माता वैभव लक्ष्मी व्रत कहानी, पूजा विधि – Mahalakshmi Vrat Katha PDF Free Download

माता लक्ष्मी के 8 स्वरूप:- आदि लक्ष्मी, धन लक्ष्मी, गज लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, विजयालक्ष्मी, संतान लक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी माने गए हैं।
महालक्ष्मी व्रत के दिन लोग हाथी पर बैठी मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा करने करते हैं। मान्यता है कि विधि-विधान से पूजा और व्रत कथा पढ़ने या सुनने मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
महालक्ष्मी व्रत में व्रत कथा को जरूर सुनना या पढ़ना चाहिए, वरना यह व्रत अधूरा माना जाता है।
महालक्ष्मी गुरुवार की प्रथम व्रत कथा
एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह नियमित रुप से जगत के पालनहार विष्णु भगवान की आराधना करता था।
उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्रीविष्णु ने दर्शन दिए और ब्राह्मण से वर मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने लक्ष्मीजी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की।
विष्णु जी ने ब्राह्मण से कहा, जब धन की देवी मां लक्ष्मी के तुम्हारे घर पधारेंगी तो तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा। यह कहकर श्रीविष्णु जी चले गए।
लक्ष्मीजी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं चलूंगी तुम्हारे घर लेकिन इसके लिए पहले तुम्हें महालक्ष्मी व्रत करना होगा।
इसके बाद देवी लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। मान्यता है कि उसी दिन से इस व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।
गजलक्ष्मी ऐरावत हाथी दूसरी व्रत कथा
एक समय महर्षि श्री वेदव्यासजी हस्तिनापुर पधारे। उनके आगमन के बारेमें सुनकर महाराज धृतराष्ट्र उनको आदर सहित राजमहल में ले गए। स्वर्ण सिंहासन पर बिराजमान कर उनका पूजन किया।
इतना सुन श्री वेद व्यासजी कहने लगे- ‘हम एक ऐसे व्रत का पूजन व वर्णन कहते हैं जिससे सदा लक्ष्मीजी का निवास होकर सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। यह श्री महालक्ष्मीजी का व्रत है, इसे गजलक्ष्मी व्रत भी कहा जाता है। जिसे प्रतिवर्ष आश्विन कृष्ण अष्टमी को विधिवत किया जाता है।’
हे महामुने! इस व्रत की विधि हमें विस्तारपूर्वक बताने की कृपा करें। तब व्यासजी बोले- ‘हे देवी! यह व्रत भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से प्रारंभ किया जाता है। इस दिन स्नान करके 16 सूत के धागों का दोरा बनाएं, उसमें 16 गांठ लगाएं, हल्दी से पीला करें। प्रतिदिन 16 दूब व 16 गेहूं दोरे को चढ़ाएं।
इस प्रकार 15 दिन बीत गए। 16वें दिन आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन गांधारी ने नगर की सभी प्रतिष्ठित महिलाओं को पूजन के लिए अपने महल में बुलवा लिया। माता कुंती के यहां कोई भी महिला पूजन के लिए नहीं आई।
साथ ही माता कुंती को भी गांधारी ने नहीं बुलाया। ऐसा करने से माता कुंती ने अपना बड़ा अपमान समझा। उन्होंने पूजन की कोई तैयारी नहीं की एवं उदास होकर बैठ गईं।
जब पांचों पांडव युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव महल में आए तो कुंती को उदास देखकर पूछा- हे माता! आप इस प्रकार उदास क्यों हैं? आपने पूजन की तैयारी क्यों नहीं की?’
