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पालि महाव्याकरण – Pali Mahavyakaran PDF Free Download
पहला खण्ड
बुद्धत्व लाभ करने के बाद से भगवान् ४५ साल तक कोसी-कुरुक्षेत्र तथा हिमाचल-विध्य के भीतर घूम-घूम कर अपने धर्म का प्रचार करते रहे ।
साधारण से साधारण मनृष्य से लेकर उस समय के बड़े से बड़े राजकुमार तक अपना सव्वस्व त्याग भगवान् के संघ में सम्मिलित हुए।
जिस प्रकार सभी दिशाओं से नाना नदियाँ बह कर आती हैं, और समुद्र में एक हो जाती हैं, उसी तरह नाना प्रान्त के, नाना जाति के, नाना मत के, तथा नाना गोत्र के कुलपुत्र, परम शान्त निर्वाण के उद्देश्य से भगवान् के संघ में आ, एक हो कर विहार करते थे ।
भगवान् जहाँ कहीं भी चारिका करते थे, बड़ी-बड़ी संख्या में उनकी शिष्य- मण्डली साथ रहती थी । तत्कालीन मगधराज विम्विसार ने भी भगवान् के धर्म को स्वीकार कर लिया था, और बड़ी *ऋठ्वा से बुद्ध तथा संघ के निमित्त एक सुरम्य विहार बनवा दिया था; जो वेल्ठुवनाराम’ नाम से प्रसिद्ध हुआ।
श्रावस्ती के विख्यात श्रेष्ठी अनाथपिण्डिक ने भी उसी तरह, बुद्ध तथा संघ के लिए श्रावस्ती से कुछ हट कर एक रम्य स्थान में जेतवनाराम बनवाया था। इस तरह, बुद्ध तथा संघ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक घमने से सारा उत्तर भारत एक हो रहा था ।
बुद्ध का धर्मोपदेश करने का तरीका अत्यन्त सरल था। तयारी और आडम्बर के बिना ही, जहाँ कहीं जब कभी उचित अवसर ग्राता था, बुद्ध अत्यन्त सरल भाषा में, अत्यन्त सरल ढंग से गम्भीर तथा लोकोत्तर धर्मोपदेश करते थे।
उनके शिष्य उन उपदेशों को कण्ठ कर लिया करते थे । जब किसी भिक्षु को कुछ शंका होती थी तो वह बुद्ध के पास जाता था और अपनी शंका निवारण कर लेता था।
लेखक | भिक्षु जगदीश काश्यप – Bhikshu Jagdish Kashyap |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 656 |
Pdf साइज़ | 25.2 MB |
Category | धार्मिक (Religious) |
पालि महाव्याकरण | Pali Mahavyakaran Book/Pustak Pdf Free Download
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