नागे सन्यासियों का इतिहास – Nage Sanyasiyo Ka Itihas Book/Pustak Pdf Free Download
नागे सन्यासियों का इतिहास
श्री स्वामी शंकराचाय द्वारा प्रवर्तित संन्यासियों के संच, प्रधान रूप से, दूस हैं किन्तु इन दसों में भी प्रत्येक के अनेक विभाग हो गये हैं। इन विभागों में भी बहुत से तो ऐसे हैं
जो अपनी नाममात्र की मूल जन्मदात्री संस्था के शासनाधिकार को स्वीकार करने में भी संकोच करते हैं। अनैक्य का एक अन्य कारण है शृंगेरी, पुरी, द्वारका और बद्रीनाथ नामक चार प्रादेशिक शंकर-पीठों के रूप में भारत का विभाजन ।
इसकी विशेषता यह है कि प्रत्येक पीठ दूसरे तीन पीठों से स्वतंत्र है । असंख्य दसनामी मठ किसी संयुक्त केंद्रिक अधिकार को, जिससे दस संघों के सिद्धांतों तथा उनकी परिपाटियों में अभिन्न रूपता आ सकती है,
नहीं स्वीकार करते। इस कारण शंकर के जीवन-सम्बन्धी स्थानों और घटनाओं का भिन्न भिन्न मठों द्वारा सुरक्षित परम्पराओं में, भिन्न भित्र रूप से वर्णन किया गया है
कुछ महत्त्वपूर्ण साम्प्रदायिक तथ्यों तथा अपने नियमों और परिपाटियों के सम्बन्ध में, – (उदाहरण के लिए, शिष्य-समावर्तन-संस्कार, मठाधिपति का निर्वाचन, निम्न वर्णवालों का प्रवेश आदि) एक संघ से दूसरे में विभिन्नता देखी जाती है।
एक पुस्तक में उन सबको गिनाना संभव नहीं है। इसलिए मैंने यहाँ शंकराचार्य के जीवन-चरित्र को उसी रूप में दिया है जिस रूप में वह उनके दो सर्व प्राचीन श्री स्वामी
शंकराचाय द्वारा प्रवर्तित संन्यासियों के संघ, प्रधान रूप से, दूर हैं। किन्तु इन दसों में भी प्रत्येक के अनेक विभाग हो गये हैं। इन विभागों में भी बहुत से तो ऐसे हैं जो अपनी नाममात्र की मूल जन्मदात्री
लेखक | यदुनाथ सरकार-Yadunath Sarkar |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 134 |
Pdf साइज़ | 6.3 MB |
Category | इतिहास(History) |
नागे सन्यासियों का इतिहास – Nage Sanyasiyo Ka Itihas Book/Pustak Pdf Free Download