तब माता कुंती ने कहा- ‘हे पुत्र! आज महालक्ष्मीजी के व्रत का उत्सव गांधारी के महल में मनाया जा रहा है। उन्होंने नगर की समस्त महिलाओं को बुला लिया और उसके 100 पुत्रों ने मिट्टी का एक विशाल हाथी बनाया जिस कारण सभी महिलाएं उस बड़े हाथी का पूजन करने के लिए गांधारी के यहां चली गईं, लेकिन मेरे यहां नहीं आईं।’
यह सुनकर अर्जुन ने कहा- ‘हे माता! आप पूजन की तैयारी करें और नगर में बुलावा लगवा दें कि हमारे यहां स्वर्ग के ऐरावत हाथी की पूजन होगी।’
इधर माता कुंती ने नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया और पूजा की विशाल तैयारी होने लगी। उधर अर्जुन ने बाण के द्वारा स्वर्ग से ऐरावत हाथी को बुला लिया।
इधर सारे नगर में शोर मच गया कि कुंती के महल में स्वर्ग से इन्द्र का ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतारकर पूजा जाएगा। समाचार को सुनकर नगर के सभी नर-नारी, बालक एवं वृद्धों की भीड़ एकत्र होने लगी।
जब स्वर्ग से ऐरावत हाथी पृथ्वी पर उतरने लगा तो उसके आभूषणों की ध्वनि गूंजने लगी। ऐरावत के दर्शन होते ही जय-जयकार के नारे लगने लगे।
सायंकाल के समय इन्द्र का भेजा हुआ हाथी ऐरावत माता कुंती के भवन के चौक में उतर आया, तब सब नर-नारियों ने पुष्प-माला, अबील, गुलाल, केशर आदि सुगंधित पदार्थ चढ़ाकर उसका स्वागत किया।
राज्य पुरोहित द्वारा ऐरावत पर महालक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करके वेद मंत्रोच्चारण द्वारा पूजन किया गया। नगरवासियों ने भी महालक्ष्मी पूजन किया।
फिर अनेक प्रकार के पकवान लेकर ऐरावत को खिलाए और यमुना का जल उसे पिलाया गया। राज्य पुरोहित द्वारा स्वस्ति वाचन करके महिलाओं द्वारा महालक्ष्मी का पूजन कराया गया।
16 गांठों वाला दोरा लक्ष्मीजी को चढ़ाकर अपने-अपने हाथों में बांध लिया। ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। दक्षिणा के रूप में स्वर्ण आभूषण, वस्त्र आदि दिया गया।
तत्पश्चात महिलाओं ने मिलकर मधुर संगीत लहरियों के साथ भजन कीर्तन कर संपूर्ण रात्रि महालक्ष्मी व्रत का जागरण किया।
दूसरे दिन प्रात: राज्य पुरोहित द्वारा वेद मंत्रोच्चार के साथ जलाशय में महालक्ष्मीजी की मूर्ति का विसर्जन किया गया। फिर ऐरावत को विदाकर इन्द्रलोक को भेज दिया।
इस प्रकार जो स्त्रियां श्री महालक्ष्मीजी का विधिपूर्वक व्रत एवं पूजन करती हैं, उनके घर धन-धान्य से पूर्ण रहते हैं तथा उनके घर में महालक्ष्मीजी सदा निवास करती हैं। इस हेतु महालक्ष्मीजी की यह स्तुति अवश्य बोलें-
‘महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।
हरि प्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दयानिधे।।’
Read: Mahalaxmi Vrat Katha In Gujarati
लेखक | लोक संस्कृति |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 8 |
Pdf साइज़ | 0.14 MB |
Category | व्रत कथाएँ |
महालक्ष्मी व्रत की पूजा विधि
इस व्रत को करते वक़्त सर्वप्रथम व्रत के दिन सूर्योदय के समय स्नान आदि करके पूजा का संकल्प किया जाता है । पूजन के संकल्प और स्नान के पहले इस दिन दूर्वा को अपने शरीर पर घिसा जाता है।
वो कहती है कि माता लक्ष्मी मुझ पर कृपा करे, कि मेरा यह व्रत बिना किसी विघ्न के पूर्ण हो जाए. इस संकल्प के बाद एक सफेद दोरे मे 16 गठान लगाकर उसे हल्दी से पीला किया जाता है और फिर उसे व्रत करने वाली महिला द्वारा अपनी कलाई पर बांधा जाता है।
