महाकाली साधना मंत्र | Maha Kali Mantra PDF In Hindi

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महाकाली साधना मंत्र – Maha Kali Mantra Sadhna Vidhi PDF Free Download

किताब विविध शब्द अर्थ सहित

श्मशान का अर्थ

भगवती काली को श्मशान वासिनी कहा गया है। इसका अर्थ हमें इस प्रकार लेना चाहिए कि व्यक्ति पंचभूतों से बना है। श्मशान में मनुष्यों का शवदाह किया जाता है, जिससे पाँचों तत्व ब्रह्म में लीन हो जाते हैं।

भगवती आद्यकाली ब्रह्मस्वरूपा है। इस प्रकार पाँचों तत्व उन्हीं में विलीन हो जाते हैं। इस प्रकार उनका निवास श्मशान कहा गया है। इसे हम दूसरे अर्थ में भी प्रयुक्त करते हैं।

यथा-व्यक्ति के राग, द्वेष, लोभ, मद आदि के भस्म होने का स्थान प्राणी का मन है। इस प्रकार यह भी श्मशान का ही स्वरूप है। भगवती उसी हृदय में निवास करती है, जहाँ ये विकार ना हो, अर्थात् नष्ट हो गये हों, इस प्रकार वह श्मशान निवासिनी है।

चिता का अर्थ

चिता का अर्थ है, ज्ञान की अग्नि का निरन्तर ज्वलन। जब तक हृदय में ज्ञान की अग्नि की निरन्तरता बनी रहती है, भगवती की प्राप्ति व सानिध्य तभी तक सम्भव है।

अन्यथा की दशा में उनकी प्राप्ति नहीं की जा सकती। अतः साधक को मन में ज्ञान की अग्नि रूपी चिता हर समय जलाए रखना चाहिए।

शव-आसन

भगवती काली का आसन शव को कहा गया है। कहीं कहीं आपने देखा होगा कि भगवान शिव को आसन के रूप में भी भगवती प्रयुक्त करती हैं, परन्तु शिव भी तब तक शिब है, जब तक उनमें शक्ति है।

शक्ति के अभाव में शिव भी “शव” तुल्य है। जब शिव से शक्ति अलग हो जाती है, तो उसे शक्ति प्रदान करने हेतु वे शव पर आमन लगाकर अपनी कृपा प्रदान करती हैं।

इसी प्रकार मृत्यु के उपरान्त व्यक्ति की शक्ति समाप्त हो जाती हैं और व्यक्ति शव मात्र रह जाता है। तब भगवतो काली शवारूदा होकर उसे इस संसार से मुक्त कर देती है।

मुक्तकेशी का अर्थ

भगवती कालो के केश बिखरे हुए हैं अर्थात् उन्हें केशों को संवारने की भी सुधि नहीं है। श्रंगार की उन्हें कोई चिता नहीं, जो कि तिलासिता है।

इस प्रकार वे विलासिता के विकार से मुक्त हैं। अतः भगवती की साधना करने वाले साधक को भी सभी विलासिताओं से मुक्त रखना ही उद्देश्य मात्र है।

त्रिनेत्रा-भगवती काली त्रिनेत्रा अर्थात् तीन नेत्रों वाली हैं। अग्नि, सूर्य और चन्द्र, ये ही भगवती के तीन नेत्र हैं अर्थात् भूत, भविष्य और वर्तमान को वे इन्हीं त्रिनेत्रों द्वारा विलोकित करती हैं।

उन्नत-पीन पयोधरा

माँ काली के स्तनों को उन्नत, बड़े व ठोस कहा गया है तात्पर्य यह कि वे अपने स्तनों से तीनों लोकों का पालन करने में सक्षम हैं। अपने भक्तों को इन्हीं स्तनों से अमृत का पान कराती है।

यौवनवती-भगवती काली को नित्य यौवना कहा गया है अर्थात् समय का उन पर कोई प्रभाव नहीं होता। बे अजन्मा है, नित्या है, अपरिवर्तनशील है।

आदि भी वही है, और अन्त भी वही है। ऐसी दशा के कारण ही उन्हें नित्ययौवनवती कहा गया है।

महाशुक्रा

पुरुष को सबलता, ओजता जस्ता आदि गुण शुक्र के कारण ही प्राप्त होते हैं। भगवती काली को आराधना से भी इन्हीं गुणों का विकास होता है। इस प्रकार वे शुक्र प्रदान करने वाली हैं अर्थात् महाशुका है। उनके पास शुक्र का असीम भण्डार है।

भगमालिनी

“भग” अर्थात् योनि अर्थात् शक्ति के बिना किसी भी जीव का जन्म सम्भव नहीं है। माँ काली शक्ति रूपा अर्थात् सभी प्राणियों को जन्म देने वाली कही गयी हैं।

