देश की कानून व्यवस्था और सुरक्षा | Law And Order Framework PDF In India

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कानून व्यवस्था किसे कहते हैं ? – Indian law And Its Importance PDF Free Download

कानून व्यवस्था

यह सीधे-सीधे कानून के उल्लंघन का मामला है। जैसा कि आप इकाई एक में पढ़ चुके हैं, राष्ट्रवादियों के बीच इस बात पर पूरी सहमति थी. कि स्वतंत्र भारत में सत्ता के मनमाने इस्तेमाल की कोई गुंजाइश होनी चाहिए। भारत में कानून व्यवस्था की रूपरेखा

इसीलिए उन्होंने संविधान में कई ऐसे प्रावधान जोड़े जो कानून पर आधारित शासन की स्थापना के लिए जरूरी थे। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण प्रावधान यह था कि स्वतंत्र भारत में सभी लोग कानून की नजर में बराबर होंगे।

हमारा कानून धर्म, जाति और लिंग के आधार पर लोगों के बीच कोई भेदभाव नहीं करता। कानून के शासन का मतलब है कि सभी कानून देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं।

कानून से ऊपर कोई व्यक्ति नहीं है। चाहे वह सरकारी अधिकारी हो या धन्नासेठ हो और यहाँ तक कि राष्ट्रपति ही क्यों न हो।

किसी भी अपराध या कानून के उल्लंघन की एक निश्चित सजा होती है। सजा तक पहुँचने की भी एक तय प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति का अपराध साबित किया जाता है। लेकिन क्या हमेशा से ऐसा ही था?

प्राचीन भारत में असंख्य स्थानीय कानून थे। अकसर एक जैसे मामले में कई तरह के स्थानीय कानून लागू होते थे। विभिन्न समुदाय इन

कानूनों को अपने अधिकार क्षेत्र में अपने हिसाब से लागू करने के लिए आसार थे। कुछ मामलों में जाति के आधार पर एक ही अपराध के लिए अलग-अलग व्यक्ति को अलग-अलग सजा दी जाती थी।

जैसे, निचली मानी जाने वाली जाति के अपराधी को ज्यादा सत्ता दी जाती थी। औपनिवेशिक शासन के दौरान कानून पर आधारित व्यवस्था जैसे-जैसे परिपक्व होती गई, जाति के आधार पर सजा देने में भेदभाव का यह चलन खत्म होने लगा।

बहुत सारे लोग मानते हैं कि हमारे देश में कानून के शासन की शुरुआत अंग्रेजों ने की थी। इतिहासकारों में इस बात पर काफ़ी विवाद रहा है। इसके कई कारण हैं। एक कारण तो यह है कि औपनिवेशिक कानून मनमानेपन पर आधारित था।

दूसरी वजह यह बताई जाती है कि ब्रिटिश भारत में कानूनी मामलों के विकास में भारतीय राष्ट्रवादियों ने एक अहम भूमिका निभाई थी।

1870 का राज एक्ट अंग्रेजी शासन के मनमानेपन की मिसाल था। इस कानून में राजद्रोह की परिभाषा बहुत व्यापक थी।

इसके मुताबिक अगर कोई भी व्यक्ति ब्रिटिश सरकार का विरोध या आलोचना करता था तो उसे मुकदमा चलाए बिना ही गिरफ्तार किया जा सकता था।

भारतीय राष्ट्रवादी अंग्रेजों द्वारा सत्ता के इस मनमाने इस्तेमाल का विरोध और उसकी आलोचना करते थे। अपनी बातों को मनवाने के लिए

उन्होंने संघर्ष शुरू कर दिया। यह समानता का संघर्ष था। उनके लिए कानून का मतलब ऐसे नियम नहीं थे जिनका पालन करना उनकी मजबूरी हो।

वे कानून को उससे अलग ऐसी व्यवस्था के रूप में देखना चाहते थे जो न्याय के विचार पर आधारित हों। उन्नीसवीं सदी के आखिर तक भारत में कानूनी पेशा भी उभरने लगा था।

कानूनी पेशे में लगे भारतीयों ने माँग की कि औपनिवेशिक अदालतों में उन्हें सम्मान की नजर से देखा जाए। ऐसे भारतीय कानून विशेषज्ञ अपने देश के लोगों के अधिकारों की हिफाजत के लिए कानून का इस्तेमाल करने लगे।

भारतीय न्यायाधीश भी फ़ैसले लेने में पहले से ज्यादा भूमिका निभाने लगे थे। इस प्रकार औपनिवेशिक शासन के दौरान कानून के शासन के यहाँ के लोग भी कई तरह से अपना योगदान दे रहे थे।

संविधान को स्वीकृति मिलने के बाद यह दस्तावेज एक ऐसी आधारशिला बन गया जिसके आधार पर हमारे प्रतिनिधि देश के लिए कानून बनाने लगे। हर साल हमारे प्रतिनिधि कई नए कानून बनाते हैं और कई पुराने कानूनों में संशोधन करते हैं।

कक्षा 6 की पुस्तक में आपने 2005 के हिंदू उत्तराधिकार संशोधन कानून के बारे में पढ़ा होगा। इस नए कानून के मुताबिक बेटे, बेटियाँ और उनकी माँ, तीनों को परिवार की संपत्ति में बराबर हिस्सा मिल सकता है। इसी प्रकार प्रदूषण को नियंत्रित करने और रोजगार मुहैया कराने के लिए भी नए कानून बनाए गए हैं।

लोग इस निर्णय पर कैसे पहुँचते हैं कि एक नया कानून जरूरी है? वे कानून का प्रस्ताव किस तरह पेश करते हैं? इनके बारे में आप अगले हिस्से में पढ़ेंगे।

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भाषा हिन्दी
कुल पृष्ठ 10
PDF साइज़5 MB
CategoryEducation
Source/Creditsdrive.google.com

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