अब पूजन के वक़्त एक पटे पर रेशमी कपड़ा बिछाया जाता है । इस वस्त्र पर लाल रंग से सजी लक्ष्मी माता की तस्वीर और गणेशजी की मूर्ति रखी जाती है ।
कुछ लोग इस दिन मिट्टी से बने हाथी की पूजा भी करते है । अब मूर्ति के सामने पानी से भरा कलश स्थापित करते है और इस कलश पर अखंड ज्योत प्रज्वलित करते है।
अब इसकी पूजा सुबह और शाम के वक़्त की जाती है और मेवे तथा मिठाई का भोग लगाया जाता है।
पूजन के प्रथम दिन लाल नाड़े मे 16 गाठ लगाकर इसे घर के हर सदस्य के हाथ मे बांधा जाता है और पूजन के बाद इसे लक्ष्मीजी के चरणों मे चढ़ाया जाता है।
व्रत के बाद ब्राह्मण को भोजन कराया जाता है और दान दक्षिणा दी जाती है । इस सब के बाद लक्ष्मी जी से व्रत के फल प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है।
वैभव लक्ष्मी व्रत उद्यापन विधि
व्रत मे उद्यापन के दिन एक सुपड़ा लेते है, इस सुपड़े मे सोलह श्रृंगार के सामान लेकर इसे दूसरे सुपड़े से ढक देते है । अब 16 दिये प्रज्वलित करते है, पूजन के बाद इसे देवीजी को स्पर्श कराकर दान करते है।
जब चन्द्रमा निकल आये तो लोटे में जल लेकर तारों को अर्घ दें तथा उत्तर दिशा की ओर मुंह कर के पति पत्नी एक – दूसरे का हाथ थाम कर के माता महालक्ष्मी को अपने घर आने का (हे माता महालक्ष्मी मेरे घर आ जाओ ) इस प्रकार तीन बार आग्रह करें ।
इसके पश्चात एक सुन्दर थाली में माता महालक्ष्मी के लिए, बिना लहसुन प्याज का भोजन सजाएँ तथा घर के उन सभी सदस्यों को भी थाली लगायें जो व्रत हैं |
यदि संभव हो तो माता को चांदी की थाली में भोजन परोसें, ध्यान रखिये की थाली ऐसे रखी होनी चाहिये की माता की मुख उत्तर दिशा में हो और बाकि व्रती पूर्व या पश्चिम दिशा की ओर मुह कर के भोजन करें |
माता के साथ साथ उन सभी को भी भोजन दे जिन्होने व्रत किया है । भोजन मे पूड़ी, सब्जी, खीर, रायता आदि विशेष रूप से होता है।
भोजन के पश्चात माता की थाली ढँक दें एवं सूप में रखा सामान भी रात भर ढंका रहने दें |
सुबह उठ के इस भोजन को किसी गाय को खिला दें और दान सामग्री को किसी ब्राह्मण को दान करें जो की इस व्रत की अवधी में महालक्ष्मी का जाप करता हो या फिर स्वयं यह व्रत करता हो, यदि ऐसा संभव न हो तो किसी भी ब्राह्मण को ये दान दे सकते हैं | या किसी लक्ष्मी जी के मन्दिर में देना अति उत्तम होगा |
दान सामग्री की 16 वस्तुएं
- सोलह चुनरी
- सोलह सिंदूर
- सोलह लिपिस्टिक
- सोलह कंघा
- सोलह शीशा
- सोलह बिछिया
- सोलह रिबन
- नाक की सोलह कील या नथ
- सोलह फल
- सोलह मेवा
- सोलह मिठाई
- सोलह लौंग
- सोलह इलायची
- सोलह मीटर सफेद कपड़ा या सोलह रुमाल
राधा अष्टमी और महालक्ष्मी व्रत का महत्व (Benefits)
राधा अष्टमी या महा लक्ष्मी व्रत विशेषकर शादीशुदा महिलाओ द्वारा अपने परिवार को धन्य धान से परिपूर्ण करने की मनोकामना पूर्ति के लिए किया जाता है।
राज्य में लक्ष्मी का वास करने के लिए,
घरों में सुख-संपत्ति, पुत्र-पौत्रादि व परिवार सुखी रखने के लिए
ब्राह्मण को भोजन कराके उसका आशीर्वाद पाने के लिए, यह व्रत किया जाता है।
महालक्ष्मी व्रत हर वर्ष भादव माह मे कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन किया जाता है। इस अष्टमी को राधा अष्टमी भी कहते है। साल 2021 मे राधा अष्टमी या महालक्ष्मी के व्रत की शुरुवात 13 सितंबर के दिन से है। और इस व्रत का 13 सितंबर समापन को होगा। इस साल महालक्ष्मी व्रत 16 दिन के लिए है।
माता वैभव लक्ष्मी व्रत कहानी | Mahalaxmi Vrat Katha Book/Pustak PDF Free Download