जन्मदात्री के रूप में अर्थात् संसार की आधार-भूता होने के कारण ही ये भग मालिनी हैं।

लिंगस्था

किसी भी प्राणी की उत्पत्ति का मूल शुक्र और रज हैं। रज शक्ति-रूपा तथा शुक्र शिव-रूप हैं। इन्हीं के संयोग से संसार जन्मा है। शिव और शक्ति के मिलन से ही प्राणी जन्म लेता है। अतः दोनों ही एक दूसरे के हैं।

अतः भगवती अर्थात् ” भग”-वती शक्ति, शिव-स्वरूप अर्थात् लिङ्ग को धारण करने वाली हैं। इस प्रकार शक्ति और शिव यानि योनि (भग) और लिङ्ग ही इस प्रकृति के मूल आधार हैं, क्योंकि दोनों के संयोग से ही पृथ्वी पर जीवन है।

पूजन विधि

साधना हेतु साधक को पूर्ण पवित्र होकर, पवित्र आसन पर बैठना चाहिए। अपने पास पञ्चोपचार अथवा षोडशोपचार हेतु सामग्री व जल का लोटा रखें।

स्वस्तिवाचन पाठ करने के उपरान्त अग्रिम पूजन आरम्भ करें। सर्वप्रथम सङ्कल्प लें। सङ्कल्प हेतु मंत्र पहले ही बताया जा चुका है। फिर भगवती का ध्यान करें

लेखक
भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 10
PDF साइज़12.4 MB
CategoryReligious

महाकाली माता के बारे में

महाकाली, महाकाल की वह शक्ति है जो काल व समय को नियन्त्रि करके सम्पूर्ण सृष्टि का संचालन करती हैं। आप दसों महाविद्याओं में प्रथम हैं और आद्याशक्ति कहलाती हैं।

चतुर्भुजा के स्वरूप में आप चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने वाली हैं जबकि दस सिर, दस भुजा तथा दस पैरों से युक्त होकर आप प्राणी की ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों को गति प्रदान करने वाली हैं।

शक्ति स्वरूप में आप शव के उपर विराजित हैं। इसका अभिप्राय यह है कि शव में | आपकी शक्ति समाहित होने पर ही शिव, शिवत्य को प्राप्त करते हैं।

यदि शक्ति को शिव से पृथक कर दिया जाये तो शिव भी शव-तुल्य हो जाते हैं। शिव-ई = शव बिना शक्ति के सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और शिव शव के समान हैं।

मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि इस सम्पूर्ण सृष्टि में शिव और शक्ति ही सर्वस्य हैं। उनके अतिरिक्त किसी का कोई आस्तित्व नहीं है।

इस साधना को आरम्भ करने से पूर्व एक साथक को चाहिए कि वह मां भगवती काली की उपासना अथवा अन्य किसी भी देवी या देवता की उपासना निष्काम भाव से करे उपासना का तात्पर्य सेवा से होता है।

उपासना के तीन भेद कहे गये हैं :- कायिक अर्थात् शरीर से वाचिक अर्थात् वाणी से और मानसिक अर्थात् मन से। जब हम कायिक का अनुशरण करते हैं तो उसमें पाय, अर्घ्यं, स्नान, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पंचोपचार पूजन अपने देवी देवता का किया जाता है।

जब हम वाचिक का प्रयोग करते हैं तो अपने देवी देवता से सम्बन्धित स्तोत्र पाठ आदि किया जाता है अर्थात् अपने मुंह से उसकी कीर्ति का बखान करते हैं।

और जब मानसिक किया का अनुसरण करते हैं तो सम्बन्धित देवता का ध्यान और जप आदि किया जाता है।

जो साधक अपने इष्ट देवता का निष्काम भाव से अर्चन करता है और लगातार उसके मंत्र का जप करता हुआ उसी का चिन्तन करता रहता है,

तो उसके जितने भी सांसारिक कार्य हैं उन सबका भार मां स्वयं ही उठाती हैं और अन्ततः मोक्ष भी प्रदान करती यदि आप उनसे पुत्रवत् प्रेम करते हैं

तो वे मां के रूप में वात्सल्यमयी होकर आपकी प्रत्येक कामना को उसी प्रकार पूर्ण करती है जिस प्रकार एक गाय अपने बछड़े के मोह में कुछ भी करने को तत्पर हो जाती है।

अतः सभी साधकों को मेरा निर्देश भी है और उनको परामर्श भी कि वे साधना चाहे जो भी करें, निष्काम भाव से करें। निष्काम भाव वाले साधक को कभी भी महाभय नहीं सताता।

ऐसे साधक के समस्त सांसारिक और पारलौकिक समस्त कार्य स्वयं ही सिद्ध होने लगते हैं उसकी कोई भी किसी भी प्रकार की अभिलाषा अपूर्ण नहीं रहती।

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