सोमपान के योग्य हमारे वसिष्ठ कुलके सोमपायी पितर यहॉं उपस्थित हो गये हैं ।

वे हमें उपकृत करनेके लिये सहमत होकर और स्वयं उत्कण्ठित होकर यह राजा यम हमारे-द्वारा समर्पित हविको अपनी इच्छानुसार ग्रहण करें अनेक प्रकारके हवि-द्रव्योंके ज्ञानी अर्कोंसे, स्तोमोंकी सहायतासे जिन्हें निर्माण किया है, ऐसे उत्तम ज्ञानी, विश्र्वासपात्र घर्म नामक हविके पास बैठनेवाले ‘ कव्य ‘ नामक हमारे पितर देवलोकमें सॉंस लगनेकी अवस्थातक प्याससे व्याकुल हो गये हैं । उनको साथ लेकर हे अग्निदेव ! आप यहॉं उपस्थित होवें

कभी न बिछुडने वाले, ठोस हविका भक्षण करने वाले, द्रव हविका पान करनेवाले, इन्द्र और अन्य देवों के साथ एक ही रथ में प्रयाण करने वाले, देवों की वन्दना करनेवाले, घर्म नामक हवि के पास बैठने वाले जो हमारे पूर्वज पितर हैं, उन्हें सहस्त्रों की संख्या में लेकर हे अग्निदेव ! यहॉं पधारें अग्निके द्वारा पवित्र किये गये हे उत्तमपथ प्रदर्शक पितर ! यहॉं आइये और अपने-अपने आसनोंपर अधिष्ठित हो जाइये ।

कुशासनपर समर्पित हविर्द्रव्योंका भक्षण करें और ( अनुग्रहस्वरुप ) पुत्रोंसे युक्त सम्पदा हमें समर्पित करा दें हे ज्ञानी अग्निदेव ! हमारी प्रार्थनापर आप इस हविको मधुर बनाकर पितरोंने भी अपनी इच्छाके अनुसार उस हविका भक्षण किया । हे अग्निदेव ! ( अब हमारे-द्वारा ) समर्पित हविको आप भी ग्रहण करें

जो हमारे पितर यहॉं ( आ गये ) हैं और जो यहॉं नही आये हैं, जिन्हें हम जानते हैं और जिन्हें हम अच्छी प्रकार जानते भी नहीं; उन सभीको, जितने ( और जैसे ) हैं, उन सभीको हे अग्निदेव ! आप भलीभॉंति पहचानते हैं । उन सभीकी इच्छाके अनुसार अच्छी प्रकार तैयार किये गये इस हविको ( उन सभीके लिये ) प्रसन्नताके साथ स्वीकार करें

हमारे जिन पितरोंको अग्निने पावन किया है और जो अग्निद्वारा भस्मसात] किये बिना ही स्वयं पितृभूत हैं तथा जो अपनी इच्छाके अनुसार स्वर्गके मध्यमें आनन्दसे निवास करते हैं । उन सभीकी अनुमतिसे, हे स्वराट् अग्ने ! ( पितृलोकमें इस नूतन मृतजीवके ) प्राण धारण करने योग्य ( उसके ) इस शरीरको उसकी इच्छाके अनुसार ही बना दो और उसे दे दो

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Language Hindi
No. of Pages5
PDF Size0.2 MB
CategoryReligious
Source/Creditspdffile.co.in

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