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कुंडलिनी शक्ति कैसे जागृत करें – Kundalini Shakti PDF Free Download
कुंडलिनी शक्ति
बाहर की दुनिया से वह अनजाना लोक परे-सा प्रतीत हो रहा था। दीमक और घुन से खोखले हुए दो जर्जर खम्भों पर टिका बरामदा । मिट्टी की जगह-जगह से टूटी हुई दीवार ! कच्चे आँगन में उगे जंगली पौधे ।
एक किनारे डरावना-सा आंवले का घना पेड़। ध्वस्त कमरों से होकर फूस के छप्पर पर फैल गयी लौकी और ककड़ी की बेल।
काँपते उजाले के पीछे-पीछे बरामदे से कमरे की ओर जाते हुए गौर किया कि कच्चे आंगन, अहाते और उस सारे धूसर परिवेश में न जाने कैसे ध्वंस की गंध है ? एक ओर एक छोटा-सा कमरा।
काठ के पुराने किवाड़ों का जर्जर दरवाजा। सिर झुकाकर भीतर घुसा। धुंआ उगलती चिमनी ने भीतर रखी वस्तुओं को स्पष्ट कर दिया।
अरगनी पर टंगी लाल-पीले रंग की मैली-कुचैली चादर। गोबर से लिपे फर्श पर एक कोने में एक काफी लम्बा त्रिशूल रखा था। जिसके सिरे पर किसी मानव की खोपड़ी बंधी लटक रही थी।
कुछ खिसकाये जाने की आहट हुई। देखा काठ के दो मोढ़े सामने पड़े थे। उन्हीं की ओर संकेत करते हुए वह बोला – ‘बैठिये ।’
फिर खूटी पर टंगी चादर को उतार कर उसे भलीभाँति अपने बदन पर लपेटते हुए कहा-अब मुझे आश्चर्य हुआ।
इस निबिड़ बरसाती रात में मेरे सम्बन्ध में संक्षिप्त में सब कुछ सुनने के बाद अब क्या जानना चाहता है यह ?
अंधकाराच्छन्न प्रान्तर के इस स्थान पर रात्रि में ठहरने की बात बतलाने के बाद अब और आगे बतलाने को रह ही क्या गया था ?
मैंने कहा-आपको बतला ही चुका हूँ कि मैं बनारस का रहने वाला हूँ। अपने एक तांत्रिक मित्र के साथ यहाँ आया हूँ। और सबेरे वापस चले जाने का विचार है। मगर आप””।
में माधवानन्द हैं। कापालिक माधवानन्द । लगा, जैसे आँगन के आंवला के पेड़ पर चोंच रगड़ता कोई पक्षी कर्कश स्वर में चींख उठा।
उसका परमाणु भार २३५ होता है। यानि वह हाइड्रोजन के परमाणु से २३५ गुना भारी होता है।
इसकी परमाणु संख्या ९२ होती है जिससे स्पष्ट 1 जात होता है कि यूरेनियम के परमाणु में ९२ इलेक्ट्रान और ९२ प्रोटोन्स ।
प्रत्येक परमाणु में प्रोटोन्स और इलेक्ट्राला की संख्या बराबर होती है।
धन और ऋण विद्युत् का बाजे समान होता है। इसलिए वह विद्युद-विहीन क दिखलाई पड़ता है। यदि आप परमाणु-भार से परमाणु संख्या घटा दें २३५ – ९२= १४३ तो यह न्यूट्रान्स की संख्या होगी।
प्रत्येक परमाणु के दोनों ओर लिखी हुई संख्याएँ उपयुक्त व्याख्या के अनुसार परमाणुओं की संरचना की स्पष्ट व्याख्या होती है।
परमाणु के व्यास का केवल १/१०० है और सम्पूर्ण प्रोटोन एवं न्युट्रान नाभिक में होते हैं और इलेक्ट्रान परिधि में फिर बीच के सारे भाग में क्या होता है ? शून्य, विराट् शून्य ऊपर मैंने ‘परमतत्त्व’ की चर्चा की है। उपनिषद् अथवा योग में वह ‘परमतरथ’ परब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठित है।
जब कि तन्त्र-विज्ञान के अनुसार वह परमतत्त्व ‘परमधून्य’ है परमतत्व और परममूल्य एक-दूसरे के पर्याय- बाची है। परमशून्य से ही सम्पूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई है। विश्व के मुल में एकमात्र ‘परमशून्य’ ही है।
कहने की आवश्यकता नहीं कि तन्त्र का वही परम- शून्य विराट् शून्य के रूप में परमाणु के बीच के भाग में विद्यमान है।
इतने छोटे से परमाणु में यह शून्यतस्व कितना विराट् है, इसकी कल्पना आप एक उदाहरण से कर सकते हैं; यथा-यदि परमाणु का इतना बड़ा मॉडल बनाया जाय कि वह हावी हो जाय तो नाभिक एक सन्तरे की तरह होगा और इलेक्ट्रान होगा मच्छर की तरह तथा इसके बीच की दूरी उसी अनुपात में इतनी अधिक हो जायेगी कि शक्तिशाली दूरबीन से भी नाभिक दिखलायी नहीं पड़ेगा |
अमूर्त विद्युत चुम्बकीय ऊर्जाएँ एक परिधि में जब विशिष्ट ज्यॉमेट्रिकल पेट में बंध सी जाती हैं, तब वह मूर्त वस्तुओं की इकाइयाँ बन जाती हैं, जिसे परमाणु कहते हैं।
वास्तव में परमाणु केवल ऊर्जाओं का क्रीड़ा क्षेत्र है। प्रोट्रोन्स या यूट्रान्स से बम्बाडिंग करने पर एक परमाणु दूसरे में बदल जाते हैं।
अथवा वे रेडियोएक्टिव परमाणु बन जाते हैं रेडियोएक्टिव परमाणु ऊर्जा निकालकर प्रतिक्षण बदलते रहते हैं और या तो किसी स्थायी परमाणु में बदलकर स्थिर हो जाते हैं या ऊर्जा में उनका विलोप हो जाता है।
इस प्रकार अमूर्त विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जाओं से हमारे मूर्त जगत् का निर्माण हुआ। ऊर्जा संहति में तथा संहति ऊर्जा में बदल जाती है।
इसके लिए आइस्टीन का एक विश्वविख्यात समीकरण है। इस समीकरण से यदि आप ४५० ग्राम संहति को ऊर्जा में बदले वो ११००००००० किलोबाट |
लेखक | अरुण कुमार शर्मा-Arun Kumar Sharma |
भाषा | हिन्दी |
कुल पृष्ठ | 624 |
Pdf साइज़ | 203.8MB |
Category | ज्योतिष(Astrology) |
कुंडलिनी शक्ति – Kundalini Shakti Pdf Free Download